रहस्य से भरा डोंगरगढ़ का बम्लेश्वरी मंदिर

रहस्य से भरा डोंगरगढ़ का बम्लेश्वरी मंदिर

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  • Publish Date - November 7, 2017 / 11:37 AM IST,
    Updated On - November 28, 2022 / 11:23 PM IST

छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में स्थित है मां बम्लेश्वरी का भव्य मंदिर।  राज्य की सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी का इतिहास काफी पुराना है. वैसे तो साल भर यहां भक्तों का रेला लगा रहता है, लेकिन लगभग दो हजार साल पहले माधवानल और कामकंदला की प्रेम कहानी से महकने वाली इस कामाख्या नगरी में नवरात्रि के दौरान अलग ही दृश्य होता है
डोंगरगढ़ में जमीन से करीब 2 हजार फीट की ऊंचाई पर विराजती है मां बमलेश्वरी. मां की एक झलक पाने के लिए दूर-दूर से भक्तों का जत्था माता के इस धाम में पहुंचता है. कोई रोप वे का सहारा लेकर तो कोई पैदल ही चलकर माता के इस धाम में अपने आस्था के फूल चढ़ाने पहुंचता है.
मंदिर में प्रवेश करते ही सिंदूरी रंग में सजी मां बमलेश्वरी का भव्य रूप बरबस ही भक्तों को आपनी ओर खींच लेता है. साल के दो नवरात्रों चैत्र और शारदीय नवरात्रों में तो यहां की छटा देखते ही बनती है. लंबी-लंबी कतारों में खड़े भक्त घंटों यहां मां की एक झलक भर पाने का इंतजार करते हैं.

प्रकृति के करीब छत्तीसगढ़ का बारनवापारा

पुत्र प्राप्ति के लिए  बनवाया था मंदिर

छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ के इतिहास में कामकंदला और माधवानल की प्रेम कहानी बेहद लोकप्रिय है। लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व कामाख्या नगरी में राजा वीरसेन का शासन था. वे नि:संतान थे. संतान की कामना के लिए उन्होंने भगवती दुर्गा और शिवजी की उपासना की। इसके फलस्वरूप उन्हें एक साल के अंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. वीरसेन ने पुत्र का नाम मदनसेन रखा. मां भगवती और भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए राजा ने मां बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया।बाद में मदनसेन के पुत्र कामसेन ने राजगद्दी संभाली। कामसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे. कला, नृत्य और संगीत के लिए विख्यात् कामाख्या नगरी में कामकंदला नाम की राज नर्तकी थी.राचीन काल में यह स्थान कामावती नगर के नाम से विख्यात था. कहते हैं यहां के राजा कामसेन बड़े प्रतापी और संगीत-कला के प्रेमी थे. राजा कामसेन के ऊपर बमलेश्वरी माता की विशेष कृपा थी. उनके राज दरबार में कामकंदला नाम की अति सुंदर राज नर्तकी और माधवानल जैसे संगीतकार थे. एक बार दोनों की कला से प्रसन्न होकर राजा ने माधवानल को अपने गले का हार दे दिया.

माधवानल ने इसका श्रेय कामकंदला को देते हुए वह हार उसको पहना दिया. इससे राजा ने अपने को अपमानित महसूस किया और गुस्से में आकर माधवानल को राज्य से बाहर निकाल दिया. इसके बावजूद कामकंदला और माधवानल छिप-छिपकर मिलते रहे. एक बार माधवानल उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की शरण में गए और उनका मन जीतकर उनसे पुरस्कार स्वरूप कामकंदला को राजा कामसेन से मुक्त कराने की बात कही.

