बहराइच वन्यजीव हमला: विशेषज्ञों ने भेड़ियों से जुड़ी भ्रांतियों को किया खारिज किया, संरक्षण पर जोर

बहराइच वन्यजीव हमला: विशेषज्ञों ने भेड़ियों से जुड़ी भ्रांतियों को किया खारिज किया, संरक्षण पर जोर

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  • Publish Date - September 12, 2024 / 07:27 PM IST,
    Updated On - September 12, 2024 / 07:27 PM IST

बहराइच (उप्र) 12 सितंबर (भाषा)बहराइच में भेड़ियों के हमलों की बढ़ती संख्या और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जरूरत पड़ने पर उन्हें गोली मारने के आदेश के बीच विशेषज्ञों ने विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी इस प्रजाति के सरंक्षण पर जोर दिया है।

वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि भेड़िये शर्मीले प्रवृति के होते हैं और झुंड में रहते हैं जो अपने सदस्यों के प्रति सहानुभूति दिखाते हैं।

बहराइच की महसी तहसील में मार्च से अब तक भेड़ियों के कथित हमलों में नौ बच्चों सहित 10 लोग मारे जा चुके हैं तथा क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष में लगभग तीन दर्जन लोग घायल हुए हैं। सरकार ने इसे ‘‘वन्यजीव आपदा’’ घोषित किया है। इन 10 मौतों में से आठ लोगों की मौतें पिछले दो महीनों में हुई हैं, जबकि 50 गांवों के निवासी भय के साए में जी रहे हैं।

राज्य सरकार ने 17 जुलाई से भेड़ियों को पकड़ने के लिए ‘ऑपरेशन भेड़िया’ शुरू किया है। भेड़ियों के कथित हमलावर झुंड में से पांच को पहले ही बचा लिया गया है जबकि झुंड के छठे भेड़िये को खोजने के प्रयास चल रहे हैं, जिसकी तस्वीरें पिछले महीने ड्रोन कैमरे के जरिए देखी गई थीं।

बहराइच में ‘ऑपरेशन भेड़िया’ का नेतृत्व कर रहे भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी और दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के पूर्व फील्ड निदेशक संजय पाठक ने भेड़ियों और उनके व्यवहार के बारे में आम गलत धारणाओं की जानकारी दी।

पाठक ने भेड़ियों के नकारात्मक चित्रण की आलोचना करते हुए कहा, ‘‘मनुष्य भेड़ियों को बहुत पूर्वाग्रह से देखते हैं। उदाहरण के लिए, कोलकाता बलात्कार मामले के मुख्य आरोपी को ‘भूखा भेड़िया’ कहा जा रहा । हालांकि, भेड़िये आम तौर पर शर्मीले और सामाजिक प्राणी होते हैं।’’

उन्होंने कहा कि भेड़िये की सामाजिकता का उदाहरण यह है कि नर भेड़िया हमेशा एक ही मादा भेड़िए के साथ सहवास करता है। किसी दूसरे की साथी मादा को छीनकर जबरन सहवास नहीं करता।

पाठक ने भेड़ियों द्वारा फेरोमोन के माध्यम से संचार के महत्व पर जोर दिया, जो जानवरों द्वारा हवा में छोड़े जाने वाले रासायनिक संदेशवाहक हैं। उन्होंने कहा, ‘‘भेड़ियों में अन्य जानवरों और मनुष्यों की तुलना में गंध और धारणा की अधिक तीव्र भावना होती है, क्योंकि अधिकांश आधुनिक कुत्तों का विकसा भेड़ियों से हुआ है।

उन्होंने कहा कि भारत के कुछ हिस्सों में भेड़ियों का सांस्कृतिक महत्व भी है, उदाहरण के लिए बिहार में लोग भेड़ियों की मांद की पूजा करते हैं और नवविवाहितों के लिए इन मांदों के पास जाकर प्रार्थना करना एक परंपरा है।

देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के वरिष्ठ वैज्ञानिक और भेड़िया विशेषज्ञ डॉ. शहीर खान ने कहा कि भेड़िये ‘‘समूह में रहने वाले सामाजिक प्राणी हैं।’’

डॉ. खान ने भारत में पाए जाने वाले दो प्रकार के भेड़ियों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाने वाले भेड़िये ‘कैनिस लूपस चान्को’ और बहराइच जैसे तराई क्षेत्रों में पाए जाने वाले भेड़ियों की पहचान ‘कैनिस लूपस पैलिप्स’ के तौर पर की जाती है।

खान ने कहा, ‘‘ये जानवर एक अल्फा जोड़ी के नेतृत्व में झुंड में रहते हैं जो अपने बच्चों का पालन-पोषण करता है और उन वृद्ध भेड़ियों की देखभाल करता है जो अब शिकार नहीं कर सकते।’’

खान ने झुंड की संरचना पर प्रकाश डालते हुए कहा,‘‘जब भेड़िये वयस्क हो जाते हैं, तो वे अलग-अलग क्षेत्रों में नए जोड़े बनाने के लिए झुंड को छोड़ देते हैं। एक ही मादा से उत्पन्न नर-मादा भेड़िये आपस में सहवास नहीं करते।’’

उन्होंने भेड़ियों और मनुष्यों दोनों की सुरक्षा के लिए डब्ल्यूआईआई के दोहरे मिशन पर भी जोर देते हुए कहा, ‘‘हमारा उद्देश्य भेड़ियों के सकारात्मक पहलुओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना है, साथ ही हम आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए भी काम कर रहे हैं।’’

सेवानिवृत्त भारतीय वन सेवा (आईएफएस) अधिकारी ज्ञान प्रकाश सिंह, जो पहले कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य में प्रभागीय वन अधिकारी के रूप में कार्यरत थे और अब डब्ल्यूआईआई में योगदान देते हैं। उन्होंने कहा कि भेड़िये आमतौर पर जोड़े में रहते हैं, लेकिन एक ही मादा से पैदा हुए नर एवं मादा भेड़िये जोड़े को एक साथ रहने की अनुमति नहीं देते। मादा भेड़िया वयस्क होने पर अपने बच्चों को झुंड से निष्कासित कर देती है ताकि अंतर सहवास न हो।

भाषा सं जफर धीरज

धीरज