जनता मांगे हिसाब: IBC24 की चौपाल में सिहावा की जनता ने मांगा हिसाब

जनता मांगे हिसाब: IBC24 की चौपाल में सिहावा की जनता ने मांगा हिसाब

  •  
  • Publish Date - April 22, 2018 / 11:17 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:57 PM IST

सिहावा की भौगोलिक स्थिति

कार्यक्रम में सबसे पहले बात छत्तीसगढ़ की सिहावा विधानसभा की..सिहावा में कांग्रेस पार्टी जनता की पहली पसंद रहे हैं..लेकिन फिलहाल सीट पर बीजेपी का कब्जा है…हालांकि इस सीट पर पार्टी से ज्यादा प्रत्याशी अहम होते हैं और क्या है यहां का सियासी समीकरण..बताएंगे आपको.. लेकिन सबसे पहले सिहावा की भौगोलिक स्थिति पर नजर डालते हैं.

धमतरी जिले में आती है सिहावा विधानसभा

महानदी का उद्गम स्थल है सिहावा

सप्तऋषियों के तपोभूमि के नाम से प्रसिद्ध है क्षेत्र

ST के लिए आरक्षित है सीट

कुल मतदाता- 1 लाख 72 हजार 947 

पुरुष मतदाता-  86 हजार 195 

महिला मतदाता- 86 हजार 752 

वर्तमान में सीट पर बीजेपी का कब्जा

बीजेपी के श्रवण मरकाम हैं वर्तमान विधायक

सिहावा विधानसभा क्षेत्र की सियासत

धमतरी जिले में आने वाली सिहावा विधानसभा…आदिवासी नेताओ का क्षेत्र रहा है…आदिवासी नेता भानु सोम..जिन्होंने इस सिहावा को आदिवासी समाज के लिए आरक्षित करने की मांग को लेकर सैकड़ों आदिवासियों के साथ रायपुर पैदल कूच किया था..जिनकी कोशिशों की ही नतीजा है कि 1962 से सिहावा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है… जाहिर है यहां के आदिवासी वोटर को साधे बिना यहां चुनाव जीतना इतना आसान नहीं …

महानदी का उद्गम स्थल और सप्तऋषियों की तपोभूमि सिहावा..कभी आदिवासी नेताओँ का गढ़ रहा है…यहां के आदिवासी अपनी मांगों को लेकर समय-समय पर आंदोलन करते रहे हैं…चुनावी नतीजों के लिहाज से देखें तो सिहावा कांग्रेस का गढ़ रहा है..लेकिन यहां की जनता.. पार्टी से ज्यादा प्रत्याशी को महत्व देते रहे हैं..1962 से ही ये सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. सिहावा के सियासी इतिहास की बात की जाए तो …1962 में जनसंघ और 1977 में जनता पार्टी के विधायक चुने गए..हालांकि इसी बीच 1976 और 72 में कांग्रेस के पुसऊ राम चुनाव जीते…और लगातार 7 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का परचम लहराया…इसके बाद 1990, 93 और 98 में कांग्रेस के माधव सिंह ध्रुव विधायक निर्वाचित हुए..और अविभाजित मध्यप्रदेश में मंत्री रहे। 2003 में बीजेपी की पिंकी शाह ने कांग्रेस के इस गढ़ में सेंध लगाते हुए माधव सिंह ध्रुव को शिकस्त दी..लेकिन 2008 में कांग्रेस की अंबिका मरकाम ने चुनाव जीत कर सीट वापस कांग्रेस की झोली में डाल दी..जबकि 2013 में बीजेपी के श्रवण मरकाम ने अंबिका मरकाम को हराकर सीट पर कब्जा किया। 

2008 के परिसीमन के बाद सियासी का सियासी समीकरण काफी बदला है..यहां महिला वोटर्स की संख्या पुरुषों से ज्यादा है..यही वजह है कि पार्टियां महिला वोटर्स को रिझाने के लिए चुनाव में महिला प्रत्याशी को ही प्राथमिकता देते हैं।

