दिसंबर ने रखी बदलाव की बुनियाद, जनवरी में खुलेंगे परिवर्तन के नए द्वार, देखिए कैसा रहा विदा हो रहा साल | watch Chhattisgarh political year ender 2018

दिसंबर ने रखी बदलाव की बुनियाद, जनवरी में खुलेंगे परिवर्तन के नए द्वार, देखिए कैसा रहा विदा हो रहा साल

दिसंबर ने रखी बदलाव की बुनियाद, जनवरी में खुलेंगे परिवर्तन के नए द्वार, देखिए कैसा रहा विदा हो रहा साल

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:24 PM IST, Published Date : December 27, 2018/12:27 pm IST

रायपुर। दिसंबर ने रखी बदलाव की बुनियाद, जनवरी में खुलेंगे परिवर्तन के नए द्वार। 2019 का सूरज आंखें खोले, उससे पहले ही छत्तीसगढ़ में नएपन की रंगारंग तस्वीरें दिखने लगी हैं। छत्तीसगढ़ जब इस बार नए साल में कदम रखेगा तो नवीनता के कितने ही तोहफे उसके पास होंगे। नए छत्तीसगढ़ राज्य में पहली बार कांग्रेस जीतकर आई है। पहली बार नए राज्य में बीजेपी को हार मिली है। पहली बार यहां कांग्रेस की निर्वाचित सरकार ने शपथ ली है।

नए साल में सत्ता के रंग बदल गए, परचम बदल गया, मिजाज बदल गया, राजनीति के नारे बदल गए। टोपी बदल गई, चेहरे बदल गए, कुर्सियां बदल गईं, पॉवर सेंटर बदल गए। नए साल में बिलकुल नई-नवेली सरकार सत्तासीन दिखेगी। नए मुख्यमंत्री, नए मंत्री और नए विधायक। अफसरों में भी नएपन की हवा बह रही है। पुराने साहब विदा हो गए, हट गए या फिर हटा दिए गए। नए साहबों ने चार्ज ले लिया। सरकारी बंगलों के नेमप्लेट बदल गए। पुराने मंत्रियों के पते बदल गए। राजधानी का रंग बदल गया। होर्डिंग्स बदल गए। अब हर तरफ कांग्रेसी नेताओं के पोस्टर, बैनर और होर्डिंग्स दिख रहे हैं। एकात्म परिसर की रौनक ख़त्म, अब राजीव भवन में नई जीत का नया उत्साह छलक रहा है। सत्ता नएपन की खुशबू से तर है तो अवाम भी नई उम्मीदों से बदलाव का स्वागत कर रही है। उम्मीद कर्ज माफी की। उम्मीद शराबबंदी की। उम्मीद बिजली बिल आधे होने की। आप ये कह सकते हैं कि अगर ये उम्मीदें पूरी हुईं तो नया साल वाकई छत्तीसगढ़ के लाखों लोगों के लिए बदलते वक्त का शो-केस बन जाएगा। 

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नई सरकार, नया साल और बस्तर को नए विहान का इंतजार। 15 साल में बेशक नक्सल हिंसा पर नकेल लगी है पर इसके पूरी तरह ख़ात्मे के बाद ही बस्तर में अमन का सूरज चमकेगा। नई सरकार से ये उम्मीद है कि वो नए एप्रोच के साथ इस समस्या से डील करेगी। सरकार ने इस बात के संकेत दिए भी हैं।

कुदरत ने जिस बस्तर पर नेमतों की बौछार की है। वही बस्तर दर्द के दरिया से गुज़रता रहा है। पर बीता सो रीता। अब नए साल के नए मोड़ पर। बदले निजाम के साए में नई उम्मीदें करवटें बदल रही हैं। कांग्रेस जब विपक्ष में थी, तो अकसर फोर्स की बढ़ती संख्या और आदिवासियों के दो पाटों में पीसने की बात वो कहती थी। अब ये माना जा रहा है कि बघेल सरकार नए सिरे से एंटी नक्सल नीति को अमल में लाएगी। शपथ लेते ही सरकार ने ये कहा भी कि जो निरपराध हैं, जो पीड़ित हैं, उनसे वो बात करेगी। मुमकिन ये भी है कि सुरक्षाबलों के दबदबे को कम करने की वो कोशिश करे। दरअसल जहां बीजेपी सरकार का ये मानना था कि नक्सली देशद्रोही और भटके हुए समूह का मूवमेंट है। वहीं वर्तमान कांग्रेस सरकार इसे सामाजिक-आर्थिक समस्या के रूप में देख रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का ये कहना है कि नक्सल प्रभावित इलाकों के ऐसे लोग जो दोनों ओर से पिस रहे हैं, उनसे राय-मशविरा कर इस समस्या का निदान किया जाएगा।

