परमाणु संचालित पनडुब्बियां खरीद रहा है ऑस्ट्रेलिया, लेकिन परमाणु बिजली पर अभी बात नहीं |

परमाणु संचालित पनडुब्बियां खरीद रहा है ऑस्ट्रेलिया, लेकिन परमाणु बिजली पर अभी बात नहीं

परमाणु संचालित पनडुब्बियां खरीद रहा है ऑस्ट्रेलिया, लेकिन परमाणु बिजली पर अभी बात नहीं

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:22 PM IST, Published Date : September 20, 2021/4:02 pm IST

(इयान लोवे, ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी)

ब्रिस्बेन, 20 सितंबर (द कन्वरसेशन) ऑस्ट्रेलिया की संघीय सरकार ने बृहस्पतिवार को अमेरिका और ब्रिटेन के साथ एक ऐतिहासिक रक्षा समझौते की घोषणा की जिसके तहत वह परमाणु संचालित पनडुब्बियां खरीद रही है।

प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने जोर देते हुए कहा कि रक्षा समझौते का यह मतलब नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया असैन्य परमाणु क्षमता विकसित करने के बारे में सोच रहा है। लेकिन गठबंधन सरकार के घटकों की ओर से देश में परमाणु ऊर्जा उद्योग के विकास के लिए पुरजोर समर्थन है। ऑस्ट्रेलिया की खनिज परिषद ने बृहस्पतिवार को पनडुब्बियों की घोषणा से ऑस्ट्रेलिया में परमाणु प्रौद्योगिकी के विस्तार की संभावनाओं की ओर इशारा किया।

अब यह चर्चा जोर पकड़ सकती है कि क्या ऑस्ट्रेलिया के लिए परमाणु बिजली सही है। यह भी स्पष्ट हो जाए कि प्रौद्योगिकी का ऑस्ट्रेलिया के लिए आर्थिक या राजनीतिक रूप से कोई मतलब नहीं है और यह जलवायु परिवर्तन का समयानुकूल जवाब नहीं होगा।

दोहरी चर्चा

परमाणु संचालित पनडुब्बियों और परमाणु ऊर्जा की बात अक्सर साथ में होती है। चूंकि प्रौद्योगिकी समान है। किसी परमाणु संचालित पनडुब्बी के लिए ऊर्जा का स्रोत एक तरह से विद्युत संयंत्र का लघु स्वरूप ही है। इसी तरह यूरेनियम खनन और प्रसंस्करण, रियेक्टर में ईंधन भरने तथा कचरे के प्रबंधन के लिए भी समान आपूर्ति श्रृंखला होती है। इसका मतलब हुआ कि दोनों प्रौद्योगिकियों को समान कौशल और नियामक रूपरेखा चाहिए।

ऑस्ट्रेलिया की खनिज परिषद की प्रमुख कार्यकारी अधिकारी तानिया कांस्टेबल ने बृहस्पतिवार को पनडुब्बियों की घोषणा की प्रतिक्रिया में परमाणु ऊर्जा के साथ अन्य प्रौद्योगिकियों के सम्मिश्रण की ओर इशारा किया।

यह ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था के लिए एक प्रामाणिक अवसर है जिसमें न केवल इस नयी प्रौद्योगिकी के लिए कौशल और बुनियादी संरचना का विकास होगा, बल्कि इसकी मदद से तेजी से बढ़ते वैश्विक परमाणु ऊर्जा उद्योग और उसकी आपूर्ति श्रृंखलाओं से भी जुड़ा जा सकेगा।

अब ऑस्ट्रेलिया ऐसी परमाणु संचालित पनडुब्बियां खरीद रहा है जिनमें छोटे रियेक्टरों का इस्तेमाल होता है और इसलिए संभवत: वह अभी असैन्य उपयोग के लिए परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल पर विचार नहीं कर रहा।

ऑस्ट्रेलिया के पनडुब्बी बल के पूर्व कमांडर डेनिस मोले ने अप्रैल में सवाल उठाया था कि ऑस्ट्रेलिया में बड़ा और विविधतापूर्ण परमाणु उद्योग क्यों नहीं है।

