देखिए मल्हारगढ़ विधानसभा के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, क्या कहता है जनता का मूड मीटर | Watch Video :

देखिए मल्हारगढ़ विधानसभा के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, क्या कहता है जनता का मूड मीटर

देखिए मल्हारगढ़ विधानसभा के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, क्या कहता है जनता का मूड मीटर

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:03 PM IST, Published Date : September 21, 2018/2:27 pm IST

मंदसौर। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले के मल्हारगढ़ विधानसभा सीट कीमंदसौर जिले की मल्हारगढ़ विधानसभा, ये वही क्षेत्र है जो किसान आंदोलन का केंद्र बना और मारे गए 7 में से 5 किसान इसी विधानसभा के थे। मल्हारगढ़ विधानसभा भाजपा का गढ़ माना जाता है, फिर भी हर बार यहां कांग्रेस बीजेपी को कड़ी टक्कर देती है।

मंदसौर जिल में आने वाली मल्हारगढ़ विधानसभा सियासत की एक प्रमुख केंद्र रहा है। कुल 770 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले मल्हारगढ़ की सियासत का रंग कुछ अलग ही हैयहां ग्राम पंचायतों की संख्या 256 है तो 3 नगर परिषद  भी सम्मिलित हैं। करीब ढाई लाख की जनसंख्या वाले मल्हारगढ़ में 2 लाख 6 हजार 886 मतदाता हैं। नमें 1 लाख 5 हजार 778 पुरुष मतदाता हैं जबकि 1 लाख 1 हजार 108 महिला मतदाता हैं। थर्ड जेंडर की संख्या 3 है। जाति समीकरण की बात करें तो ये एससी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में से एक है। एससी एसटी वर्ग का बड़ा तबका चुनावों में जीत का निर्णायक बनता है। 1998 असेंबली चुनावों में मल्हारगढ़, सीतामऊ विधानसभा क्षेत्र में सम्मिलित था। 2003 में हुए परिसीमन के बाद मल्हारगढ़ विधानसभा क्रमांक 225 अस्तित्व में आई। सीतामऊ का बड़ा एरिया अब सुवासरा विधानसभा में आता है।

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आरक्षित सीट होने के चलते मल्हारगढ़ विधान सभा में जातिगत समीकरण हावी नहीं रहता। चुनावी लहर और उम्मीदवार को देखकर जीत का रुख तय होता है। यहां कांग्रेस और भाजपा के अपने परंपरागत वोटर हैं। इस बार युवा वर्ग चुनाव में बड़े निर्णायक सबित होंगे। मल्हारगढ़ विधानसभा सीट के वर्तमान विधायक जगदीश देवड़ा हैं, जो पिछली भाजपा की सरकार में केबिनेट मिनिस्टर रह चुके हैं। वर्ष 2013 के चुनाव में 1 लाख 78 हजार 347 मतदाताओं ने अपने मत का प्रयोग किया था। इसमें जगदीश देवड़ा को 86 हजार 857 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के श्यामलाल जोकचंद को 80 हजार 286 वोट प्राप्त हुए। भाजपा के जगदीश देवड़ा ने कांग्रेस के श्यामलाल जोकचंद को महज 6 हजार 571 मतों से शिकस्त दी थी। जबकि देश में शिवराज और मोदी लहर थी, इसके बावजूद जेल और परिवहन मंत्री दम नहीं भर पाए।  

मंदसौर जिले में आने वाली मल्हारगढ़ विधानसभा का ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण है। इस सीट पर लंबे समय से बीजेपी राज कर रही हैफिलहाल जगदीश देवड़ा यहां से विधायक हैं और आने वाले चुनाव को लेकर उन्होंने अपनी तैयारी शुरू कर दी हैलेकिन उनकी जीत की राह इतनी आसान नहीं रहने वालीयहां सड़क, पानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी उनके लिए परेशानी का सबब बन सकती है। मल्हारगढ़ विधानसभा सभा बीजेपी का गढ़ रही है। यही वजह है कि यहां से बीजेपी बार-बार जीतती रही है। हालांकि आज भी ये क्षेत्र मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है। बीजेपी सरकार अपनी उपलब्धियों में सबसे पहले सड़कों को गिनवाती है। गांव-गांव तक पक्की सड़कें बनाने का दावा करती है लेकिन मल्हारगढ़ में आज भी सड़कें बदहाली की कहानी कहती दिखती हैं। हद तो ये है कि जिन सड़कों का भूमिपूजन स्थानीय विधायक 3-3 बार खुद कर चुके हैं वे भी अब तक अटकी पड़ी हैं।

मल्हारगढ़ मूल रूप से खेती के लिए जाना जाता है पर यहां के किसानों को पानी और बिजली की परेशानी है। मल्हारगढ़ की पिपल्यामंडी से ही किसान आंदोलन की शुरुआत हुई लेकिन आज भी यहां किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम नहीं मिल पा रहा है। स्थानीय मंडी में साफसफाई से लेकर फसल के भाव को लेकर समस्याएं हैं। किसानों के एक धड़े को योजनाओं का लाभ मिलने से दूसरे धड़े में सरकार के प्रति आक्रोश पैदा हो रहा है। क्षेत्र की एक और बड़ी समस्या है जिस पर न तो यहां के लोग और न ही यहां के ज़िम्मेदार खुल कर बोल पाते हैं वो है अफीम की तस्करी। देशभर में सबसे अच्छी अफीम की खेती मल्हारगढ़ विधानसभा में की जाती है। यही वजह है कि यहां बड़ी मात्रा में डोडा चूरा भी निकलता है, जिसकी तस्करी अन्य राज्यों में की जाती है। वहीं आवारा मवेशी भी क्षेत्र की मुख्य समस्या है, जिससे आए दिन एक्सीडेंट होते रहते हैं। इसी के साथ स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी गंभीर है। क्षेत्र में कोई बड़ा अस्पताल नहीं होने के कारण अकसर मरीजों को उदयपुर या इंदौर जैसे बड़े शहरों में उपचार के लिए रेफर करना पड़ता है ।

