जनता मांगे हिसाब:चित्रकूट और कुक्षी में लगी IBC24 की चौपाल,जनमुद्दों की उठी गूंज

जनता मांगे हिसाब:चित्रकूट और कुक्षी में लगी IBC24 की चौपाल,जनमुद्दों की उठी गूंज

  •  
  • Publish Date - April 10, 2018 / 11:10 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:52 PM IST

 चित्रकूट की जनता ने मांगा हिसाब

अब बात मध्यप्रदेश के सतना जिले के चित्रकूट विधानसभा की भगवान राम की इस नगरी में हमेशा से कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। इस धार्मिक नगरी पर कब्जा करने के लिए बीजेपी कोई कसर नहीं छोड़ती। यही वजह है कि धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण चित्रकूट विधानसभा में सियासी छींटाकसी और वर्चस्व की लड़ाई में यहां से विकास कोसों दूर चला गया।जिसका खामियाजा यहां की जनता को भुगतना पड़ रहा है। आगामी विधानसभा चुनाव में कौन से जनमुद्दे गूंजेंगे और किसका पलड़ा भारी रहेगा आपको ये बताएं। लेकिन पहले चित्रकूट की भौगोलिक स्थिति पर नजर डाल लेते हैं।  

ये भी पढ़ें- जनता मांगे हिसाब: भरतपुर-सोनहत की जनता ने मांगा हिसाब

चित्रकूट की भौगोलिक स्थिति

भगवान श्री राम की नगरी चित्रकूट। मंदाकिनी नदी के किनारे बसे इस क्षेत्र की अपनी अलग धार्मिक पहचान है। विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरे चित्रकूट को लेकर मान्यता है कि जब भगवान राम को चौदह वर्ष का वनवास हुआ था। तब उन्होंने साढ़े ग्यारह साल का समय यही गुजारा था। सतना जिले में आने वाले चित्रकूट विधानसभा क्षेत्र की ज्यादातर आबादी वनोपज पर आश्रित है आंकड़ों के लिहाज से नजर डालें तो चित्रकूट में 1लाख 98हजार 737 मतदाता हैं. जिसमें 1लाख 6हजार 28 पुरुष मतदाता हैं।जबकि 91 हजार 632 महिला मतदाता सहित 2 अन्य वोटर है। 2013 के विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार करीब 13 हजार अधिक वोटर्स वोट डालेंगे। चित्रकूट विधानसभा ब्राम्हण और आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र रहा है। जो हर चुनाव में पार्टियों के हार-जीत तय करते हैं. अनुमानित आंकड़ों के मुताबिक यहां ब्राह्मणों की संख्या करीब 58 हजार जबकि 55 हजार के करीब आबादी आदिवासियों की है। इसके अलावा 16 हजार यादव अहीर, कुशवाहा 14 हजार, मुस्लिम 13 हजार, 10 हजार ठाकुर, और अन्य जाति के करीब 38 हजार वोटर्स हैं। यहां डकैत भी उम्मीदवारों की जीत हार में अहम भूमिका निभाते आए हैं हालांकि सतना पुलिस ने चित्रकूट विधानसभा को डकैत मुक्त घोषित किया है पर आगामी चुनाव में डकैतों के दखल से इनकार नही किया जा सकता है ।

 

चित्रकूट की सियासत

पहाड़ों और जंगलो से घिरी चित्रकूट की सियासत की बात की जाए तो राम के नाम की राजनीति करने वाली भाजपा को इस सीट पर जनता ने हमेशा से नकारा है। 2008 को छोड़ दिया जाए तो चित्रकूट की जनता पर सत्ता पक्ष का जादू अब तक नहीं चला है। इस समय यहां पर नीलांशु चतुर्वेदी विधायक हैं। आंकड़ों पर नजर डाले तो पिछले चार विधानसभा चुनावों और एक उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ही लोगों की पहली पसंद रही है।