हालांकि ये भी सच है कि बस्तर के ज्यादातर दुर्गम इलाकों में न प्रशासन की पहुंच है और न सरकार की। ऐसे में नक्सलियों को पांव जमाने का आसान मौका मिल जाता है। नतीजा ये कि यहां की एक बड़ी आबादी न पढ़-लिख पा रही है और न उन्हें रोज़गार मिल पा रहा है और न कल्याणकारी योजनाओं का फायदा वो ले सके हैं। आज भी बस्तर के ग्रामीण सामानों की खरीद-फरोख्त, रोजगार और इलाज के लिए तेलंगाना और आंध्रप्रदेश पर निर्भर हैं। ये तो तय है कि केवल बंदूक के भरोसे नक्सलियों का सफाया मुमकिन नहीं और न ही अमन के बिना सरकार सुदूर बस्तर तक पहुंच पाएगी। ऐसे में नए निजाम ने अगर बातचीत, वार्ताओँ और सुलह-संधि के विकल्पों को आजमाने की फैसला किया तो शायद बस्तर में फिर से शांति लौट आए। नए साल में फिर एक बार बस्तर को अमन के नए संदेश का इंतज़ार रहेगा ।

2018 के साल को शायद ही याद रखना चाहेगी बीजेपी। छत्तीसगढ़ में 15 साल पुरानी सत्ता के पैर इसी साल उखड़े। साल 2018 के आखिरी महीने में उसे जनता ने रुखसती का परवाना थमा दिया और इसके साथ ही रमन राज का ख़ात्मा हो गया। बदलाव की जबदस्त लहर सुनामी बनकर आई और छत्तीसगढ़ में अस्त हो गया बीजेपी का सत्ता सूर्य। बीजेपी के रिकॉर्डधारी सीएम रमन सिंह चौथी जीत का रिकॉर्ड बना पाते। उससे पहले जनता के आदेश से उनके लिए सत्ता में वापसी का दरवाजा बंद हो गया। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार यहां बीजेपी की हार हुई, वह भी एक बड़े अंतर के साथ। इस हार से पार्टी के अंदर तो हाहाकार मचा ही, इसने कई पुराने क्षत्रपों को हिला दिया। रमन कैबिनेट के 9 मंत्री अपनी विधायकी बचा नहीं पाए। एंटी इनकमबेंसी का ज्वार ऐसा उठा कि महज डेढ़ दर्जन सीटों पर सिमट गई बीजेपी। लगातार 15 साल यहां सत्ता पर काबिज रहने वाली बीजेपी के लिए इस हार में कई सबक छिपे हैं, जिन पर उसने यकीनन अमल की शुरुआत कर दी होगी।

एक जबरदस्त हार ने बीजेपी के खेमे में गहरा सन्नाटा खींच दिया है। नेता सदमे की स्थिति में दिख रहे हैं। नेताओं पर इस हार पर विचार के लिए उनके पास ज्यादा वक्त नहीं क्योंकि सामने खड़ी है लोकसभा चुनाव की महाचुनौती। बीजेपी बीते दो चुनाव में 11-1 से जीतती रही है बीजेपी पर इस बार हालात दूसरे हैं । ज्यादातर जिलों में पार्टी का सूपड़ा साफ हो चुका है। बस्तर की 12 में से 11 सीटें वो हार चुकी है। सरगुजा में सभी 14 सीटों में उसका सफाया हो चुका है। बीजेपी दुर्ग, रायपुर और बिलासपुर संभाग में भी किसी तरह दो-चार सीटें जीत पाई है। ऐसे में साल 2019 उसके लिए अग्निपरीक्षा बनकर आएगा। अगर दिल्ली में उसे काबिज होना है तो उसे आग का दरिया पार करना होगा, तभी 2018 के घावों पर मरहम लग पाएगा और तभी लगातार दूसरी बार हिंदुस्तान पर राज करने का लक्ष्य पूरा हो सकेगा ।

