गणेश चतुर्थी का पर्व शुरू होते ही चारों ओर 'गणपति बप्पा मोरया' का जयकारा गुंजने लगता है।
लेकिन क्या आपको पता है कि गणपति बप्पा मोरया में 'मोरया' का क्या अर्थ है? चलिए इस बारे में जानते हैं।
हमारी अवाज महज ध्वनि नहीं, हमारे आत्मा की अभिव्यक्ति है।
मोरया का अर्थ शास्त्र या पुराण से नहीं बल्कि बप्पा के भक्त से जुड़ा है। इस भक्त का नाम मोरया गोसावी है।
हमारी अवाज महज ध्वनि नहीं, हमारे आत्मा की अभिव्यक्ति है।
मान्यता है कि संत मोरया गोसावी भगवान गणेश के अंश थे और उन्होंने अपना जीवन बप्पा की सेवा में समर्पित कर दिया।
हमारी अवाज महज ध्वनि नहीं, हमारे आत्मा की अभिव्यक्ति है।
बचपन से ही मोरया गोसावी मयूरेश्वर गणेश की भक्ति में लीन हो गए और हर गणेश चतुर्थी के दिन चिंचवाड़ से 95 km दूर पैदल चलकर मयूरेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए जाते थे।
हमारी अवाज महज ध्वनि नहीं, हमारे आत्मा की अभिव्यक्ति है।
लेकिन बुढ़ापा आ जाने पर इनके लिए इतनी लंबी दूरी तय करके मयूरेश्वर मंदिर पहुंचना कठिन हो गया।
हमारी अवाज महज ध्वनि नहीं, हमारे आत्मा की अभिव्यक्ति है।
एक दिन बप्पा इनके सपने में आए और कहा कि अब तुम्हें मयूरेश्वर मंदिर तक नहीं आना है। कल जब तुम स्नान करके कुंड से निकलोगे, तो तुम मुझे अपने पास पाओगे।