छत्तीसगढ़ का बस्तर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र अपने अनूठे आदिवासी मूल निवासियों और संस्कृति के लिए जाना जाता है। यह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है।

बस्तर और दंतेवाड़ा जिले पहले बस्तर रियासत का हिस्सा थे। 1947 में भारत की स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, बस्तर और कांकेर की रियासतें भारत सरकार में शामिल हो गईं।

राज्य में कुल 1,89,16,285 मतदाता हैं, जिनमें 94,77,113 पुरुष और 94,38,463 महिला हैं। वहीं 709 ट्रांसजेंडर मतदाता हैं। बस्तर के लोग जमीन के साथ लगभग पूरी तरह से खेती पर निर्भर हैं।

पिछ्ला चुनाव यहाँ कांग्रेस ने जीता था। दीपक बैज ने कुल पड़े वोटो का 44 फ़ीसदी से ज्यादा हासिल किया था। उन्होंने भाजपा के बैदू राम कश्यप को हराया था।

2019 का लोकसभा चुनाव बस्तर में मैदान के लिहाज से काफी खास था। यहाँ नोटा तीसरे स्थान पर रही। यहां नोटा पर साढ़े 41 हजार से ज्यादा वोट पड़े थे।

2014 में हुए लोकसभा इलेक्शन में यहाँ मोदी लहर का असर दिखा। तब भाजपा के दिनेश कश्यप ने करीब 4 लाख वोट हासिल किये थे। दीपक कर्मा को इस चुनाव में हार मिली थी।

इससे पहले 2009 में यहाँ से सांसद रहे बलिराम कश्यप। तब उनका मुकाबला कांग्रेस के शंकर सोढ़ी से था। तब बलिराम को कुल पड़े मतों का सिर्फ 20% ही हासिल हुआ था।

2004, 1999 और 1998 में भी इस सीट से बलिराम कश्यप सांसद रहे। 1996 में हुए आम चुनाव में बस्तर टाइगर रहे महेंद्र कर्मा को यहाँ से सांसद बनने का मौका मिला।

मनकूराम सोढ़ी भी यहाँ से लगातर तीन बार सांसद रहे। उन्होंने यहाँ से 1984, 1989 और 1991 के चुनाव में जीत हासिल की। तब यहाँ तीसरी ताकत के तौर पर सीपीआई भी मैदान में थी।

इस बार यहाँ मुकाबला भाजपा के महेश कश्यप और छत्तीसगढ़ सरकार के पूर्व मंत्री और दिग्गज नेताकवासी लखमा के बीच हैं। यहाँ पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान हैं।