मोले ने दलील दी थी कि दुनिया की 20 शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में ऑस्ट्रेलिया, इटली और सऊदी अरब को छोड़कर सभी के पास परमाणु ऊर्जा है। उन्होंने कहा था कि अगर देश 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं तो कोई बड़ी अर्थव्यवस्था बिना परमाणु ऊर्जा के ऐसा करने का इरादा नहीं रखती होगी।

इस साल फरवरी में हिंद-प्रशांत अनुसंधान कार्यक्रम संस्थान ‘फ्यूचर डायरेक्शन्स इंटरनेशनल’ में वरिष्ठ विश्लेषक लिंडसे ह्यूजेस ने भी सुझाया था कि ऑस्ट्रेलिया को परमाणु संचालित पनडुब्बी के बेड़े का समर्थन करने के लिए परमाणु ऊर्जा क्षेत्र का विकास करना चाहिए।

परमाणु ऊर्जा क्षेत्र होने से इंजीनियरिंग, भौतिकी और गणित में हुनर रखने वाले स्नातक छात्रों की मांग बढ़ेगी।

परमाणु ऊर्जा तर्कसंगत अगला कदम नहीं है।

अगर ऑस्ट्रेलिया को दक्षिण चीन सागर में गश्त करने के लिए परमाणु संचालित पनडुब्बियों की जरूरत है तो इससे इस तर्कसंगत निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता कि इसके लिए परमाणु ऊर्जा क्षेत्र का विकास जरूरी है।

पूर्व रक्षा मंत्री क्रिस्टोफर पायने ने इस साल मार्च में एक लेख में लिखा था कि बिना परमाणु ऊर्जा के ऑस्ट्रेलिया परमाणु पनडुब्बियों की मदद नहीं कर सकता, लेकिन परमाणु ऊर्जा उद्योग की स्थापना मुश्किल है।

ऑस्ट्रेलिया में परमाणु उद्योग नहीं है। इसे रातोंरात बनाया नहीं जा सकता। अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, जो नहीं है, तो भी इसके आगे बढ़ने की संभावना नहीं लगती।

ऑस्ट्रेलिया में परमाणु उद्योग का मतलब है कि सुरक्षित भंडारण और रेडियोधर्मी कचरे के निस्तारण की व्यवस्था हो। ऐसी संभावना दिख नहीं रही, क्योंकि जनता ऑस्ट्रेलिया में छोटे स्तर के परमाणु कचरे के निस्तारण के लिए भी कोई स्थान बनाये जाने का विरोध करेगी।

शोध भी बताते हैं कि परमाणु ऊर्जा उद्योग के लिए सामुदायिक समर्थन बहुत कम है। फुकुशिमा हादसे के बाद इस तरह की परिस्थितियां बन गयी हैं।

परमाणु पनडुब्बियों के फैसले से यूरेनियनम प्रसंस्करण, ईंधन और कचरा प्रबंधन जैसे नये मुद्दे सामने आएंगे। मॉरिसन सरकार को जनता को बताना होगा कि इनका प्रबंधन कैसे होगा।

परमाणु ऊर्जा एक समय पवन या सौर ऊर्जा से बहुत सस्ती मानी जाती थी, लेकिन अब अर्थव्यवस्थाएं तेजी से बदल गयी हैं। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण बहुत लागत वाला है।

भविष्य अक्षय ऊर्जा का है

ऑस्ट्रेलिया के 2009 के रक्षा श्वेतपत्र में लिखा गया था कि संघीय सरकार ने पनडुब्बियों के लिए परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल को खारिज कर दिया था। अब संघीय सरकार इस प्रौद्योगिकी के लिहाज से रूपरेखा तैयार करने के लिए भारी धन आवंटित करेगी।

परमाणु ऊर्जा के ज्यादा खतरों को कमतर बताने के लिए इस परियोजना पर भारी सरकारी सब्सिडी का हवाला नहीं दिया जाना चाहिए।

ऑस्ट्रेलिया में धूप और हवा पर्याप्त मिलती है और यह बिना सरकार की मदद के 2030 तक 50 प्रतिशत अक्षय या नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है। इस लिहाज से देखें तो ऑस्ट्रेलिया में परमाणु बिजली के बारे में सोचना बेतुकी बात है।

(द कन्वरसेशन) वैभव शाहिद

शाहिद

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)