राजा विक्रमादित्य ने दोनों के प्रेम की परीक्षा ली और दोनों को खरा पाकर कामकंदला की मुक्ति के लिए पहले राजा कामसेन के पास संदेश भिजवाया. राजा के इनकार करने पर दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया. दोनों वीर योद्धा थे और एक महाकाल का भक्त था तो दूसरा विमला माता का. दोनों ने अपने-अपने इष्टदेव का आह्वान किया तो एक ओर से महाकाल और दूसरी ओर भगवती विमला मां अपने-अपने भक्तों की सहायता करने पहुंचे. युद्ध के दुष्परिणाम को देखते हुए महाकाल ने विमला माता से राजा विक्रमादित्य को क्षमा करने की प्रार्थना की और कामकंदला और माधवानल को मिलाकर वे दोनों अंतर्ध्यान हो गए.

छत्तीसगढ़ का खजुराहो भोरमदेव

वही विमला मां आज बमलेश्वरी देवी के रूप में छत्तीसगढ़ वासियों की अधिष्ठात्री देवी हैं. अतीत के अनेक तथ्यों को अपने गर्भ में समेटे ये पहाड़ी अनादिकाल से जगत जननी मां बमलेश्वरी देवी की सर्वोच्च शाश्वत शक्ति का साक्षी है. मां बमलेश्वरी के आशीर्वाद से भक्तों को शत्रुओं को परास्त करने की शक्ति मिलती है साथ ही विजय का वरदान मिलता है. मुश्किलों को हर कर मां अपने भक्तों को मुश्किलों से लड़ने की रास्ता दिखाती हैं.

मां बमलेश्वरी के दरबार में दो पहर होने वाली आरती का महत्व भी कुछ कम नहीं है. घंटी-घडियालों के बीच आरती की लौ के साथ श्रद्धालुओं की भीड़, माता के गीतों को गाते-गुनगुनाते हैं. मां बमलेश्वरी के मंदिर में भक्ति का अलौकिक नजारा देखने वालों को बांध लेता है, भक्ति के रस में डुबो देता है.

मां बमलेश्वरी बगलामुखी का रूप हैं तो वहीं हिमाचल के कांगड़ा में सुंदर पहाड़ियों के बीच साक्षात विजारती हैं मां बगलामुखी. 10 महाविद्याओं में से एक मां बगलामुखी के इस दरबार में भगवान राम ने तपस्या कर रावण पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद पाया था.

मां बगलामुखी के दरबार में हवन करने की विधि बेहद अनूठी है क्योंकि यहां हवन सामग्री में लाल मिर्च का इस्‍तेमाल किया जाता है. कहते हैं लाल मिर्च को शत्रु नाशक माना जाता है, जिसका पूजा में इस्तेमाल करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है.

प्रकृति की सुंदरता से भरपूर है जतमई और घटारानी

राचीन काल में यह स्थान कामावती नगर के नाम से विख्यात था. कहते हैं यहां के राजा कामसेन बड़े प्रतापी और संगीत-कला के प्रेमी थे. राजा कामसेन के ऊपर बमलेश्वरी माता की विशेष कृपा थी. उनके राज दरबार में कामकंदला नाम की अति सुंदर राज नर्तकी और माधवानल जैसे संगीतकार थे. एक बार दोनों की कला से प्रसन्न होकर राजा ने माधवानल को अपने गले का हार दे दिया.

माधवानल ने इसका श्रेय कामकंदला को देते हुए वह हार उसको पहना दिया. इससे राजा ने अपने को अपमानित महसूस किया और गुस्से में आकर माधवानल को राज्य से बाहर निकाल दिया. इसके बावजूद कामकंदला और माधवानल छिप-छिपकर मिलते रहे. एक बार माधवानल उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की शरण में गए और उनका मन जीतकर उनसे पुरस्कार स्वरूप कामकंदला को राजा कामसेन से मुक्त कराने की बात कही.