ये भी पढ़ें- यूपी में बाबा पर चढ़ा भगवा रंग

चित्रकूट यानी राम का धाम यहां कण कण में राम बसते हैं। पहाड़ों और जंगलो से घिरी चित्रकूट की सियासत की बात की जाए तो राम के नाम की राजनीति करने वाली बीजेपी को इस सीट पर जीत के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। 2008 में बीजेपी के सुरेंद्र सिंह गहरवार ने कांग्रेस के प्रेम सिंह को हराकर पहली बार ये सीट भाजपा की झोली में डाली। लेकिन 2013 में चित्रकूट  वापस कांग्रेस के पास चली गई। इसके बाद कांग्रेस विधायक प्रेम सिंह के निधन होने के बाद उपचुनाव हुआ। नवंबर  2017 को हुए उपचुनाव में दोनों पार्टियों ने सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। काफी घमासान के बाद कांग्रेस के नीलांशु चतुर्वेदी ने बीजेपी के उम्मीदवार शंकर दयाल को हराकर सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखा। इसी साल के आखिरी में होने वाले विधानसभा  चुनाव के मद्देनजर दोनों पार्टियां एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में जुट गई है। उम्मीदवार की बात करें तो बीजेपी में टिकट के लिए कई दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है.. जिसमें सुभाष शर्मा डोली, पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह गहरवार और रत्नाकर चतुर्वेदी शिवा जैसे नेता शामिल हैं.. ऐसे में पार्टी के सामने चुनौती होगी कि वो सही कैंडिडेट का चुनाव करे.उम्मीदवार कोई भी हो लेकिन पार्टी यहां चुनाव मोदी और शिवराज सरकार की उपलब्धियों को लेकर ही मैदान में उतरेगी।

ये भी पढ़ें- रमन कैबिनेट में स्टील उद्योग, चना किसानों और मंत्रालय कर्मियों के लिए खुला पिटारा

वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की बात करें तो वर्तमान विधायक नीलांशु चतुर्वेदी की दावेदारी सबसे मजबूत लग रही है। नीलांशु चतुर्वेदी जहां ब्राह्मण राजघराने से आते हैं। वहीं उपचुनाव में जीतकर पार्टी हाईकमान की नजर में हैं। वैसे क्षेत्र में समाज सेवा और आदिवासी मतदाताओं के साथ साथ युवाओं की पहली पसंद भी हैं. कांग्रेस के दूसरे संभावित प्रत्याशियों की बात करें तो चुनावी समीकरण को ध्यान में रखकर पूर्व विधायक स्वर्गीय प्रेम सिंह परिवार के किसी सदस्य को टिकट मिल सकती है। कुल मिलाकर आनेवाले चुनाव की बात की जाए तो यहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच  सियासी जंग होने के आसार हैं। लेकिन कामयाब वही होगा जो यहां के जनता का दिल जीत ले। 

चित्रकूट के प्रमुख मुद्दे

मुद्दों की बात करें तो तो चित्रकूट की जनता आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करती नजर आती है. कुपोषण भले ही सरकारी कागजो में खत्म हो गया हो पर धरातल पर वो यहां आदिवासियों की नई पीढ़ी को दीमक की तरह नुकसान पहुंचा रहा है। सड़क, पानी और रोजगार की समस्या जस की तस है..बीते 15 सालों में बीजेपी और कांग्रेस की सियासी खींच तान का खामियाजा यहां के विकास कार्यों में साफ नजर आता है

