फेसबुक, गूगल पर लगाम लगाने का आसान तरीका: उन्हें अपने प्रतिस्पर्धियों का अधिग्रहण करने से रोकें |

फेसबुक, गूगल पर लगाम लगाने का आसान तरीका: उन्हें अपने प्रतिस्पर्धियों का अधिग्रहण करने से रोकें

फेसबुक, गूगल पर लगाम लगाने का आसान तरीका: उन्हें अपने प्रतिस्पर्धियों का अधिग्रहण करने से रोकें

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:08 PM IST, Published Date : October 20, 2021/3:04 pm IST

(पीटर मार्टिन, विजिटिंग फेलो, क्रॉफर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी, ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी)

कैनबरा, 20 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान ‘जूम’, ईमेल और घर पर अच्छे इंटरनेट कनेक्शन ने हमारे लिए घर से ही काम करना, खरीदारी करना, अध्ययन करना और हमारे जीवन को आगे बढ़ाना संभव बनाया और यदि यह महामारी 20 साल पहले फैली होती, जब प्रौद्योगिकी इतनी विकसित नहीं थी, तो हमारे लिए इस दौरान जीवन और कष्टदायक हो जाता।

कुछ बड़ी तकनीकी कंपनियां, जो हम पर नजर रखती है और हमें खतरनाक एवं असामाजिक चीजों के बारे में सोचने के लिए उकसाती हैं ताकि हम उन पर क्लिक करते रहें, वे हमें भारी नुकसान भी पहुंचा रहे हैं।

हालांकि, किसी नुकसान के बिना कनेक्टिविटी की सुविधा नहीं मिल सकती, लेकिन मुझे लगता है कि यह संभव है। हमें बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के बारे में सोचने के तरीके को बदलना होगा।

सर्वप्रथम यह जानना जरूरी है कि बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनी भीतर से कमजोर होती है। दूसरी चीज यह है कि वह तभी मजबूत बनती है, जब हम इसे मजबूत बनने देते हैं।

‘‘बड़ी कंपनियों’’ से मेरा मतलब फेसबुक एवं गूगल और उससे संबंधित (फेसबुक के मालिकाना हक वाली) इंस्टाग्राम और (गूगल के स्वामित्व वाली) यूट्यूब जैसी कंपनियों से है।

उनसे पहले आने वाली कंपनियां भी इसलिए कमजोर थीं, क्योंकि उनके भविष्य की गारंटी नहीं थी। नेटस्केप, माइस्पेस, एमएसएन और उन सभी अन्य कंपनियों के बारे में सोचें जिनके बारे में कहा गया था कि उनका एकाधिकार कायम हो जाएगा।

हमारी पकड़ खोने का डर:

फेसबुक व्हिसल-ब्लोअर फ्रांसेस हौगेन ने पिछले महीने खुलासा किया था कि बाजार की अग्रणी कंपनी को बाजार पर अपनी पकड़ खोने का भय है।

फेसबुक को पता है कि वह अपने शरीर को लेकर आत्मविश्वास की कमी से लोगों में पैदा होने वाली समस्या को बढ़ा रही है। उसने स्वयं यह बात स्वीकार की है, लेकिन उसने इंस्टाग्राम की कार्यशैली बदलने के लिए कोई खास कदम नहीं उठाया। इसका एक कारण यह है कि किशोर फेसबुक की तुलना में इंस्टाग्राम पर 50 प्रतिशत अधिक समय बिताते हैं।

फेसबुक ने 2012 में इंस्टाग्राम को खरीदा, जबकि वह खुद तस्वीरें साझा करने वाला मंच बना सकती थी। उसने संदेश भेजने के अपने मंच ‘मैंसेजर’ के उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने के कारण 2014 में व्हाट्सऐप को खरीद लिया। ये किसी ऐसी कंपनी के कदम नहीं लगते हैं, जिसे अपने शीर्ष पर बने रहने का विश्वास है।

गूगल डबलक्लिक (वह मंच जिसका इस्तेमाल वह अपनी आय बढ़ाने वाले विज्ञापनों को बेचने के लिए करता है), एंड्रायड, यूट्यूब और क्विकऑफिस सहित कई उभरते मंचों को खरीदकर और बड़ा हो गया। ये अपने शीर्ष पर बने रहने के लिए आश्वस्त कंपनी के कदम नहीं है।

बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां अधिग्रहण से और बड़ी होती हैं:

आमतौर पर हम केवल उन अधिग्रहणों को रोकते हैं, जिनमें बड़ी कंपनी का अधिग्रहण होता है। अधिग्रहण के समय इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप छोटे थे। ऐसा बताया जाता है कि इंस्टाग्राम के अधिग्रहण के समय उसके केवल 13 पूर्णकालिक कर्मचारी थे, जबकि व्हाट्सऐप के केवल 55 कर्मी थे। फिर भी फेसबुक ने उनके लिए अरबों का भुगतान किया। अमेरिका और ब्रिटेन में दोनों अधिग्रहणों की मंजूरी दे दी गई।

अगर ऑस्ट्रेलिया सख्त होता, अगर अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय आयोग सख्त होते, तो फेसबुक और गूगल उतनी बड़ी कंपनी नहीं होतीं, जितनी बड़ी वे आज हैं।

हम इनकार करने में सक्षम हैं:

उनका भविष्य काफी हद तक हमारे हाथ में है। जो बड़ी कंपनियां अपने बड़े नेटवर्क का इस्तेमाल करने में सक्षम हैं, हम उन्हें अधिग्रहण करने की अनुमति देने से इनकार कर सकते है। यदि हम उन्हें अधिग्रहणों से रोक देते हैं, तो हम उन्हें बढ़ने से सीधे नहीं रोक पाएंगे, लेकिन हम उनके लिए पुरानी चीजों को नई चीजों से बदलने की स्वाभाविक व्यवस्था से लड़ना मुश्किल जरूर बना देंगे। यही उनका सबसे बड़ा डर है।

द कन्वरसेशन सिम्मी सुभाष

सुभाष

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)