राजा विक्रमादित्य ने दोनों के प्रेम की परीक्षा ली और दोनों को खरा पाकर कामकंदला की मुक्ति के लिए पहले राजा कामसेन के पास संदेश भिजवाया. राजा के इनकार करने पर दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया. दोनों वीर योद्धा थे और एक महाकाल का भक्त था तो दूसरा विमला माता का. दोनों ने अपने-अपने इष्टदेव का आह्वान किया तो एक ओर से महाकाल और दूसरी ओर भगवती विमला मां अपने-अपने भक्तों की सहायता करने पहुंचे. युद्ध के दुष्परिणाम को देखते हुए महाकाल ने विमला माता से राजा विक्रमादित्य को क्षमा करने की प्रार्थना की और कामकंदला और माधवानल को मिलाकर वे दोनों अंतर्ध्यान हो गए.

वही विमला मां आज बमलेश्वरी देवी के रूप में छत्तीसगढ़ वासियों की अधिष्ठात्री देवी हैं. अतीत के अनेक तथ्यों को अपने गर्भ में समेटे ये पहाड़ी अनादिकाल से जगत जननी मां बमलेश्वरी देवी की सर्वोच्च शाश्वत शक्ति का साक्षी है. मां बमलेश्वरी के आशीर्वाद से भक्तों को शत्रुओं को परास्त करने की शक्ति मिलती है साथ ही विजय का वरदान मिलता है. मुश्किलों को हर कर मां अपने भक्तों को मुश्किलों से लड़ने की रास्ता दिखाती हैं.

मां बमलेश्वरी के दरबार में दो पहर होने वाली आरती का महत्व भी कुछ कम नहीं है. घंटी-घडियालों के बीच आरती की लौ के साथ श्रद्धालुओं की भीड़, माता के गीतों को गाते-गुनगुनाते हैं. मां बमलेश्वरी के मंदिर में भक्ति का अलौकिक नजारा देखने वालों को बांध लेता है, भक्ति के रस में डुबो देता है.

मां बमलेश्वरी बगलामुखी का रूप हैं तो वहीं हिमाचल के कांगड़ा में सुंदर पहाड़ियों के बीच साक्षात विजारती हैं मां बगलामुखी. 10 महाविद्याओं में से एक मां बगलामुखी के इस दरबार में भगवान राम ने तपस्या कर रावण पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद पाया था.

मां बगलामुखी के दरबार में हवन करने की विधि बेहद अनूठी है क्योंकि यहां हवन सामग्री में लाल मिर्च का इस्‍तेमाल किया जाता है. कहते हैं लाल मिर्च को शत्रु नाशक माना जाता है, जिसका पूजा में इस्तेमाल करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है.