चित्रकूट विधानसभा सीट पर हाल ही में हुए उपचुनाव को जीत कर कांग्रेस ने भले ही अपने इस सीट को बरकरार रखा है। लेकिन आगामी चुनाव में कांग्रेस के लिए इसको फतह करना इतना आसान नहीं रहने वाला। दरअसल कई ऐसे मुद्दे हैं। जो आगामी विधानसभा चुनाव में गूंज सकते हैं। वैसे मुद्दों की बात करें तो यहां वन ग्रामों में रहने वाले हजारों आदिवासी युवाओं के सामने रोजगार की कमी सबसे बड़ी समस्या है। महिलाओं और बच्चों की दशा तो और भी खराब है। जो कुपोषण का दंश झेलने को मजबूर हैं। इसके अलावा धार्मिक नगरी होने के कारण चित्रकूट में देश भर से लोग घुमने आते हैं। बावजूद इसके न तो पर्यटन को बढ़ावा देने का काम हुआ न ही रोजगार के साधन उपलब्ध कराए गए। हालात ये है की लोग यहां से पलायन को मजबूर है। विधानसभा के कई इलाको में  पीने के पानी और खाने के लिये आज भी ब्रम्हमुहूर्त में पूरा परिवार जंगल चला जाता है.. और लकड़ी काट कर उसे बेचकर अपना गुजारा करने वो मजबूर हैं। लेकिन जंगल मे डकैतों से तो शहर कस्बों पुलिस और वन विभाग से अगर बच गये तो रोटी मिलती है नहीं तो भूखे सोना इनकी किस्मत बन चुकी है। वहीं राज्य सरकार की योजनाएं यहां आते आते दम तोड़ देतीं है, यहां विकास महज सरकारी आंकडों की खानापूर्ति है। ।बड़ी बात ये की क्षेत्र मे एक भी उद्योग के साधन मौजूद नहीं है। यही नहीं अस्पताल होने के बाद भी स्वास्थ्य व्यवस्था ऐसी की अच्छा भला इंसान वहां बीमार हो जाये,, जाहिर है आनेवाले चुनाव में नेताओं के लिए इन मुद्दो को दरकिनार करना आसान नहीं होगा।

 

कुक्षी विधानसभा की जनता ने मांगा हिसाब

 

कुक्षी की भौगोलिक स्थिति

अब बात करते हैं मध्य प्रदेश की एक और विधानसभा सीट की। धार जिले की कुक्षी विधानसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीटों में से एक रही है। कांग्रेस के दबदबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। कि क्षेत्र में बुआजी के नाम से मशहूर और मध्यप्रदेश की उपमुख्यमंत्री रही जमुना देवी ने कुक्षी की बागडोर 1993 से 2008 तक हुए लगातार पांच विधानसभा चुनावों में संभाली। वहीं बीजेपी को 2011 में हुए उपचुनाव को छोड़कर हर चुनाव में सिर्फ हार मिली। कुक्षी की सियासी बिसात और मुद्दों की बात करें उसके पहले एक नजर इस सीट की तस्वीर पर ।

सफेद सोना यानी कपास की खेती के लिए पूरे देश भर में मशहूर घार जिले का कुक्षी विधानसभा मध्यप्रदेश का एक बड़ा व्यापारिक केंद्र है। कपास के अलावा यहां सोने-चांदी के गहनों की खरीद फरोख्त और  लाल मिर्च की खेती भी बड़े पैमाने पर होती है। 

अलिराजपुर, बड़वानी और झाबुआ से सटे इस क्षेत्र की कुल जनसंख्या लगभग साढ़े 3 लाख से ज्यादा है। कुक्षी विधानसभी में लगभग ढाई लाख मतदाता हैं। जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1लाख 12हजार 499 और  महिला मतदाताओं की संख्या 1लाख10हजार737 है। वहीं जातिगत समीकरण की बात की जाए तो पूरे कुक्षी विधानसभा क्षेत्र में आदिवासियों की संख्या सबसे ज्यादा है। दूसरे नंबर पर सिर्वी समाज और पाटीदार समाज आते है.. कुल मिलाकर आदिवासी मतदाता ही चुनाव में उम्मीदवारों का भविष्य तय करते हैं। इलाके से गुजरने वाली माँ नर्मदा के किनारे बसे कोटेश्वर जैसे तीर्थ भी कुक्षी की प्रमुख पहचान हैं।इसके अलावा गायत्री मंदिर, गायत्री सरोवर और विजय स्तम्भ के लिए भी कुक्षी जाना जाता है। कुक्षी विधानसभा ने प्रदेश की राजनीति को भी कई दिग्गज नेता भी दिए हैं.

