12 August Shubh Muhurat: सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। अधिकमास की दूसरी एकादशी को परमा एकादशी कहा जाता है। इसे पुरुषोत्तमी या कमला एकादशी भी कहते हैं। इस बार परमा एकादशी का व्रत 12 अगस्त यानी आज रखा जा रहा है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने का विधान है। परमा एकादशी पर पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की आराधना करने से साधन को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। परमा एकादशी के लिए कोई चंद्रमास तय नहीं है। इस एकादशी पर सोना, ज्ञान, अनाज, भूमि और गाय का दान करना बेहद शुभ माना जाता है।
परमा एकादशी का महत्व
शास्त्रों में परमा एकादशी का व्रत 5 दिनों तक करने का विधान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुबेर द्वारा इस व्रत को करने पर भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें धन का अध्यक्ष बना दिया था। इस व्रत को करने से सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को पुत्र, स्त्री और राज्य की प्राप्ति हुई थी। इस व्रत के पांच दिनों में स्वर्ण दान, विद्या दान, अन्न दान, भूमि दान और गौ दान करने का विधान भी है। परमा एकादशी को दुर्लभ सिद्धियों की दाता माना गया है।
परमा एकादशी शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के मुताबिक, परमा एकादशी अधिकमास के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को मनाई जाती है। एकादशी तिथि 11 अगस्त सुबह 5 बजकर 6 मिनट पर शुरू हो चुकी है और इसका समापन 12 अगस्त यानी आज सुबह 6 बजकर 31 मिनट पर समापन होगा। परमा एकादशी का पारण 13 अगस्त यानी कल होगा, जिसका समय सुबह 5 बजकर 49 मिनट से 8 बजकर 19 मिनट तक रहेगा।
परमा एकादशी पूजन विधि
परमा एकादशी का व्रत बेहद मुश्किल माना जाता है। व्यक्ति को पांच रातों तक लगातार व्रत रखना होता है, जिसे पंच रात्रि व्रत के नाम से जाना जाता है। परमा एकादशी के दिन हो सके तो ऊं नमो वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। एकादशी के दिन से अमावस्या तक पानी नहीं बल्कि केवल भगवत चरणामृत ही पीना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि पांच रातों तक उपवास करने से पुण्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन सवेरे-सवेरे स्नानादि के बाद भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें। फिर निर्जला व्रत का संकल्प लेकर विष्णु पुराण का पाठ करें। रात के चारों पहर विष्णु और शिवजी की पूजा करें। पहले प्रहर में नारियल, दूसरे प्रहर में बेल, तीसरे प्रहर में सीताफल और चौथे प्रहर में नारंगी और सुपारी भगवान को अर्पित करें। द्वादशी के दिन प्रात: भगवान की पूजा करने के बाद व्रत का पारण करें।
जानिए परमा एकादशी कथा
प्राचीन काल में काम्पिल्य नगर में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री का नाम पवित्रा था। वह परम सती और साध्वी थी। वे दरिद्रता और निर्धनता में जीवन निर्वाह करते हुए भी परम धार्मिक थे और अतिथि सेवा में तत्पर रहते थे। एक दिन गरीबी से दुखी होकर ब्राह्मण ने परदेश जाने का विचार किया, किंतु उसकी पत्नी ने कहा- ” स्वामी धन और संतान पूर्वजन्म के दान से ही प्राप्त होते हैं, अत: आप इसके लिए चिंता ना करें।” फिर एक दिन महर्षि कौडिन्य उनके घर आए। ब्राह्मण दंपति ने तन-मन से उनकी सेवा की।
महर्षि ने उनकी दशा देखकर उन्हें परमा एकादशी का व्रत करने को कहा। उन्होंने कहा- दरिद्रता को दूर करने का सुगम उपाय यही है कि, तुम दोनों मिलकर अधिक मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत तथा रात्रि जागरण करो। इस एकादशी के व्रत से यक्षराज कुबेर धनाधीश बना है, हरिशचंद्र राजा हुआ है। ऐसा कहकर मुनि चले गए और सुमेधा ने पत्नी सहित व्रत किया। प्रात: काल एक राजकुमार घोड़े पर चढ़कर आया और उसने सुमेधा को सर्व साधन, संपन्न, सर्व सुख समृद्ध कर एक अच्छा घर रहने को दिया। इसके बाद उनके समस्त दुख दर्द दूर हो गए।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। IBC24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।)