2018 का साल कांग्रेस के लिए शुभ साबित हुआ। लंबी जद्दोजहद के इसी साल के आखिर में उसे जीत नसीब हो सकी। जानकारों का ये कहना है कि इस जीत की गूंज उसे एक लंबी यात्रा के लिए ऊर्जा देने वाली साबित होगी। 2018 का जनादेश और नए निजाम का उदय। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने प्रचंड जीत की हुंकार भरी। इस जीत के कई मायने हैं। इस जीत के कई रंग हैं। बड़े इंतजार के बाद कांग्रेसी परचम लहराया है। मुद्दतों बाद पंजे की चमक लौटी है। 15 साल बाद शिकस्त की धुंध हटी है और विजय का डंका बजा है । कांग्रेस की हताशा को इस जीत ने दूर कर दिया है और हौसले को पंख लगा दिया है। कांग्रेस की जय का शंखनाद साल के आखिरी दिनों में लगातार हौसले की इस नई मीनार से गूंजता रहा है। इस जीत के मायने बड़े हैं। इस जीत का कैनवास बड़ा है। 2003 के बाद जो कांग्रेस लगातार मात खाती रही, वो जीती इस बार। 2013 के जीरम हमले में जिस कांग्रेस ने अपनी अग्रिम पंक्ति की लीडरशिप को खो दी, उसने पांच साल में न केवल खुद को संभाला, संवारा बल्कि सत्ता की चाबी भी हासिल की। इस तरह ये कहा जा सकता है कि  2018 का ये साल कांग्रेस की उपलब्धि के नाम रहा क्योंकि उसने जो हासिल की वो कोई साधारण कामयाबी नहीं है।

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2018 अपनी तूफानी सियासी यात्राओँ के लिए जाना जाएगा। छत्तीसगढ़ की दोनों ही प्रमुख पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के आला नेताओं की अगुवाई में ये यात्राएं चलीं। कहा जा सकता है कि जनादेश को आकार देने में इन यात्राओं की भी अहम भूमिका रही। सियासी यात्राएं, सरकारी उत्सव, प्रचार का शोर और चुनाव कुल जमा यही सार है साल 2018 का। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने साल भर यात्राएं की।  बीजेपी और कांग्रेस के तमाम बड़े नेता धार्मिक स्थानों की यात्रा में व्यस्त रहे। कोई मंदिर पहुंचा तो कोई गुरुद्वारा। प्रदेश के जितने भी प्रमुख धार्मिक स्थल हैं, नेता सब जगह पहुंचे। राजनीतिक दल इसके जरिए अलग-अलग धार्मिक समूहों को साधने की कोशिश में लगे रहे।

कांग्रेस के सभी बड़े नेता साल के शुरू से ही यात्राओं पर जाते रहे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने आशीर्वाद और आभार यात्रा निकाली। नेता प्रतिपक्ष रहे टीएस सिंहदेव घोषणा पत्र के बहाने प्रदेश की खाक छानते रहे। चुनाव समिति के अध्यक्ष बनाए गए डॉ चरणदास महंत भी जन यात्रा के ज़रिए सक्रिय रहे। कांग्रेस अलग-अलग संभाग में संकल्प यात्रा के जरिए भी दस्तक दी। अगर कांग्रेस ने जनयात्रा निकाली तो उसके जवाब में बीजेपी ने जन आशीर्वाद यात्रा निकाली। साथ ही सुराज यात्रा भी निकली। इसके अलावा सीएम रमन ने विकास यात्रा भी निकाली। वहीं इसके उत्तर में कांग्रेस ने विकास खोजो यात्रा शुरू की। 2018 में केवल सियासी यात्राएं ही नहीं निकाली गईं, बल्कि बीजेपी सरकार ने सौगातों और सुविधाओं की झड़ी भी लगाई और उन्हें नाम दिया तिहार का। मिसाल के तौर पर बिजली तिहार, बोनस तिहार, मोबाइल तिहार।

घर-घर बिजली पहुंचाने की योजना के तहत बिजली तिहार मनाया गया, वहीं मुफ्त मोबाइल बांटने की योजना को मोबाइल तिहार नाम मिला। इसी तरह धान का बोनस देने के लिए बोनस तिहार का आगाज किया। मतलब हर योजना को बीजेपी सरकार ने इवेंट में बदलने की कोशिश की। 2018 में चुनावी साल होने की वजह से जुमलेबाजी भी जमकर हुई। सबसे ज्यादा विकास का जुमला उछला, बल्कि इसे लेकर तो बाकायदा सिलसिला ही चल पड़ा था।  इसकी शुरुआत विकास की चिड़िया वाले जुमले से हुई थी । फिर किसी ने कहा विकास किसने देखा, किसी ने कहा विकास लापता है तो किसी ने कहा विकास की खोज की जाए।

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लब्बोलुआब ये कि 2018 का साल सियासी तौर पर बेहद सक्रिय रहा जो कि स्वाभाविक ही है, क्योंकि चुनावी साल में ऐसा तो होना ही था। नतीजा, खूब यात्राएं हुईं, जमकर बयान दिए गए, तंज हुए, जुमले चले और हर तरीके से जनता का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश हुई।

 
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