कांकेर के इस गांव में है ऐसी परंपरा, किसानों को नहीं लेना पड़ता कर्ज, सभी मानते हैं ‘बिट्टे’ को
कांकेर के इस गांव में है ऐसी परंपरा, किसानों को नहीं लेना पड़ता कर्ज, सभी मानते हैं ‘बिट्टे’ को
कांकेर। सामान्यत: देखा जाता है कि आजकल इस मतलबी भरी दुनिया मे कोई किसी के काम नहीं आता है यदि आप किसी से मेहनत का काम करवाएंगे तो उसके एवज में पैसा या अन्य सामान की मांग करता है। यदि आपको यह बताया जाए कि छत्तीसगढ़ के अंतागढ़ में ठीक इसके विपरीत एक दूसरी परंपरा है तो आपको विश्वास नहीं होगा। इस गांव में पिछले कई पीढ़ियों से जरूरतमंद किसानों के लिए पूरा गांव खड़ा होता है और किए गए काम के एवज में एक रुपए भी नही लेता है। इसे स्थानीय भाषा में बिट्टे कहते हैं।
30 साल की उर्मिला अपने हाथो में हल पकड़े हुए खेत मे जुताई का काम कर रही है। उसके साथ अन्य लोग भी उसी खेत मे कार्य कर रहे हैं पर ये अन्य व्यक्ति उनके परिवार के सदस्य नही हैं, बल्कि गांववाले हैं। पिछले कई पीढ़ियों से तारलकट्टा के गांव वाले खेती किसानी का कार्य पूरे गांव वाले एक साथ करते हैं। इन गांव वालों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नही होता। सब एक–दूसरे के दर्द को समझते हुए एक दूसरे के खेत मे काम करते हैं। इतना ही नही रोपाई, कटाई और मिंजाई में भी भरपूर एक–दूसरे का साथ देते हैं। उर्मिला का 4 साल का एक लड़का है। पति कुछ साल पहले ही गुजर गए और सास–ससुर का कई साल पहले देहांत हो गया। रहमदिल गांव वाले हैं, उनकी संस्कृति है जो आज भी उर्मिला को अकेलेपन का अहसास होने नही देते हैं।
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गांव की एक बुजुर्ग महिला सोनाय बाई है, जिसकी उम्र करीब 70 साल होगी। शरीर मे इतनी ताकत नहीं कि चल फिर सके। ज़मीन बैठे–बैठे ही झाड़ू बनाने का काम करती है। एक दिन में केवल 1 ही झाड़ू बना लेती है। इनके पास भी करीब 1 एकड़ ज़मीन है, जिस पर ये गांव वाले फ़सल बोने, मिंजाई, कटाई का काम करते हैं। घर मे रखे बर्तन और कच्ची मकान इनकी हालात को बयां करती है कि किस कदर आर्थिक तंगी से ये महिला जूझ रही है। हमने इस महिला से बात करने की कोशिश की पर इन्होंने कुछ जवाब नही दिया।
गांव के सरपंच शंकर वट्टी ने बताया कि बिट्टे परंपरा में केवल खेत की जुताई तक सीमित नही है बल्कि यदि भारी बारिश में यदि खेतों में ज्यादा पानी आ जाए तो उसे भी एक साथ मिल कर मेड़ को दुरस्त किया जाता है और यदि किसी किसान की मृत्यु हो जाती है तो उसके पूरे कार्यक्रम के लिए गांव वाले एक साथ आते हैं और दाल चावल देते हैं।
गांव के युवक परमानंद उइके ने बताया कि पिछले साल ओर उससे पहले भी जब भी क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोसित किया गया था तब भी हम गांव वाले नही घबराए। एक साथ मिल कर इस सूखे से गुजरे। परमानंद ने बताया कि सभी गांववालों ने एक साथ मिल कर चौपाल लगाया और हर समस्या का निदान किया है। उनके गांव के पूर्वजों, बुजुर्गों ने सिखाया है कि एकता में ही ताकत है। परमानंद ने देश के सभी किसानों को संदेश दिया है कि आप भी बिट्टे परम्परा को निभाएं। इस परम्परा से किसान आर्थिक तंगी से दूर होगा। किसी भी बैंक और साहूकार के पास जाने की जरूरत नही होगी। सभी किसान आपस मे मिल कर खेती किसानी का काम करें।
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गांव की महिला सुखमय ने बताया कि बिट्टे परपंरा में गांव के सभी लोग चाहे आदमी हो या महिला हो सभी मिल जुल कर खेती करते हैं। जातपात से दूर एक–दूसरे को समझे हुए कंधे से कंधा मिला कर महिला खेतों में उतार कर हल चलाती हैं। एक साथ सभी मिल कर खाना खाते हैं। गांव के युवक राजू यादव ने बताया कि उन्हें सरकार की योजनाओ की आवश्यकता नहीं है। उन गांववालों की एकता ही अपने आप मे सरकार है। न तो तारलकट्टा का किसान किसी साहूकार से कर्ज लेता है और न ही किसी बैंक के चक्कर काटने पड़ते है।
गांव की बिट्टे परम्परा वाकई में तारीफे काबिल है। यह इंसान को इंसान से जोड़ती है। उसके दुख तकलीफ को जोड़ती है। अच्छी बात यह है यहां के किसान सरकार और साहूकार की तरफ देखते ही नहीं हैं। उन्हें किसानी कार्य के लिए कर्ज की आवश्यता ही नहीं। अगर देश के हर गांव का किसान इसी परम्परा की निभाएगा तो वाकई खेती लाभ का धंधा बनेगा और किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।
वेब डेस्क, IBC24

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