बाबा की तपोभूमि -गिरौधपुरी धाम

एक बार माधवानल की संगत में कामकंदला नृत्य कर रही थी। बहुत अच्छी प्रस्तुति के बाद राजा ने प्रसन्न होकर माधवानल को पुरस्कार दिया, लेकिन राजा के द्वारा दिया गया पुरस्कार उन्होंने राज नर्तकी को दे दिया। इससे राजा कुपित हो गए। राजा ने उन्हें तत्काल राज्य की सीमा से बाहर जाने का आदेश दिया, लेकिन माधवनल राज्य से बाहर न जाकर डोंगरगढ की पहाडियो की गुफा मे छिप गया। कामलन्दला अपनी सहेली माधवी के साथ छिपकर माधवनल से मिलने जाया करती थी। दूसरी तरफ राजा कामसेन का पुत्र मदनादित्य पिता के स्वभाव के विपरीत नास्तिक व अय्याश प्रकृति का था। वह कामकन्दला को मन ही मन चाहता था और उसे पाना चाहता था। मदनादित्य के डर से कामकन्दला उससे प्रेम का नाटक करने लगी। एक दिन माधवनल रात्रि मे कामकन्दला से मिलने उसके घर पर था कि उसी वक्त मदनादित्य अपने सिपाहियो के साथ कामकन्दला से मिलने चला गया। यह देख माधवनल पीछे के रास्ते से गुफा की ओर निकल गया। घर के अंदर आवाजे आने की बात पूछ्ने पर कामकन्दला ने दीवारों से अकेले मे बात करने की बात कही। इससे मदनादित्य संतुष्ट नही हुआ और अपने सिपाहियो से घर पर नजर रखने को कहकर महल की ओर चला गया। एक रात्रि पहाडियो से वीणा की आवाज सुन व कामकन्दला को पहाडी की तरफ जाते देख मदनादित्य रास्ते मे बैठकर उसकी प्रतिक्षा करने लगा परन्तु कामकन्दला दूसरे रास्ते से अपने घर लौट गई। मदनादित्य ने शक होने पर कामकन्दला को उसके घर पर नजरबंद कर दिया। इस पर कामकन्दला और माधवनल माधवी के माध्यम से पत्र व्यवहार करने लगे किन्तु मदनादित्य ने माधवी को एक रोज पत्र ले जाते पकड लिया। डर व धन के प्रलोभन से माधवी ने सारा सच उगल दिया।
मदनादित्य ने कामकन्दला को राजद्रोह के आरोप मे बंदी बनाया उधर माधवनल को पकडने सिपाहियो को भेजा। सिपाहियो को आते देख माधवनल पहाडी से निकल भागा और उज्जैन जा पहुचां। उस समय उज्जैन मे राजा विक्रमादित्य का शासन था जो बहुत ही प्रतापी और दयावान राजा थे। माधवनल की करूण कथा सुन उन्होने माधवनल की सहायता करने की सोच अपनी सेना कामाख्या नगरी पर आक्रमण कर दिया। कई दिनो के घनघोर युध्द के बाद विक्रमादित्य विजयी हुए एवं मदनादित्य, माधवनल के हाथो मारा गया। घनघोर युध्द से वैभवशाली कामाख्या नगरी पूर्णतः ध्वस्त हो गई। चारो ओर शेष डोंगर ही बचे रहे तथा इस प्रकार डुंगराज्य नगर पृष्टभुमि तैयार हुई। युध्द के पश्चात विक्रमादित्य द्वारा कामकन्दला एवं माधवनल की प्रेम परिक्षा लेने हेतु जब यह मिथ्या सूचना फैलाई गई कि युध्द मे माधवनल वीरगति को प्राप्त हुआ तो कामकन्दला ने ताल मे कूदकर प्राणोत्सर्ग कर दिया। वह तालाब आज भी कामकन्दला के नाम से विख्यात है. उधर कामकन्दला के आत्मोत्सर्ग से माधवनल ने भी अपने प्राण त्याग दिये। अपना प्रयोजन सिध्द होते ना देख राजा विक्रमादित्य ने माँ बम्लेश्वरी देवी (बगुलामुखी) की आराधना की और अतंतः प्राणोत्सर्ग करने को तत्पर हो गये। तब देवी ने प्रकट होकर अपने भक्त को आत्मघात से रोका। तत्पश्चात विक्रमादित्य ने माधवनल कामकन्दला के जीवन के साथ यह वरदान भी मांगा कि माँ बगुलामुखी अपने जागृत रूप मे पहाडी मे प्रतिष्टित हो. तबसे माँ बगुलामुखी अपभ्रंश बम्लेश्वरी देवी साक्षात महाकाली रूप मे डोंगरगढ मे प्रतिष्ठित है.

मां बम्लेश्वरी  मंदिर  कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां

1. एतिहासिक और धार्मिक  नगरी डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी के दो मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। एक मंदिर 16 सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जो बड़ी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। समतल पर स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से विख्यात है.

2. ऊपर विराजित मां और नीचे विराजित मां को एक दूसरे की बहन कहा जाता है। ऊपर वाली मां बड़ी और नीचे वाली छोटी बहन मानी गई है.

3.  सन 1964 में खैरागढ़ रियासत के भूतपूर्व नरेश श्री राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने एक ट्रस्ट की स्थापना कर मंदिर का संचालन ट्रस्ट को सौंप दिया था.

