क्वींसलैंड के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में जलवायु परिवर्तन पेड़ों को खत्म कर रहा है |

क्वींसलैंड के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में जलवायु परिवर्तन पेड़ों को खत्म कर रहा है

क्वींसलैंड के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में जलवायु परिवर्तन पेड़ों को खत्म कर रहा है

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:59 PM IST, Published Date : May 19, 2022/5:31 pm IST

लुकास सेर्नुसक : एसोसिएट प्रोफेसर, जेम्स कुक विश्वविद्यालय और सुसान लॉरेंस: प्रोफेसर, जेम्स कुक विश्वविद्यालय

मेलबर्न, 19 मई (द कन्वरसेशन) हाल के वर्षों में, ऑस्ट्रेलिया के पूर्वोत्तर तट पर ग्रेट बैरियर रीफ में बड़े पैमाने पर कोरल ब्लीचिंग की कई बड़ी घटनाएं हुई हैं क्योंकि मानव-जनित ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का तापमान लगातार बढ़ रहा है।

कोरल के साथ-साथ समन्दर का एक और शानदार प्राकृतिक आश्चर्य है: क्वींसलैंड के विश्व धरोहर-सूचीबद्ध आद्र उष्णकटिबंधीय वर्षावन।

यह पता चला है कि कोरल ब्लीचिंग में योगदान देने वाले जलवायु परिवर्तन ने ही इन शाही उष्णकटिबंधीय वर्षावनों के पेड़ों को खत्म करने में योगदान दिया है।

नए शोध में, हमने और हमारे सह-लेखकों ने पाया कि 1980 के दशक के मध्य से इन पेड़ों के खत्म होने की दर दोगुनी हो गई है, इनके खत्म होने का सबसे बड़ा कारण सुखाने की तीव्र शक्ति वाली गर्म हवा है। प्रवाल भित्तियों की तरह, ये पेड़ अपने विविध और प्रसिद्ध पारिस्थितिक तंत्रों को आवश्यक संरचना, ऊर्जा और पोषक तत्व प्रदान करते हैं।

50 साल का रिकॉर्ड

हमारा अध्ययन पूर्वोत्तर क्वींसलैंड में वर्षावनों में पेड़ों के 20 भूखंडों पर आधारित था, जिन्हें 1971 में ज्योफ स्टॉकर नामक एक वन वैज्ञानिक द्वारा शुरू की गई एक परियोजना में बनाया और मॉनिटर किया गया था।

इन भूखंडों को बाद में क्वींसलैंड वर्ल्ड हेरिटेज एरिया के वेट ट्रॉपिक्स में शामिल किया गया था, और निगरानी क्वींसलैंड के एथरटन में स्थित सीएसआईआरओ वैज्ञानिकों द्वारा की गई है।

भूखंड आमतौर पर आधा हेक्टेयर (5,000 वर्ग मीटर) आकार के होते हैं। प्रत्येक भूखंड में 10 सेमी व्यास से बड़े सभी पेड़ों की प्रजाति और व्यास दर्ज किया गया था।

भूखंडों का दो से लेकर लगभग पांच वर्षों के अंतराल पर पुनरीक्षण किया गया। पेड़ के व्यास फिर से दर्ज किए गए, साथ ही कोई भी नये पेड़ जो 10+ सेमी आकार वर्ग में विकसित हुए थे, और वह पेड़ जो मर गए थे।

इन वर्षों में, कुछ अतिरिक्त भूखंड शुरू किए गए और इसने हमारे विश्लेषण में योगदान दिया। लेकिन इन 20 ने एक विशिष्ट रूप से लंबा रिकॉर्ड प्रदान किया और डेटासेट के लिए आधार का काम किया।

पेड़ों का जीवनकाल

कई भूखंडों का कई बार दौरा किया गया, और प्रत्येक भूखंड पर कई वृक्ष प्रजातियों के साथ, हम प्रत्येक प्रजाति में पेड़ों के औसत प्रतिशत का अनुमान लगाने में सक्षम थे जो किसी दिए गए वर्ष (‘‘वार्षिक मृत्यु दर’’) में मर गए। हमने यह भी जांचा कि समय के साथ यह दर कैसे बदली है।

1980 के दशक के मध्य तक, औसत वार्षिक मृत्यु दर लगभग 1% थी। इसका मतलब है कि किसी भी वर्ष, 100 में से किसी एक पेड़ के मरने की संभावना होती है।