सिहावा में राजनीतिक दलों के दावेवारी की बात करें तो भाजपा से विधायक श्रवण मरकाम और पूर्व विधायक पिंकी शाह प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं…इसके साथ सरपंच संघ नगरी के अध्यक्ष महेश गोटा का नाम भी इस इसे में है।..वहीं दूसर और कांग्रेस से पूर्व मंत्री माधवसिंह ध्रुव और पूर्व विधायक अम्बिका मरकाम की सक्रियता क्षेत्र में सबसे ज्यादा नजर आती है।  आदिवासी बाहुल्य सिहावा  सीट में पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की भी  अच्छी संख्या है….पिछले चुनाव में पिछड़ा वर्ग मंच ने अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारकर भाजपा-कांग्रेस की नाक में दम कर दिया था ऐसे में आदिवासियों के साथ पिछड़ा वर्ग को साधने भाजपा कांग्रेस को विशेष रणनीति अपनानी होगी…क्षेत्र में नई नवेली पार्टी जेसीसीजे भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में जुटी है..

कुल मिलाकर  सियासी समीकरणों से लिहाज से अगले चुनाव में यहां सिसासी जंग दिलचस्प रहने वाली है ।

सिहावा विधानसभा के मुद्दे 

सिहावा में मुद्दों की बात करें तो सप्तऋषियों की इस तपोभूमि सिहावा विकास की रफ्तार काफी सुस्त है..कई गांव अब तक पिछड़ेपन का दंश झेल रहे हैं.. मोबाइल नेटवर्क का इंतजार कर रहे हैं कई गांव..वहीं सोंढूर बांध से निकलने वाली नहरों का विस्तार नहीं होने से किसान नाराज हैं…जबकि आबादी पट्टा का मुद्दा भी आगामी चुनाव में खूब गूंजेगा..जिसका सामना प्रत्याशियों को करना होगा

धमतरी जिले में सिहावा में वनसंपदाओं की कोई कमी नहीं है..सोंढूर जैसा बड़ा बांध मौजूद है जहां से किसानों को पूरे साल सिंचाई के लिए पानी मिल सकता है..लेकिन सोंदूर से निकलने वाले नहरों का अब तक विस्तार नहीं किया गया है..जिसे लेकर इलाके के किसानो में भारी नाराजगी है…क्षेत्र के किसी भी गांव में चले जाइए..किसानों के पास सिंचाई सुविधा को लेकर शिकायतों की लंबी लिस्ट है। 

सिहावा क्षेत्र में रोजगार की समस्या भी एक बड़ा मुद्दा है.. स्थानीय लोगों को काम की तलाश में यहां वहां भटकना पड़ता है..डिजिटल इंडिया के जमाने में भी यहां के लोगों को मोबाइल नेटवर्क तक नहीं नसीब हो रहा.. जो इस क्षेत्र के पिछड़ेपन का एक बड़ा उदाहरण है। स्वास्थ्य सुविधाओं की बात की जाए तो कहने को यहां करोड़ों रुपए खर्च कर अस्पताल भवन तो बना दिया गया.. लेकिन सुविधाओं की कमी के चलते मरीजों को धमतरी रेफर कर दिया जाता है जिसके चलते कई बार मरीजों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी।

उच्च शिक्षा का भी यहां बुरा हाल है… पीजी कोर्स नहीं होने की वजह से यहां के छात्रों को दूसरे शहर जाना पड़ता है। कुल इलाकों में नक्सलवाद भी विकास में रोड़ा बना हुआ है।  कुल मिलाकर यहां मुद्दों की कोई कमी नहीं है लेकिन आने वाले चुनाव में जनता वोट उसी को देगी जो क्षेत्र के लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेगा।

 

 

वेब डेस्क, IBC24