कोविड-19 दिमाग और समाज को निरंकुशता की ओर धकेल सकता है |

कोविड-19 दिमाग और समाज को निरंकुशता की ओर धकेल सकता है

कोविड-19 दिमाग और समाज को निरंकुशता की ओर धकेल सकता है

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:55 PM IST, Published Date : October 9, 2021/2:09 pm IST

(लियोर जमीग्रोद, यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज)

कैम्ब्रिज (ब्रिटेन), नौ अक्टूबर (द कन्वरसेशन) इस तथ्य की जानकारी बहुत कम लोगों को होगी कि मनुष्यों में एक नहीं बल्कि दो प्रतिरक्षा प्रणाली होती है। पहला, जैव भौतिकी (बायोफिजिकल) प्रतिरक्षा प्रणाली – जिसके बारे में हम सभी ने बहुत सुना है जो संक्रमणों के शरीर में प्रवेश करते ही उनके खिलाफ प्रतिक्रिया करता है, कोरोना वायरस जैसे घुसपैठियों का पता लगाता है और उन्हें खत्म करता है।

दूसरा है व्यवहार संबंधी प्रतिरक्षा तंत्र जो संभावित रूप से संक्रामक लोगों, स्थानों और चीजों से बचने के लिए हमारे व्यवहार को अनुकूल बनाता है। व्यवहारिक प्रतिरक्षा प्रणाली संक्रामक रोग से बचाव की पहली प्रक्रिया है। यह लोगों को सामाजिक रूप से ज्ञात परंपराओं के अनुरूप होने और विदेशी, भिन्न और संभावित संक्रामक समूहों से बचने के लिए प्रेरित करती है।

हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में मेरे सहयोगियों और मैंने आज्ञाकारिता और अधिकार के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर व्यवहार प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रभाव की जांच की। हमने पाया कि संक्रामक रोगों की उच्च दर – और वे जिस बीमारी से बचाव को बढ़ावा देते हैं – मूल रूप से राजनीतिक विचारों और सामाजिक संस्थानों को आकार दे सकते हैं।

संक्रमण निरंकुशता की तरफ ले जाता है

हमने 47 देशों में 2,50,000 से अधिक लोगों से जानकारियां एकत्र की और जहां वे रहते थे वहां (पूर्व-कोविड) संक्रमण जोखिम और उनके तानाशाहाना दृष्टिकोण यानी जिस हद तक उन्होंने अधिकारियों से सहमति और आज्ञाकारिता का समर्थन किया, के बीच संबंधों को देखा।

हम यह जानने के लिए उत्सुक थे कि क्या संक्रमण का उच्च जोखिम व्यावहारिक प्रतिरक्षा प्रणाली को उन तरीकों से सक्रिय करेगा जो निरंकुश विचारों को बढ़ावा देते हैं। हमने राजनीतिक रूप से तटस्थ तरीके से निरंकुशता को मापना सुनिश्चित किया, ताकि कुछ राजनीतिक दलों के प्रति लोगों की धार्मिक मान्यताओं या प्रतिबद्धताओं को प्रतिबिंबित करने वाले हमारे परिणामों से बचा जा सके।

हमने लोगों के निरंकुश रवैये और उनके क्षेत्र के संक्रामक रोगों के स्तर के बीच एक स्पष्ट संबंध पाया: संक्रामक रोगों के उच्च प्रसार वाले क्षेत्रों में अधिक नागरिक सत्ता के समर्थक थे। इसके अतिरिक्त, उच्च संक्रमण दर वाले क्षेत्रों में रूढ़िवादी रूप से मतदान करने की प्रवृत्ति थी और वे अधिक निरंकुश कानूनों द्वारा शासित थे – ऐसे कानून जो समाज के कुछ सदस्यों पर लागू होते हैं, सभी पर नहीं।

निरंकुश कानूनों के उदाहरण में एलजीबीटी (समलैंगिक, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर) नागरिक स्वतंत्रताओं को लेकर कानूनी प्रतिबंध या अत्यधिक क्रूर सजाएं आदि शामिल थी। संक्रमण दर विशेष रूप से इन ‘ऊर्ध्वाधर’ पदानुक्रमित कानूनों से संबंधित थे, न कि ‘क्षैतिज’ कानूनों से जो सभी नागरिकों को समान रूप से प्रभावित करते हैं जो दर्शाता है कि संक्रामक रोग की दरें विशिष्ट रूप से पद के अनुरूप सत्ता संरचनाओं के लिए लोगों की प्राथमिकताओं को प्रभावित करता है।

इस प्रकार कोविड-19 महामारी और हमारी राजनीति के भीतर संक्रामक विभाजन पर काबू पाना परस्पर जुड़े कार्य हो सकते हैं। समाज के स्वास्थ्य यानी ‘एक देश के नागरिकों का संगठित समूह’ – के लिए हमारे शरीर और दिमाग के स्वास्थ्य एवं लचीलेपन की आवश्यकता होती है। प्रतिरक्षा मौलिक रूप से राजनीतिक है।

द कन्वरसेशन

नेहा शाहिद

शाहिद

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)