पुथबोरे फोन, मैसाच्यूसेट्स विश्वविद्यालय ; लॉवेल और रुमी केटो प्राइस, वाशिंगटन विश्वविद्यालय
सेंट लुइस, 12 अगस्त (360इंफो) कुछ लोगों के लिए बंधुआ मजदूरी के खतरे के बावजूद जीविकोपार्जन के लिए मेकॉन्ग डेल्टा को छोड़ना ही एकमात्र विकल्प है।
जलवायु परिवर्तन ने मेकॉन्ग डेल्टा में सूखे की स्थिति को बद से बद्तर कर दिया है और इस इलाके में रह रहे 6.5 करोड़ लोगों में से कुछ का कहना है कि समाप्त होते संसाधनों और जीविकोपार्जन की संभावनाओं की कमी की वजह से उनके लिए यहां रहना संभव नहीं है।
पलायन हमेशा से दिल तोड़ने वाला निर्णय होता है लेकिन हर साल सूखे और बाढ़ का सामना करने वाले हताश और गरीब परिवारों के लिए यही एक विकल्प होता है लेकिन इस पलायन के फैसले से सभी की स्थिति बेहतर नहीं हो पाती।
आसान निशाना
मेकॉन्ग डेल्टा क्षेत्र में सक्रिय मानव तस्करी के नेटवर्क ऐसे प्रवासियों को अपना निशाना बनाते हैं जो आसान शिकार होते हैं। ये बंधुआ मजदूरी, जबरन विवाह और यौन शोषण के जाल में फंस जाते हैं।
कंबोडिया, म्यांमा, थाईलैंड, लाओस और चीन के सीमावर्ती इलाकों में ऐसे कई स्थान है जहां के बारे में अनुमान है कि हजारों लोगों से उनकी इच्छा के विरुद्ध कार्य कराया जा रहा है और इनमें मुख्य रूप से मेकॉन्ग इलाके के लोग हैं।
इन लोगों को चीनी अपराधी गिरोह जटिल साइबर अपराध को अंजाम देने के लिए मजबूर करते हैं और ऐसी भी खबरें है कि इनका इस्तेमाल मानव अंग प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
वैश्विक दासता सूचकांक 2023 के आकलन के मुताबिक 2021 में पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 2.9 करोड़ से अधिक लोग मानव तस्करी के शिकार थे, जो वैश्विक अनुमानित मानव तस्करी के कुल पीड़ितों का 59 प्रतिशत है।
मानव तस्करी, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने, कम करने और दंडित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रोटोकॉल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘मानव तस्करी’ की वैश्विक परिभाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। इस शब्द को अक्सर ‘मानव तस्करी’ और ‘आधुनिक दासता‘जैसे अन्य शब्दों के साथ परस्पर रूप से प्रयोग किया जाता है। मेकॉन्ग डेल्टा क्षेत्र के सभी देश – कंबोडिया, चीन, लाओस, म्यांमा, थाईलैंड और वियतनाम – इस प्रोटोकॉल को अंगीकार करने वालों में शामिल हैं, जिसे पलेर्मो प्रोटोकॉल भी कहा जाता है।
फिर भी, मेकॉन्ग क्षेत्र में मानव तस्करी की परिभाषा अलग-अलग है, जिसके परिणामस्वरूप पीड़ितों की पारस्परिक पहचान में मुश्किल आती है।
जलवायु परिवर्तन की वजह से मजबूर
मेकॉन्ग डेल्टा क्षेत्र ने 1990 के दशक से ही तीव्र आर्थिक विकास और क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण का अनुभव किया। समृद्धि में वृद्धि मेकॉन्ग नदी के आक्रामक दोहन से होने वाले पर्यावरणीय क्षरण की कीमत के रूप में सामने आई।
इनमें सिंचाई और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए जल दोहन, ऊपरी धारा के देशों में मेकॉन्ग नदी में जलमार्गों का विकास, मेकॉन्ग की मुख्यधारा और उसकी सहायक नदियों पर जलविद्युत बांधों का निर्माण शामिल है। निचले मेकॉन्ग बेसिन में, दोहन और इंजीनियरिंग दोनों तरह की गतिविधियों ने नदी के प्राकृतिक चक्र को बदल दिया। नदी के तल पर गहन रेत खनन ने प्राकृतिक पुनःपूर्ति दर को सीमित कर दिया।