4.  मां बम्लेश्वरी देवी शक्तिपीठ का इतिहास लगभग 2200 वर्ष पुराना है। डोंगरगढ़ से प्राप्त भग्रावेशों से प्राचीन कामावती नगरी होने के प्रमाण मिले हैं। पूर्व में डोंगरगढ़ ही वैभवशाली कामाख्या नगरी कहलाती थी.

5.  मां बम्लेश्वरी मंदिर के इतिहास को लेकर कोई स्पष्ट  तथ्य तो मौजूद नहीं है, लेकिन मंदिर के इतिहास को लेकर जो पुस्तकें और दस्तावेज सामने आए हैं, उसके मुताबिक डोंगरगढ़ का इतिहास मध्यप्रदेश के उज्जैन से जुड़ा हुआ है.

6.  मां बम्लेश्वरी को मध्यप्रदेश के उज्जैयनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुल देवी भी कहा जाता है.

7.  इतिहासकारों और विद्वानों ने इस क्षेत्र को कल्चूरी काल का पाया है लेकिन अन्य उपलब्ध सामग्री जैसे जैन मूर्तियां यहां दो बार मिल चुकी हैं, तथा उससे हटकर कुछ मूर्तियों के गहने, उनके वस्त्र, आभूषण, मोटे होठों तथा मस्तक के लम्बे बालों की सूक्ष्म मीमांसा करने पर इस क्षेत्र की मूर्ति कला पर गोंड कला का प्रमाण परिलक्षित हुआ है.

8.  यह अनुमान लगाया जाता है कि 16 वीं शताब्दी तक  डूंगराख्या नगर गोंड राजाओं के अधिपत्‍य में रहा। यह अनुमान भी अप्रासंगिक  नहीं है कि गोंड राजा पर्याप्त समर्थवान थे, जिससे राज्य में शांति व्यवस्था स्थापित थी। आज भी पहाड़ी में किले के बने हुए अवशेष बाकी हैं। इसी वजह से इस स्थान का नाम डोंगरगढ़ (गोंगर, पहाड़, गढ़, किला) रखा गया और मां बम्लेश्वरी का मंदिर चोटी पर स्थापित किया गया.

9.  एतिहासिक और धार्मिक स्थली डोंगरगढ़ में कुल 11 सौ सीढिय़ां चढऩे के बाद मां के दर्शन होते हैं.

10.  यात्रियों की सुविधा के लिए रोपवे का निर्माण किया गया है। रोपवे सोमवार से शनिवार तक सुबह आठ से दोपहर दो और फिर अपरान्ह तीन से शाम पौने सात तक चालू रहता है। रविवार को सुबह सात बजे से रात सात बजे तक चालू रहता है। नवरात्रि के मौके पर चौबीसों घंटे रोपवे की सुविधा रहती है।

11.  मंदिर के नीचे छीरपानी जलाशय है जहां यात्रियों के लिए बोटिंग की व्यवस्था भी है.

12.  डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी के दो मंदिरों के अलावा बजरंगबली मंदिर, नाग वासुकी मंदिर, शीतला मंदिर,  दादी मां मंदिर भी हैं.

13.  मुंबई हावड़ा मार्ग पर राजनांदगांव से डोंगरगढ़ जाते समय राजनांदगांव में मां पाताल भैरवी दस महाविद्या पीठ मंदिर है, जो अपनी भव्यता के चलते दर्शनीय है। जानकार बताते हैं कि विश्‍व के सबसे बडे शिवलिंग के आकार के मंदिर में मां पातालभैरवी विराजित हैं। तीन मंजिला इस मंदिर में पाताल में मां पाताल भैरवी, प्रथम तल में दस महाविद़़यापीठ और ऊपरी तल पर भगवान शंकर का मंदिर है.
14.  मंदिर का पट सुबह चार बजे से दोपहर एक बजे तक और फिर दोपहर दो बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। रविवार को सुबह चार बजे से रात दस बजे तक मंदिर लगातार खुला रहता है.
15.  नवरात्रि के मौके पर मंदिर का पट चौबीसों घंटे खुला रहता है.
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