दिल्ली का बॉस कौन, सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की पीठ ने दिया खंडित फैसला, मामला बड़ी बेंच के पास भेजा | Who is boss of Delhi bench of two judges gave a fractured decision, matter sent to big bench

दिल्ली का बॉस कौन, सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की पीठ ने दिया खंडित फैसला, मामला बड़ी बेंच के पास भेजा

दिल्ली का बॉस कौन, सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की पीठ ने दिया खंडित फैसला, मामला बड़ी बेंच के पास भेजा

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:47 PM IST, Published Date : February 14, 2019/9:46 am IST

नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सेवाओं के नियंत्रण के विवादास्पद मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को खंडित फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने यह मामला निर्णय के लिए अब तीन जजों की बेंच के पास भेज दिया।

बता दें कि दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच सेवाओं के नियंत्रण संबंधी मुद्दे पर अक्सर टकराव की स्थिति बनती है। न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ हालांकि भ्रष्टाचार निरोधक शाखा, जांच आयोग गठित करने, बिजली बोर्ड पर नियंत्रण, भूमि राजस्व मामलों और लोक अभियोजकों की नियुक्ति संबंधी विवादों पर अपने विचारों पर सहमत रही।

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र की उस अधिसूचना को भी बरकरार रखा कि दिल्ली सरकार का एंटी करप्शन ब्यूरो भ्रष्टाचार के मामलों में उसके(केंद्र के) कर्मचारियों की जांच नहीं कर सकता। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि लोक अभियोजकों या कानूनी अधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार उप राज्यपाल के बजाय दिल्ली सरकार के पास होगा। दोनों जजों की पीठ ने जो फैसला सुनाया है उसमें इस सवाल पर अलग-अलग राय है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सेवाओं पर नियंत्रण किसके पास है। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण पर अपना खंडित फैसला वृहद पीठ के पास भेज दिया है। हालांकि दो सदस्यीय पीठ भ्रष्टाचार रोधी शाखा, राजस्व, जांच आयोग और लोक अभियोजक की नियुक्ति के मुद्दे पर सहमत हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की इस अधिसूचना को बरकरार रखा कि दिल्ली सरकार का एसीबी भ्रष्टाचार के मामलों में उसके कर्मचारियों की जांच नहीं कर सकता। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि केंद्र के पास जांच आयोग नियुक्त करने का अधिकार होगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार के पास बिजली आयोग या बोर्ड नियुक्त करने या उससे निपटने का अधिकार है। अदालत ने कहा कि उपराज्यपाल के बजाय दिल्ली सरकार के पास लोक अभियोजकों या कानूनी अधिकारियों को नियुक्त करने का अधिकार होगा।

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उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भूमि राजस्व की दरें तय करने समेत भूमि राजस्व के मामलों को लेकर अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उपराज्यपाल को अनावश्यक रूप से फाइलों को रोकने की जरुरत नहीं है और राय को लेकर मतभेद होने के मामले में उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाना चाहिए। जस्टिस सीकरी ने कहा कि सचिव स्तर के अधिकारियों पर फैसला एलजी करें। उन्होंने कहा कि दानिक्स स्तर के अधिकारियों पर फैसला एलजी की सहमति से हो। जबकि निदेशक स्तर की नियुक्ति सीएम कर सकते हैं।