बाढ़ को रोकने के उपाय, खास तौर पर बांध जैसी संरचनाओं के निर्माण से नदियों और नहरों में प्रवाह बढ़ गया, जिसके कारण नदी के किनारों का कटाव भी बढ़ा।
जलवायु परिवर्तन के साथ मिलकर नदियों के का यह दोहन बाढ़ और सूखे की स्थिति, कटाव, खारे पानी की घुसपैठ और वर्षा और तापमान परिपाटी में बदलाव का कारण बना।
इन गतिविधियों की वजह से सब्ज़ियां, चावल, झींगा और मछली पालन जैसी कृषि गतिविधियां प्रभावित हुई हैं।
निरंतर आजीविका के विरुद्ध इस खतरे का सामना करते हुए, मेकॉन्ग डेल्टा बेसिन के ग्रामीणों ने कई तरीकों से बदली परिस्थितियों से तालमेल बैठाने की कोशिश की। इलाके से पलायन एक ऐसा ही तरीका है।
अध्ययनों से पता चलता है कि मेकॉन्ग क्षेत्र में बसे कई परिवार – विशेष रूप से भूमिहीन, गरीब या ऋणग्रस्त परिवार – उत्पादन और आय के नुकसान का सामना करते समय अपनी आजीविका में विविधता लाने के लिए पलायन को एक विकल्प के रूप देखते हैं। एक अध्ययन से संकेत मिलता है कि हर साल वियतनामी मेकॉन्ग डेल्टा छोड़ने वाले 14.5 प्रतिशत प्रवासियों के निर्णयों में जलवायु परिवर्तन प्रमुख कारक है। प्रवास करने का निर्णय जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में वृद्धि के सीधे आनुपातिक था।
पलायन के साथ-साथ जोखिम भी जुड़े होते हैं, भले ही मानव तस्करी अधिकांश लोगों के साथ न हो। जलवायु के कारण पलायन करने के अपने नुकसान है जैसे अवैध और खतरनाक रास्ते अपनाने की आशंका होती है। मेकॉन्ग नदी के संसाधनों के प्रबंधन की नीतियां विभिन्न राष्ट्रीय हितों और प्राथमिकताओं को देखते हुए जटिल हैं। इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत कमज़ोर शासन व्यवस्था और देशों के बीच प्रवासियों की आमद को नियंत्रित करने की सीमित क्षमता भी है, जो आप्रवासियों के खतरों को बढ़ा देती है।
सहयोग में सुधार
जलवायु परिवर्तन, बढ़ते प्रवास और तस्करी के शिकार होने के खतरे से निपटने के लिए दो मौजूदा क्षेत्रीय तंत्र प्रयास कर रहे हैं। सबसे पहले, मेकॉन्ग नदी आयोग की स्थापना 1995 में कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड और वियतनाम के निचले मेकॉन्ग बेसिन देशों द्वारा की गई थी। चीन और म्यांमा इसके सदस्य नहीं हैं।
इस अंतर-सरकारी संगठन का उद्देश्य मेकॉन्ग नदी के साझा जल संसाधनों और सतत विकास पर सहयोग का प्रबंधन करना है। इसकी मुख्य भूमिका बेसिन में विकास से उत्पन्न नदी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरों का समाधान करना है।
दूसरा, तस्करी के खिलाफ समन्वित मेकांग मंत्रिस्तरीय पहल (सीओएमएमआईटी) की स्थापना 2004 में एक बहुपक्षीय समझौता ज्ञापन के अनुमोदन के माध्यम से की गई। इसमें चीन और म्यांमा सहित मेकॉन्ग डेल्टा क्षेत्र के सभी छह देशों का प्रतिनिधित्व है।
इसका लक्ष्य मानव तस्करी को रोकने के लिए सहयोग और समन्वय में सुधार करना है। इसने पांच क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए चार उप-क्षेत्रीय कार्य योजनाएं लागू की हैं।
(360इंफो डॉट ओआरजी)
धीरज नरेश
नरेश