दक्षिण अफ्रीका में नस्लभेद विरोधी आंदोलन में उर्दू की भूमिका पर कार्यक्रम का आयोजन |

दक्षिण अफ्रीका में नस्लभेद विरोधी आंदोलन में उर्दू की भूमिका पर कार्यक्रम का आयोजन

दक्षिण अफ्रीका में नस्लभेद विरोधी आंदोलन में उर्दू की भूमिका पर कार्यक्रम का आयोजन

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:49 PM IST, Published Date : September 25, 2022/5:33 pm IST

जोहानिसबर्ग, 25 सितंबर (भाषा) भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उर्दू की भूमिका निर्विवादित है लेकिन कम लोग जानते हैं कि उर्दू शायरी ने दक्षिण अफ्रीका में भी नस्लभेद विरोधी अभियानों का समर्थन करने में अहम किरदार अदा किया था।

दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन में उर्दू शायरी की भूमिका का जश्न मनाने के लिए रविवार को यहां एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया।

सलूजी परिवार और उर्दू को प्रोत्साहित करने वाले संगठन ‘बज्म ए अदब ऑफ बेनोनी’ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम में कई स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय शायरों ने शेर पढ़े। सलूजी परिवार की चार पीढ़ियां स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में शामिल थीं।

आयोजकों में से एक शिरीन सलूजी ने कहा, “उर्दू की पैदाइश भारत की है लेकिन यह केवल भारतीयों की ही नहीं है। यह पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा है और यह केवल पाकिस्तानियों की भी नहीं है।”

उन्होंने कहा, “दक्षिण अफ्रीका के नस्लभेद विरोधी अभियान में उर्दू शायरी हमेशा से एजेंडे में रही है और आज हम उसी का जश्न मना रहे हैं।”

सलूजी ने बताया कि कैसे देशभक्ति गीत ‘पर न झंडा ये नीचे झुकाना’ दक्षिण अफ्रीका में भारतीय कांग्रेस आंदोलन की बैठकों में गया जाता था।

माना जाता है कि यह गीत 1920 के दशक में भारत के स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा गाया जाता था।

सलूजी ने कहा, ”दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता संग्राम में यह गीत हर देशभक्त की जुबान पर होता था और इसने कई नायकों को प्रेरित किया।”

शोधकर्ता रशीद सीदत ने कहा कि वह और कुछ अन्य लोग दक्षिण अफ्रीकी उर्दू शायरों की विरासत को संजोने का काम कर रहे हैं।

भाषा यश नरेश

नरेश

 

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