छत्तीसगढ़ राज्योत्सव में राष्ट्रपति ने किया समापन संबोधन

छत्तीसगढ़ राज्योत्सव में राष्ट्रपति ने किया समापन संबोधन

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  • Publish Date - November 5, 2017 / 02:03 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:44 PM IST

छत्तीसगढ़ राज्योत्सव के समापन समारोह की शुरूआत सेना के हेलिकाॅटरों  ने करतब दिखाकर किया। जिसके बाद विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने लोगों का मत्रमुग्ध कर दिया। समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में पधारे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपने तय समय अनुसार ठीक साढे़ 5 बजे मंच पर आसीन हुए। प्रोटोकाॅल के अनुसार पहले भाषण देने पधारे मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति और राज्यपाल के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अपने भाषण की शुरूआत की उन्होंने बताया की किस तरह प्रदेश विभिन्न क्षेत्रों में नए इबारतें लिखने का काम कर रहा इसी के साथ उन्होंने किसानों को अगले साल बोनस देने की घोषणा भी मंच से कर दी।

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इसके बाद राज्यपाल ने अपने सदे हुए भाषण से जनता को संबोधित किया। जिसके बाद राज्य के चयनित प्रतिभाशाली लोगों को राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने अपने हाथों से छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण पुरूस्कार सौंपे राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण की शुरूआत में राज्यपाल मुख्यमंत्री और मंचासीन लोगों के प्रति आभार प्रकट किया। छत्तीसगढ़ की जनता को छत्तीसगढ़ी में राज्य के 17वें जन्मदिन की शुभकमनाएं दी। श्री कोविंद ने अपनी पुरानी यादें साझा करते हुए कहा की जिस समय छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश से अलग हुआ और जिस समय अगल होने के लिए संसद में संघर्ष जारी था, उस समय में राज्यसभा में था। उस समय इस क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने दमदार तरीकों से संसद में इस बात को उठाया था कि किस तरह प्रकृति, समृद्ध संस्कृति, सुजल नदियों और खनिज अयस्कों से भरपूर यह क्षेत्र अभी तक पिछड़ा हुआ है। मैं इस बात को अपना सौभाग्य मनता हूं की अगल छत्तीसगढ़ की स्थापना में मेरा भी कुछ योगदान है। मैं गवाह हूं इस राज्य के निर्माण के लिए हुए संर्घषों का और यह मेरा सौभाग्य है कि मैं उस राज्य के स्थापना दिवस के कार्यक्रम में शामिल हो सका।

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इसके अलावा श्री राष्ट्रपति जी ने अपने भाषण में राम के ननीहाल से लेकर शहीद वीर नारायण सिंह, गुंडा धूर और मिनी माता तक को शामिल करते हुए कहा की यह धरती अनेक वीर सपूतों की धरती है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद का जिक्र करते हुए कहा की स्वामी जी ने कलकत्ता के बाद  अपने जीवन का सबसे लंबा प्रवास इसी क्षेत्र में किया। इस धरती ने आज भी रामकृष्ण मिशन के रूप में स्वामी विवेकानंद को जिंदा रखा हुआ है। अपने भाषण का अंत भी माहामहीम ने छत्तीसगढ़ी भाषा से किया।   

 

अमन वर्मा, IBC24