यह लगभग 100 वर्षों के औसत वृक्ष जीवन काल से मेल खाती है।

हालांकि, 1980 के दशक के मध्य में, वार्षिक मृत्यु दर में वृद्धि शुरू हुई। 2019 में हमारे डेटासेट के अंत तक, वृक्ष की औसत वार्षिक मृत्यु दर दोगुनी होकर 2% हो गई थी।

ये परिणाम एक ही समय में अमेज़ॅन वर्षावन में पेड़ों की मौत के समान पैटर्न से मेल खाते हैं, जो बताता है कि उष्णकटिबंधीय वृक्ष मृत्यु दर में वृद्धि व्यापक हो सकती है।

दोगुनी वार्षिक मृत्यु दर का मतलब है कि पेड़ केवल आधे समय तक जीवित रह रहे हैं, जिसका अर्थ है कि वे केवल आधे समय तक कार्बन का भंडारण कर रहे हैं।

यदि हमने जो प्रवृत्ति देखी है, वह सामान्य रूप से उष्णकटिबंधीय वनों का संकेत है, तो मानव गतिविधि से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को अवशोषित करने और कम करने के लिए उष्णकटिबंधीय जंगलों की क्षमता के लिए इसका बड़ा प्रभाव हो सकता है।

प्यासी हवा

उष्णकटिबंधीय पेड़ों की बढ़ती मृत्यु दर का क्या कारण है? पहला अनुमान तापमान में वृद्धि हो सकता है: हाल के दशकों में भूखंडों के औसत वायु तापमान में वृद्धि हुई है।

हालांकि, हमने यह नहीं पाया कि तापमान सीधे तौर पर मृत्यु दर में वृद्धि का कारण बना। इसके बजाय मृत्यु दर हवा की सुखाने की शक्ति या ‘‘प्यास’’ के साथ बेहतर संबंध रखती है, जिसे वैज्ञानिक ‘‘वायु वाष्प दबाव की कमी’’ कहते हैं।

आप शायद सापेक्ष आर्द्रता के विचार से परिचित हैं। यह आपको बताता है कि हवा में कितना जलवाष्प है, जो हवा में अधिकतम मात्रा में हो सकता है।

जब तापमान बढ़ता है, तो वायु की जलवाष्प धारण करने की क्षमता तेजी से बढ़ जाती है। वार्मिंग की प्रत्येक डिग्री से हवा की जल वाष्प धारण करने की क्षमता लगभग 7% बढ़ जाती है।

इसलिए यदि हवा का तापमान बढ़ता है, और सापेक्षिक आर्द्रता समान रहती है, तो हवा में जल वाष्प ग्रहण करने की अधिक क्षमता होगी।

पहले अनुमान के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के साथ यही हुआ है। हवा के तापमान में वृद्धि हुई है, सापेक्षिक आर्द्रता लगभग स्थिर बनी हुई है, और हवा प्यासी हो गई है।

इसका मतलब है कि वातावरण की सुखाने की शक्ति में वृद्धि हुई है। ऑस्ट्रेलियाई उष्णकटिबंधीय पेड़ों में बढ़ती मृत्यु दर को इस तरह बेहतरीन तरीके से समझा जा सकता है।

आगे क्या होगा

यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बेरोकटोक जारी रहा, तो हवा का तापमान और वायु वाष्प के दबाव की कमी दोनों में वृद्धि जारी रहेगी।

हमारे परिणाम बताते हैं कि यह उष्णकटिबंधीय वर्षावन पेड़ों की बढ़ती मृत्यु दर में और तेजी लाएगा।

प्रवाल भित्तियों की तरह, उष्णकटिबंधीय वर्षावन तब प्रजातियों की संरचना, जैव विविधता और त्रि-आयामी संरचना में अपेक्षाकृत तेजी से बदलाव का अनुभव कर सकते हैं, जिससे इन बेशकीमती ऑस्ट्रेलियाई पारिस्थितिक तंत्रों को खतरा हो सकता है इस खतरे को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कि ग्लोबल वार्मिंग को धीमा करने और अंततः वैश्विक जलवायु प्रणाली को स्थिर करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को तत्काल कम किया जाए।

द कन्वरसेशन एकता एकता

एकता

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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