जनता मांगे हिसाब: खरसिया में गूंजा रोजगार, सड़क बिजली पानी और पलायन का मुद्दा

जनता मांगे हिसाब: खरसिया में गूंजा रोजगार, सड़क बिजली पानी और पलायन का मुद्दा

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  • Publish Date - May 20, 2018 / 11:44 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:35 PM IST

जनता मांगे हिसाब के सफर की शुरूआत करते हैं छत्तीसगढ़ की खरसिया विधानसभा से..जानेंगे क्या है खरसिया के सियासी समीकरण और चुनावी मुद्दे..लेकिन एक नजर खरसिया की प्रोफाइल पर…

रायगढ़ जिले में आती है विधानसभा सीट

कृषि पर आधारित है क्षेत्र की 70 फीसदी आबादी

प्रचुर मात्रा में है खनिज संपदा

इलाके से निकलती है मांड नदी

कुल मतदाता- 1 लाख 98 हजार 686

पुरुष मतदाता- 1 लाख 86

महिला मतदाता- 98 हजार

85 फीसदी है इलाके की साक्षरता दर

फिलहाल सीट पर कांग्रेस का कब्जा

उमेश पटेल हैं कांग्रेस विधायक

खरसिया की सियासत

खरसिया कभी बीजेपी के पितृ पुरुष लखीराम अग्रवाल का गढ हुआ करता था। एक समय में पूरे अविभाजित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ बीजेपी की राजनीति यहीं से संचालित हुआ करती थी। नगरीय निकाय मंत्री अमर अग्रवाल का गृह क्षेत्र भी है खरसिया .. बावजूद इसके आजादी के बाद से लेकर अब तक बीजेपी यहां कभी जीत हासिल नहीं कर पाई..फिलहाल सीट पर कांग्रेस के उमेश पटेल यहां पर विधायक हैं..और आगामी चुनाव में उनका टिकट फिर से तय माना जा रहा है..वहीं बीजेपी में दावेदारों की लंबी लिस्ट है..लेकिन एक ऐसा नाम नजर नहीं आता..जो पार्टी को यहां जीत दिला सके। 

खरसिया विधानसभा सीट से कांग्रेस के कद्दावर नेता नंदकुमार पटेल 5 बार विधायक रहे.. और 22 सालों तक सीट पर काबिज रहे। हालांकि 2013 में जीरम हमले में नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल की शहादत के बाद उनके छोटे बेटे उमेश पटेल ने राजनीतिक विरासत संभाली…2013 के विधानसभा चुनाव में उमेश पटेल ने 35 हजार से भी अधिक वोटों से जीत हासिल कर एक नया इतिहास बनाया। उमेश पटेल इस इलाके में सक्रिय विधायक के रुप में जाने जाते हैं। प्रदेश युवक कांग्रेस अध्यक्ष की बागडोर संभालने के बाद अब उमेश पटेल का कद भी इस विधानसक्षा के साथ साथ पूरे प्रदेश में बढा है।  

यही वजह है कि इस सीट से हर बार पार्टी कमजोर प्रत्याशी को ही चुनावी मैदान में उतारती आई है। हालांकि उमेश पटेल के साढे चार सालों के कार्यकाल पर अब बीजेपी निष्क्रियता का आरोप लगाकर उन्हें घेरने की रणनीति बना रही है..बीजेपी इस बार इस सीट पर अघरिया समाज के ही कैंडिडेट को चुनाव मैदान में उतार सकती है। इस सीट पर कांग्रेस से जहां उमेश पटेल फिर से चुनावी मैदान में होंगे तो वहीं बीजेपी से संभावित उम्मीदवारों की लंबी लिस्ट है.

इनमें नरेश पटेल का नाम सबसे आगे हैं। इनके अलावा विजय अग्रवाल और पूर्व बीजेपी जिलाध्यक्ष राजेश शर्मा भी टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं… वहीं नगर पालिका खरसिया के अध्यक्ष कमल गर्ग, श्री चंद रावलानी, मंजुल दीक्षित भी बीजेपी से टिकट की मांग कर रहे हैं…कुल मिलाकर खरसिया में बीजेपी में चुनाव से पहले टिकट के लिए पार्टी में घमासान मचना तय है..।

खरसिया के मुद्दे

औद्योगिक इलाका होने के बावजूद खरसिया में रोजगार सबसे बड़ी समस्या है… युवा रोजगार की तलाश में पलायन के लिए मजबूर हैं…वहीं सड़क, बिजली और पानी जैसी मूलभूत समस्याएं भी सरकारी दावे को मुंह चिढ़ाती नजर आती है..

रायगढ़ जिले के खरसिया विधानसभा क्षेत्र में वैसे तो उद्योगों की कोई कमी नहीं है लेकिन पिछले दो सालों में आई औद्योगिक मंदी की वजह से यहां के लोग बड़ी संख्या में बेरोजगार हुए हैं..आलम अब ये है कि रोजगार की तलाश में लोग पलायन कर रहे हैं…उद्योग के लिए बड़े पैमाने पर जिन आदिवासियों की जमीन अधिग्रहित की गई थी उनमें भी कई जमीनों की फर्जी खरीद बिक्री के मामले सामने आए हैं। बड़े उद्योगों की वजह से क्षेत्र में प्रदूषण की समस्या तो है ही भारी-भरकम गाड़ियों की आवाजाही से क्षेत्र में सड़क हादसे भी बढ़े हैं. 

बिलासपुर खरसिया एनएच पर काम चलने की वजह से लोग खस्ताहाल सड़कों से आने-जाने को मजबूर हैं. बरगढ़ क्षेत्र में मांड नदी पर बांध की सालों पुरानी मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई है… खरसिया और रायगढ़ के बीच कॉलेज नहीं होने की वजह से इस इलाके के छात्रों को रायगढ़ जाना पड़ता है. खरसियां में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदतर हालत की वजह से लोगों को बीमारी की हालत में रायगढ़ तक का सफर करना पड़ता है। सरकारी योजनाओं का लाभ भी क्षेत्र के लोगों तक पूरी तरह से नहीं पहुंच पा रहा है. सियासी दलों की आपसी खींचतान की वजह से विकास की रफ्तार यहां पर बेहद धीमी है. 

 

वेब डेस्क, IBC24