मेकांग नदी के किनारे वाले देश बन रहे हैं दुनिया का कचरा जमा होने के स्थान |

मेकांग नदी के किनारे वाले देश बन रहे हैं दुनिया का कचरा जमा होने के स्थान

मेकांग नदी के किनारे वाले देश बन रहे हैं दुनिया का कचरा जमा होने के स्थान

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:02 PM IST, Published Date : September 23, 2022/4:03 pm IST

(डैनी मार्क्स, डबलिन सिटी यूनिवर्सिटी)

डबलिन, 23 सितंबर (360इंफो) जलीय प्रदूषण के कारण दुनियाभर में, खासतौर पर दक्षिण पूर्व एशिया में समुद्रों और नदियों में कचरा जमा होता जा रहा है और जब तक कुछ बदलाव नहीं किया जाता, हालात बदतर होते जाएंगे।

मेकांग नदी जिन देशों से होकर गुजरती है, वे दुनिया का कचरा स्थल बनते जा रहे हैं। कचरा नदियों में जमा होता जा रहा है, जिससे जलीय जीव मारे जा रहे हैं, वहीं समुद्री जीव प्लास्टिक भी निगल रहे हैं और बाद में इन जीवों का सेवन मनुष्य द्वारा किया जाता है। महामारी के दौरान यह स्थिति और भयावह हो गयी।

कोविड-19 के कारण दक्षिण पूर्व एशिया में प्लास्टिक कचरा बढ़ा है। एक बार इस्तेमाल होने वाले मास्क, खाद्य पदार्थों के पैकिंग वाले सामान और ऑनलाइन शॉपिंग की पैकेजिंग के अवशेष आदि का कचरा इस दौरान बढ़ा है।

अप्रैल 2020 में बैंकॉक में एकल इस्तेमाल वाले प्लास्टिक कचरे का दैनिक औसत 2,115 टन से बढ़कर 3,400 टन से अधिक हो गया था। लॉकडाउन के कारण फिलीपीन और वियतनाम जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में कचरे का पुनर्चक्रण (रिसाइक्लिंग) 80 प्रतिशत से अधिक रुक गया था।

महामारी के दौरान जमा कचरे से पहले भी प्लास्टिक की समस्त पैकेजिंग सामग्री का केवल नौ प्रतिशत निस्तारित किया जाता था और करीब 12 प्रतिशत को जलाया जाता था। बाकी 79 प्रतिशत कचरा कूड़ा डालने के स्थानों और प्राकृतिक पर्यावरण में जमा हो गया।

इसमें से ज्यादातर कचरा, विशेष रूप से प्लास्टिक समुद्र में चला जाता है। यूएन एनवॉयरमेंट के 2018 के एक अध्ययन के अनुसार हमारे समुद्रों में साल भर में करीब 1.3 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा जमा हो जाता है।

समुद्र में प्लास्टिक का प्रदूषण अनेक देशों की एक प्रमुख समस्या है, जिस पर प्रति वर्ष 2500 अरब डॉलर की अनुमानित लागत आती है। समुद्री जानवरों की करीब 267 प्रजातियां प्लास्टिक के कचरे के निगलने या अन्य कारणों से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई हैं जिनमें कछुए, व्हेल, मछली और समुद्री पक्षी आदि प्रमुख हैं। हालांकि यह संख्या और अधिक होगी क्योंकि छोटी प्रजातियों का ही अध्ययन किया जाता है।

इन जानवरों को खाते हुए मनुष्य भी प्लास्टिक निगल रहे हैं, जो कैंसर और बांझपन जैसे स्वास्थ्य जोखिमों का कारण है। यह कचरा समुद्र के विशाल क्षेत्र को घेर रहा है तथा प्लास्टिक तटों पर आ रहा है। लगभग 80 प्रतिशत कचरा जमीन आधारित है और यह नदियों और अन्य जलमार्गों के माध्यम से समुद्र में पहुंच गया होगा।

यदि गणना के अनुसार मौजूदा रुझान बना रहता है तो 2050 तक, महासागरों में प्लास्टिक का वजन मछलियों से ज्यादा हो जाएगा। सबसे अधिक प्लास्टिक प्रदूषण करने वाले छह देशों में से तीन – चीन, थाईलैंड और वियतनाम से मेकांग नदी गुजरती है और कई दक्षिण पूर्व एशियाई देश दुनिया के प्लास्टिक कचरे के डंपिंग ग्राउंड बन गए हैं।

जैसा कि 2019 में ‘ग्लोबल अलायंस फॉर इंसीनरेटर अल्टरनेटिव्स’ ने रेखांकित किया था, दक्षिण पूर्व एशिया में कचरा लगातार दूषित पानी, खराब फसल और सांस की बीमारियों का कारण बन रहा है। मछलियां प्लास्टिक खा रही हैं। थाईलैंड और इंडोनेशिया में मृत व्हेलों के पेट में कई किलोग्राम प्लास्टिक मिल रहा है।

समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण की दिशा में क्षेत्रीय प्रशासन काम नहीं कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाध्यकारी लक्ष्यों और समयसीमा के साथ कोई प्लास्टिक निरोधक संधि नहीं है। जीवाश्म ईंधन और प्लास्टिक उद्योगों ने उन नीतियों से पार पाने में कामयाबी हासिल कर ली जो प्लास्टिक के थैलों आदि के जरिये प्लास्टिक की खपत पर अंकुश लगाती हैं। इसके बजाय, भलीभांति वित्त पोषित इन उद्योगों ने उपभोक्ताओं को अपने स्वयं के कचरे की जिम्मेदारी लेने के लिहाज से मनाने के उद्देश्य से विपणन रणनीतियों में निवेश किया है।

दक्षिण पूर्व एशिया में शासी निकायों की सामूहिक कार्रवाई सीमित ही रही है। जनवरी 2019 में, आसियान देश बैंकॉक घोषणापत्र के साथ इस क्षेत्र में समुद्री मलबे और प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए सहमत हुए। फिर भी आसियान स्वयं स्वीकार करता है कि समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की चुनौतियां जबरदस्त हैं और इनसे पार पाना मुश्किल है, खासकर जब इसकी अपनी भू-राजनीतिक संस्कृति अलग-अलग देशों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने तथा सीमापारीय पर्यावरण के मुद्दों पर ध्यान देने के लिए बिना टकराव वाले दृष्टिकोण पर जोर देती है।

एशिया में विश्व स्तर पर निर्यात किए गए कचरे का 75 प्रतिशत हिस्सा अक्सर ऐसे धनी देशों से आता है जिनके पास घरेलू स्तर पर प्रसंस्करण क्षमता नहीं है। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन अपने प्लास्टिक का लगभग 70 प्रतिशत निर्यात करता है। जुलाई 2017 से, जब चीन ने प्लास्टिक कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगाना शुरू किया, दक्षिण पूर्व एशिया अमीर देशों का कचरा जमा करने का स्थान बन गया है।

चीन के प्रतिबंध के बाद फिलीपीन, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों में आयातित प्लास्टिक कचरे की मात्रा दोगुनी से अधिक हो गयी है।

इन कई देशों का कचरा प्रबंधन वैश्विक मानकों के अनुरूप नहीं है। कई स्थानों पर घर के कचरे को अलग नहीं किया जाता।

कई दक्षिण पूर्व एशियाई देश प्लास्टिक कचरे के बढ़ते बोझ से निपटने को तैयार नहीं हैं।

(360इंफो.ओआरजी) वैभव मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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