कुक्षी की सियासत

विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है ऐसे में सियासी दल भी एक्टिव मूड में नजर आने लगे हैं..इसके साथ ही विधायक की टिकट की आस लगाए नेता भी अब सक्रिय हो चले हैं। बीजेपी में दावेदारों की लंबी लाइन लगी है तो वहीं कांग्रेस में भी टिकट के लिए दावेदार अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं ।

कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है कुक्षी विधानसभा सीट यही वो सीट है जहां से कांग्रेस की जमुनादेवी विधायक चुनी जाती रहीं। वर्तमान में  कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह हनी बघेल विधायक हैं। अब एक बार फिर विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने वाली है तो ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी के नेता टिकट के लिए दावेदारी करते दिखाई देने लगे हैं कुक्षी से बीजेपी के दावेदारों की बात की जाए तो डही के जनपद अध्यक्ष जयदीप सिंह पटेल का नाम शामिल है।जयदीप कुक्षी विधानसभा क्षेत्र में डही जनपद क्षेत्र में खासे लोकप्रिय हैं साथ ही रंजना बघेल के भतीजे होने के नाते भी जयदीप की सियासी पकड़ मजबूत दिखाई देती है।

 बीजेपी के दूसरे दावेदार हैं मुकाम सिंह किराड़े जो कुक्षी विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी रह चुके हैं। मुकाम सिंह रंजना बघेल के पति हैं। इसके अलावा वीरेंद्र सिंह बघेल भी टिकट के दावेदार माने जा रहे हैं ।

कांग्रेस के दावेदारों की बात करें तो विधायकी की टिकट की रेस में सबसे आगे हैं वर्तमान विधायक सुरेंद्र सिंह बघेल। कुक्षी विधानसभा क्षेत्र में सुरेंद्र सिंह बघेल के अलावा कोई भी चेहरा नजर नहीं आता। सुरेंद्र सिंह बघेल मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस के प्रदेश महासचिव और धार जिला युवक कांग्रेस अध्यक्ष भी रह चुके हैं।अब बीजेपी-कांग्रेस में टिकट के दावेदारों की रेस शुरू हो गई है।जो चलेगी विधानसभा चुनाव तक। सबसे बड़ी मुश्किल है बीजेपी की क्योंकि कुक्षी से टिकट की आस लगाए दावेदारों की लिस्ट लंबी है। तो वहीं कांग्रेस में दावेदारों की लाइन थोड़ी छोटी दिखाई दे रही है ।

कुक्षी विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे

धार जिले की कुक्षी विधानसभा सीट एक नहीं कई कद्दावर नेताओं की सियासी जमीन रही। सियासी तौर पर भले कुक्षी की एक अलग पहचान हो लेकिन आज भी कई समस्याओं से घिरा नजर आता है कुक्षी। आलम ये कि बुनियादी सुविधाओं तक को तरस रहे हैं लोग । 

सियासी नक्शे पर भले चमकती दिखाई देती हो कुक्षी विधानसभा सीट लेकिन विकास के मानचित्र पर धुंधली तस्वीर नजर आती है इस विधानसभा सीट की। हालात ये हैं कि बुनियादी सुविधाओं तक के लिए तरस रहे हैं लोग। इसके साथ ही सड़कों की हालत भी खराब है। तो वहीं स्वच्छता में भी फिसड्डी है। आलम ये है कि हर जगह सिर्फ कचरा ही कचरा नजर आता है। पूरे विधानसभा सीट में अतिक्रमण भी एक बड़ी समस्या है। शहर से लेकर गांव तक जलसंकट से जूझ रहे हैं लोग ।

कुक्षी में बेरोजगारी भी एक बड़ी समस्या है। क्योंकि कोई उद्योग हैं ही नहीं नतीजा शिक्षित युवाओं से लेकर मजदूर तक पलायन को मजबूर हैं। स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा भी बदहाल नजर आती है। स्कूलों में शिक्षिकों की कमी अब तक पूरी नहीं हो सकी है तो वहीं उच्च शिक्षा की भी हालत खराब है। आज भी इस विधानसभा सीट के युवा उच्च शिक्षा के लिए जिला मुख्यालय का रूख करने को मजबूर हैं। शिक्षा के साथ स्वास्थ्य के मोर्च पर भी फेल नजर आती है कुक्षी विधानसभा सीट। आज भी अस्पताल डॉक्टरों और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं।इसके अलावा सरदार सरोवर बांध प्रभावित कई गांव पुनर्वास नीति के चलते आंदोलित हैं । ये वो समस्याएं है जिनसे जूझ रही है कुक्षी विधानसभा सीट ।

 

 

 

 

वेब डेस्क, IBC24