सनातन धर्म में तुलसी के पौधे को पूजनीय माना जाता है। ज्यादातर घरों में नियमित रूप से इनकी पूजा होती है और इन्हें घर में रखने के कई नियम भी बनाए गए हैं।
मान्यता है कि जिस घर में तुलसी की नियमित पूजा होती है वहां लक्ष्मी निवास करती हैं। इस पौधे की पत्तियों के साथ-साथ इसकी मंजरी का भी खास महत्व है।
हमारी अवाज महज ध्वनि नहीं, हमारे आत्मा की अभिव्यक्ति है।
मान्यतानुसार तुलसी के पौधे पर लगी मंजरी को माता के सिर पर भार होता है, इसलिए इसे तोड़ना चाहिए। हालांकि इसे तोड़ने के कुछ नियम हैं।
हमारी अवाज महज ध्वनि नहीं, हमारे आत्मा की अभिव्यक्ति है।
मंजरी को तुलसी माता का नाखून भी कहा जाता है। इसे कभी भी रविवार या मंगलवार के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
हमारी अवाज महज ध्वनि नहीं, हमारे आत्मा की अभिव्यक्ति है।
जब तुलसी के पौधे पर पहली बार मंजरी आती है, तो तुरंत उसे नहीं तोड़ना चाहिए। क्योंकि मंजरी आना बहुत शुभ माना जाता है।
हमारी अवाज महज ध्वनि नहीं, हमारे आत्मा की अभिव्यक्ति है।
लेकिन यदि आप इसे किसी भी पूजा-पाठ के लिए तोड़ते हैं, तो आपको ध्यान देना चाहिए कि जब मंजरी भूरे रंग की हो जाए तभी इसे तोड़ना चाहिए।
हमारी अवाज महज ध्वनि नहीं, हमारे आत्मा की अभिव्यक्ति है।
इस बात का भी खास ध्यान रखें कि तुलसी की मंजरी तोड़ने के बाद पैरों के नीचे नहीं पड़नी चाहिए।
हमारी अवाज महज ध्वनि नहीं, हमारे आत्मा की अभिव्यक्ति है।
मान्यता है कि यदि आप जल्दबाजी में मंजरी को तोड़ते हैं, तो यह अशुभ फल दे सकता है और घर में सुख-शांति में बाधा डाल सकता है।
हमारी अवाज महज ध्वनि नहीं, हमारे आत्मा की अभिव्यक्ति है।
तुलसी की मंजरी तोड़ने से पहले हाथ जोड़कर तुलसी माता का ध्यान करें और उनसे क्षमा याचना करें। इससे कोई भी दोष नहीं लगता है।