Indira Ekadashi Vrat Katha: इस कथा के पाठ से पितरों को मिलती है मुक्ति! आश्विन माह की पवित्र एकादशी, जानें व्रत कथा और इसका महत्व
इंदिरा एकादशी व्रत कथा (Indira Ekadashi Vrat Katha) के पाठ से पितरों को मोक्ष और साधक को सुख-समृद्धि मिलती है। जानें इसकी कथा और महत्व।
Indira Ekadashi Vrat Katha / Image Source: IBC24
- एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
- एकादशी का व्रत महीने में 2 बार किया जाता है।
Indira Ekadashi Vrat Katha:- सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। यह तिथि भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और आत्मिक शुद्धि के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को Indira Ekadashi Vrat Katha के साथ मनाया जाता है। इस दिन व्रत करने और कथा पाठ करने से साधक को न केवल पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि उनके पितरों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा (Indira Ekadashi Vrat Katha)
सतयुग में माहिष्मती नगरी में इंद्रसेन नाम के एक पराक्रमी और धर्मनिष्ठ राजा का शासन था। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे और अपनी प्रजा का पालन-पोषण अपनी संतान की तरह करते थे। उनकी नगरी में किसी भी व्यक्ति को किसी वस्तु की कमी नहीं थी। एक दिन, देवर्षि नारद उनके दरबार में पधारे। राजा ने उनका आदर-सत्कार किया और उनके आगमन का कारण पूछा।
नारद जी ने बताया कि वे यमलोक गए थे, जहां उनकी भेंट राजा इंद्रसेन के पिता से हुई। उनके पिता ने बताया कि व्रत भंग होने के कारण वे यमलोक में पीड़ा भोग रहे हैं। उन्होंने नारद जी के माध्यम से राजा को संदेश भेजा कि वे आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की Indira Ekadashi Vrat Katha का पाठ करें और व्रत रखें, ताकि उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति हो सके।
नारद जी के निर्देशानुसार, राजा इंद्रसेन ने विधि-विधान से इंदिरा एकादशी का व्रत किया। उन्होंने भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की, गौ दान किया, और मौन रहकर व्रत का पालन किया। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से उनके पिता को यमलोक की पीड़ा से मुक्ति मिली और वे बैकुंठ धाम को प्राप्त हुए। साथ ही, राजा इंद्रसेन को भी मृत्यु के पश्चात बैकुंठ की प्राप्ति हुई। इस घटना के कारण ही इस एकादशी का नाम Indira Ekadashi Vrat Katha पड़ा।
इंदिरा एकादशी का महत्व
इंदिरा एकादशी का व्रत विशेष रूप से पितृ पक्ष के दौरान मनाया जाता है, जो पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए समर्पित होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से साधक के पूर्वजों को नीच योनि या यमलोक की पीड़ा से मुक्ति मिलती है, और वे बैकुंठ धाम को प्राप्त करते हैं। साथ ही, यह व्रत साधक के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाता है।
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पापों से मुक्ति: Indira Ekadashi Vrat Katha का पाठ और व्रत करने से बड़े-बड़े पापों का नाश होता है।
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पितृ दोष निवारण: यह व्रत पितृ दोष से मुक्ति दिलाने में सहायक है।
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आध्यात्मिक उन्नति: भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा से साधक का जीवन समृद्ध और शांतिपूर्ण बनता है।
इंदिरा एकादशी व्रत की विधि
Indira Ekadashi Vrat Katha का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए व्रत को विधिपूर्वक करना आवश्यक है। नारद जी ने राजा इंद्रसेन को जो विधि बताई, वह आज भी प्रासंगिक है। यहाँ व्रत की विस्तृत विधि दी गई है:
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दशमी तिथि की तैयारी:
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दशमी के दिन प्रातःकाल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
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मध्याह्न में पुनः स्नान कर एक समय भोजन करें।
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रात्रि में भूमि पर शयन करें।
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एकादशी व्रत का संकल्प:
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एकादशी के दिन प्रभात में दातुन और स्नान के बाद भक्ति भाव से निम्न मंत्र का उच्चारण करें:
अद्य स्थित्वा निराहार: सर्वभोगविवर्जित:। थो भोक्ष्ये पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत॥ -
इस मंत्र के साथ व्रत का संकल्प लें कि आप निराहार रहकर अगले दिन भोजन करेंगे।
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पूजा और श्राद्ध:
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मध्याह्न में शालिग्राम शिला के समक्ष पितरों की प्रसन्नता के लिए श्राद्ध करें।
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ब्राह्मणों को दक्षिणा और भोजन कराएं।
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पितरों को दिए गए अन्नमय पिंड को गाय को खिला दें।
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रात्रि जागरण:
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रात्रि में भगवान विष्णु के समीप जागरण करें और भक्ति भजनों का गायन करें।
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द्वादशी तिथि:
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द्वादशी के दिन प्रातः भगवान विष्णु की पूजा करें।
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ब्राह्मणों को भोजन कराएं और स्वयं मौन रहकर परिवार के साथ भोजन करें।
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इंदिरा एकादशी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
इस वर्ष Indira Ekadashi Vrat Katha का पालन 17 सितंबर 2025 को किया जा रहा है। वैदिक पंचांग के अनुसार, शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:
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एकादशी तिथि प्रारंभ: 17 सितंबर 2025, रात्रि 12:21 बजे
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एकादशी तिथि समापन: 17 सितंबर 2025, रात्रि 11:39 बजे
इंदिरा एकादशी के लाभ
Indira Ekadashi Vrat Katha का पाठ और व्रत करने से साधक को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं:
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पितरों को मोक्ष: यह व्रत नीच योनि में पड़े पितरों को सद्गति प्रदान करता है।
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पापों का नाश: सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।
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सुख-समृद्धि: भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा से जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहती है।
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पितृ दोष निवारण: पितृ दोष के कारण होने वाली समस्याओं का समाधान होता है।
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अस्वीकरण: इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों पर आधारित है। IBC24.in यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं इसलिए इस विषय में कोई निर्णय लेने से पहले स्वविवेक का उपयोग जरूर करें।

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