शिक्षाकर्मियों को 5 तारीख का इंतजार, वेतन विसंगति और अलग कैडर के फार्मूले पर ही फंसा पेंच

शिक्षाकर्मियों को 5 तारीख का इंतजार, वेतन विसंगति और अलग कैडर के फार्मूले पर ही फंसा पेंच

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  • Publish Date - June 2, 2018 / 07:59 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:01 PM IST

रायपुर। छत्तीसगढ़ में शिक्षाकर्मियों को 5 जून का इंतजार है। इस दिन हाईपावर कमेटी अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। संभावना जताई जा रही है कि कमेटी ने शिक्षाकर्मियों के संविलियन के लिए रास्ता निकाल लिया है। कमेटी की सिफारिश के आधार पर सरकार फैसला ले सकती है, लेकिन शिक्षाकर्मियों को वेतन विसंगति के निराकरण नहीं होने का डर सता रहा है। इसी तरह उनके लिए अलग कैडर की भी संभावना है। शिक्षाकर्मी मोर्चा इन दोनों फार्मूले पर सहमत नहीं है। ऐसे में सरकार और शिक्षाकर्मियों के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है। 

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह लगातार कह रहे हैं कि शिक्षाकर्मियों को धैर्य रखना चाहिए। हाईपावर कमेटी का फैसला आने ही वाला है। उनके संविलियन की सुगबुगाहट के बीच कहा जा रहा है कि साल 2013 में हुई वेतन विसंगति की वजह से प्रदेश के शिक्षाकर्मियों को मध्यप्रदेश की तुलना में हर माह 7 से 10 हजार तक का नुकसान हो रहा है। उनकी मांग है कि संविलियन के साथ-साथ उनकी वेतन विसंगति का भी निराकरण भी किया जाना चाहिए। मध्यप्रदेश में अध्यापकों को आवास, महंगाई और चिकित्सा भत्ता भी दिया जाता है। जबकि छत्तीसगढ़ में इन भत्तों को बंद कर दिया गया है। 

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छत्तीसगढ़ में मध्यप्रदेश के संविलियन के फार्मूले को अपनाने की तैयारी है। वहां संविलियन पर सहमति तो बन गई है, लेकिन वहां एक अलग कैडर बनाया जा रहा है। इससे छत्तीसगढ़ के शिक्षाकर्मियों सहमत नहीं हैं। शिक्षक पंचायत नगरीय निकाय मोर्चा के प्रांतीय संचालक संजय शर्मा, विरेन्द्र दुबे सहित तमाम पदाधिकारी इस संबंध में आशंका जाहिर कर चुके हैं।  उनका कहना है कि दो कैडर होने से शिक्षकों और शिक्षाकर्मियों के बीच भेदभाव की स्थिति बनेगी। 

छत्तीसगढ़ के शिक्षाकर्मियों ने आंदोलन के अगले चरण के लिए 5 जून की तारीख तय की है। इसी दिन सरकार की ओर से कुछ फैसला लिया जाएगा। माना जा रहा है कि उनके वेतन विसंगति और कैडर के बारे में निराकरण नहीं निकला तो वे आंदोलन की राह पकड़ सकते हैं। शिक्षाकर्मी लंबे समय से संविलियन की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक हल नहीं निकल पाया है। ऐसे में इस बार वे आर पार की लड़ाई के मूड में हैं। यह चुनावी साल है और उनकी मांगों पर सहमति नहीं बन पाती तो सरकार को बड़ा नुकसान हो सकता है। यही वजह है कि सरकार काफी सोच समझकर फैसला ले रही है। चुनावी बरस होने के कारण सरकारी कर्मचारी-अधिकारी से लेकर तमाम लोगों की सरकार से अपेक्षा है, लेकिन शिक्षाकर्मी बड़ा वोट बैंक है। विपक्षी दल कांग्रेस ने उनकी मांगों को जायज ठहराया है। लिहाजा शिक्षाकर्मियों को संतुष्ट करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।

वेब डेस्कIBC24