Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha: चार महीने बाद आज से भगवान विष्णु फिर करेंगे सृष्टि संचालन, देवउठनी एकादशी पर करें इस कथा पाठ, मिलेगा मनोवांछित फल
चार महीने बाद आज से भगवान विष्णु फिर करेंगे सृष्टि संचालन, Lord Vishnu will Again Control the Universe From after Four Months
Guruwar Ke Upay |
नई दिल्लीः Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha देशभर में आज देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। हिंदू धर्म में देव उठनी एकादशी ,का विशेष महत्व है। इस दिन से सभी शुभ एवं मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। देवउठनी एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। लोग व्रत रखते हैं। देवउठनी एकादशी की व्रत कथा सुनते हैं। पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस शुभ अवसर पर विष्णु भगवान चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं और पुन: से सृष्टि की व्यवस्थाओं को संभालते हैं। इस दिन भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह भी किया जाता है
देवउठनी एकादशी 2024 शुभ मुहूर्त
देवउठनी एकादशी कि तिथि 11 नवंबर यानी कल शाम 6 बजकर 46 मिनट से शुरू चुकी है और तिथि का समापन 12 नवंबर यानी आज शाम 4 बजकर 04 मिनट पर होगा। देवउठनी एकादशी का पारण 13 नवंबर को सुबह 6 बजकर 42 से लेकर 8 बजकर 51 मिनट तक होगा।
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देवउठनी एकादशी शुभ योग (Devuthani Ekadashi 2024 Shubh Yog)
Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha देवउठनी एकादशी पर रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण होने जा रहा है। इस दिन रवि योग सुबह 6 बजकर 42 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 52 मिनट तक रहेगा। उसके अलावा, सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 7 बजकर 52 मिनट से 13 नवंबर को सुबह 5 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। इस सभी योगों में श्रीहरि का पूजन किया जा सकता है।
देवउठनी एकादशी पूजन विधि (Devuthani Ekadashi Pujan Vidhi)
इस दिन गन्ने का मंडप बनाएं और बीच में चौक बनाएं। चौक के मध्य में चाहें तो भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रख सकते हैं। चौक के साथ ही भगवान के चरण चिह्न बनाए जाते हैं, जो ढके रहने चाहिए। भगवान को गन्ना, सिंघाडा और फल-मिठाई अर्पित किया जाता है। फिर घी का एक दीपक जलाएं। इसे रात भर जलने दें। फिर भोर में भगवान के चरणों की विधिवत पूजा करें और चरणों को स्पर्श करके उनको जगाएं। कीर्तन करें। व्रत-उपवास की कथा सुनें। इसके बाद से सारे मंगल कार्य विधिवत शुरु किए जा सकते हैं। कहते हैं कि भगवान के चरणों का स्पर्श करके जो मनोकामना मांगते हैं, वो पूरी हो जाती है।
देवउठनी एकादशी महामंत्र
मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ध्वज:।
मंगलम पुंडरीकाक्षः, मंगलाय तनोहरि।।
देवउठनी एकादशी का महत्व (Dev Uthani Ekadashi Significance)
देव उठनी एकादशी दीपावली के बाद आती है और यह तिथि भगवान विष्णु जी को समर्पित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं, इसीलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह शयन के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के शयनकाल के चार मास (चतुर्मास) में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं, इसलिए देवोत्थान एकादशी पर भगवान हरि के जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा (Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha)
एक समय एक राजा था। उसके राज्य में सभी एकादशी का व्रत करते थे। एकादशी के दिन पूरे राज्य में किसी को अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन एक व्यक्ति नौकरी मांगने के उद्देश्य से राजा के दरबार में आया। उसकी बातें सुनने के बाद राजा ने कहा कि नौकरी तो मिल जाएगी, लेकिन एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाएगा। नौकरह मिलने की खुशी में उस व्यक्ति ने राजा की बात मान ली। एकादशी का व्रत आया। सभी व्रत थे। उसने भी फलाहार किया लेकिन भूख नहीं मिटी। वह राजा के पास अन्न मांगने गया। उसने राजा से कहा कि फलाहार से उनकी भूख नहीं मिटी है, वह भूखों मर जाएगा। उसे खाने के लिए अन्न दिया जाए। इस पर राजा ने अपनी शर्त वाली बात दोहराई।
उस व्यक्ति ने कहा कि वह भूख से मर जाएगा, उसे अन्न जरूरी है। तब राजा ने उसे भोजन के लिए आटा, दाल, चावल दिलवा दिया। वह नदी किनारे स्नान किया और भोजन बनाया। उसने भोजन निकाला और भगवान को निमंत्रण दिया। तब भगवान विष्णु वहां आए और भोजन किए। फिर चले गए। वह भी अपने काम में लग गया। फिर दूसरे मास की एकादशी आई। इस बार उसने अधिक अनाज मांगा। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि पिछली बार भगवान भोजन कर लिए, इससे वह भूखा रह गया। इतने अनाज से दोनों का पेट नहीं भरता। राजा चकित थे, उनको उस व्यक्ति की बात पर विश्वास नहीं हुआ। तब वह राजा को अपने साथ लेकर गया। उसने स्नान करके भोजन बनाया और भगवान को निमंत्रण दिया। लेकिन इस बार भगवान नहीं आए। वह शाम तक भगवान का इंतजार करता रहा। राजा पेड़ के पीछे छिपकर सब देख रहे थे। अंत में उसने कहा कि हे भगवान! यदि आप भोजन करने नहीं आएंगे तो नदी में कूदकर जान दे देगा। भगवान के न आने पर उस नदी की ओर जाने लग, तब भगवान प्रकट हुए। उन्होंने भोजन किया। फिर उस पर भगवत कृपा हुई और वह प्रभु के साथ उनके धाम चला गया। राजा को ज्ञान हो गया कि भगवान को भक्ति का आडंबर नहीं चाहिए। वे सच्ची भावना से प्रसन्न होते हैं और दर्शन देते हैं। इसके बाद से राजा भी सच्चे मन से एकादशी का व्रत करने लगे। अंतिम समय में उनको भी स्वर्ग की प्राप्ति हो गई।

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