#SarakarOnIBC24 : ‘राम के वजूद का सबूत नहीं’, मंत्री एसएस शिव शंकर का विवादित बयान

DMK Leader On Lord Ram: ताजा विवाद तमिलनाडु के मंत्री के एक बयान ने पैदा किया है। जिन्होंने एक बार फिर राम के अस्तित्व को लेकर सवाल उठाया है।

#SarakarOnIBC24 : ‘राम के वजूद का सबूत नहीं’, मंत्री एसएस शिव शंकर का विवादित बयान

DMK Leader On Lord Ram

Modified Date: August 3, 2024 / 11:21 pm IST
Published Date: August 3, 2024 11:21 pm IST

नई दिल्ली : DMK Leader On Lord Ram: भगवान राम सनातन धर्म और देश की आस्था का केंद्र है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के प्रति लोगों में जितनी आस्था है, उतना ही राम और राम के अस्तित्व को लेकर चर्चा और विवाद देश में होते रहते हैं। ताजा विवाद तमिलनाडु के मंत्री के एक बयान ने पैदा किया है। जिन्होंने एक बार फिर राम के अस्तित्व को लेकर सवाल उठाया है। यानी राम नाम पर एक बार फिर से सियासी संग्राम छिड़ चुका है।

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जल त्रासदी से जूझ रहे देश में राम नाम पर एक बार फिर से सियासी संग्राम शुरू हो चुका है। राम पर विवादित बयान देकर इस बार सुर्खियों में आए हैं। तमिलनाडु के DMK नेता और परिवहन मंत्री SS शिवशंकर यान भी ऐसा कि जिसमें वो कभी राम के जन्म से जुड़े सुबूत मांग रहे हैं तो कभी उन्हें अवतार मानने से इनकार कर रहे हैं। यानी एक बार फिर से एक दक्षिण भारत के द्रविड़ नेता ने राम के अस्तित्व पर सवाल उठाकर पूरे देश में खलबली मचा दी है।

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भगवान राम पर सवाल उठे तो अनुयायियों से लेकर सियादानों ने प्रतिक्रिया भी दी। सियासी सहूलियत के हिसाब से किसी से विरोध किया तो किसी ने इस बयान को अभिव्यक्ति की आजादी बताई, तो कई इस विवाद से बचता दिखे।

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जिस पार्टी की तरफ से ये विवादित बयान सामने आया उस पार्टी यानी DMK के सबसे बड़े नेता रह चुके करुणानिधी पहले ही रामायण का विरोध कर चुके हैं। उनके अलावा भी कई बार दक्षिण भारत के बड़े नेताओं के निशाने पर सनातन धर्म और संस्कृति रह चुकी है, लेकिन सवाल ये है कि जिस दक्षिण राज्यों के नेताओं को तथाकथित तौर पर प्रोगेसिव माना जाता है क्या उनकी राजनीति की धुरी भी धर्म और पंथ के इर्द-गिर्द ही घुम रही है ? और सवाल ये भी है कि उनके साथ गठबंधन की राजनीति कर रही राष्ट्रीय पार्टियों का स्टैंड भी हर बार ढुलमुल क्यों रहता है? सवाल ये भी है कि क्या अब वोटबैंक की राजनीति के लिए दूसरी संस्कृतियों को नीचा या कमतर दिखाना जरूरी हो गया है? और अगर नहीं तो इस पर सियासी दलों का कोई क्लीय़र स्टैंड क्यों नहीं है?

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