यहां शिक्षा का स्तर भी नीचे गिरा है। क्षेत्र में सरकारी स्कूलों की स्थिति उम्मीद के मुताबिक नहीं है। इसी तरह विधानसभा की आदर्श कॉलोनियों की तस्वीरें भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन को मुंह चिढ़ाती नज़र आती हैं। बारिश में लोगों को समस्यों से दो चार होना पड़ता है। कॉलोनियों में न तो नालियां बनाई गई हैं न तो सड़क है। ज़ाहिर है, बुनियादी सुविधाओं के मुद्दे पर इस बार सत्तारूढ़ बीजेपी यहां घिरने वाली है। वहीं विपक्ष के पास भी जन समस्याओं को उभारने का पूरा मौका होगा।

विधानसभा में कांग्रेस की आपसी गुटबाजी और भीतरघात की वजह से कांग्रेस चुनाव में यहां मात खा रही हैयही वजह है कि 2013 और 2008 के चुनावों में बीजेपी ने जीत हासिल की। हालांकि दोनों चुनावों में जीत का अंतर बेहद कम रहा। कुल मिलकर देखा जाए तो भाजपा को कांग्रेस हर बार कड़ी चुनौती देती है। एक बार फिर यहां दोनों ही राजनीतिक दल एक दूसरे को पटखनी देने की तैयारी में लग गए हैं।

किसान आंदोलन के लिए पहचाने जाने वाली मल्हारगढ़ सीट की सियासत में इन दिनों काफी हलचल नजर आ रही हैसियासतदानों की आवाजाही भी बढ़ गई है। सभी राजनीतिक दल अपना जनाधार बढ़ाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। सियासी दलों के अंदर भी कई चेहरे दावेदार के रूप में उभर रहे हैं। बीजेपी के दावेदारों की बात करें तो वर्तमान विधायक जगदीश देवड़ा का नाम सबसे मजबूत नजर आता है 2008 से लेकर 2013 तक जगदीश देवड़ा बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शामिल थे। वे मध्यप्रदेश शासन में जेल और परिवहन मंत्री रहे भी रहेवहीं विधानसभा क्षेत्र में अच्छी पकड़ और कार्यकर्ताओ के बीच सीधी पैठ रखने की वजह से भी उनकी टिकट लगभग तय नजर आती है। लेकिन किसान आंदोलन के समय उनका अपने क्षेत्र में एक्टिव नहीं होना जनता के बीच नाराजगी की वजह भी बन सकती है। बीजेपी के दूसरे दावेदारों की बात करें तो मंदसौर जनपद अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे शांतिलाल मालवीय का नाम सामने आता है।  शांतिलाल मालवीय की युवाओं में अच्छी पकड़ है। विधानसभा में लगातार संपर्क से ग्रामीणों में मजबूत पकड़ होने की वजह से शांतिलाल को भी टिकट मिल सकता है।

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कांग्रेस के दावेदारों की बात करें श्यामलाल जोकचंद का नाम उभरकर सामना आ रहा है। श्यामलाल जोकचंद की ग्रामीण इलाकों में अच्छी पकड़ है। कांग्रेस के फायर ब्रांड नेताओं में इनका शुमार होता है । इन्हें मीनाक्षी नटराजन के नजदीकी भी माना जाता हैं। हालांकि जोकचंद दो बार कांग्रेस के टिकट पर मल्हारगढ़ विधानसभा से हार चुके हैं। दोनों ही बार जगदीश देवड़ा से श्यामलाल को शिकस्त का सामना करना पड़ा । दो बार विधानसभा हारने वालों को टिकट नहीं देने की बात राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी कह चुके हैं । ऐसे में उनके लिए टिकट का इंतजाम आसान नहीं होगा। कांग्रेस के दूसरे बड़े दावेदार रूप में परशुराम सिसोदिया सामने आए हैं। भाजपा लहर के बाद भी उन्होंने जिला और जनपद पंचायत चुनावों में जीत हासिल की। परशुराम सिसोदिया मंदसौर जनपद के उपाध्यक्ष हैं तो इनकी पत्नी रामकन्या सिसोदिया जिला पंचायत सदस्य हैं। वोट कन्वर्ट करने में माहिर और यूथ का साथ परशुराम की पॉलिटिक्स की यूएसपी है। लेकिन मीनाक्षी नटराजन के गुट में नहीं होने का खामियाजा उनको भुगतना पड़ सकता है।

टिकट वितरण को लेकर दोनों ही राजनीतिक दल मंथन कर रहे हैं और कोई गलत दांव न खेल जाएं, इस बात का वो पूरा ध्यान रख रहे हैंये चुनावी राजनीति का एक ज़ाहिर सच है कि सियासी दल आधी जंग सही उम्मीदवार के चयन के साथ ही जीत जाते हैंऐसे में दावेदारों के चयन में हर मुमकिन सावधानी बरती जा रही है।

वेब डेस्क, IBC24