गाजा शांति समझौता पश्चिम एशिया में स्थिरता की दिशा में ‘ऐतिहासिक कदम’: भारत

गाजा शांति समझौता पश्चिम एशिया में स्थिरता की दिशा में ‘ऐतिहासिक कदम’: भारत

गाजा शांति समझौता पश्चिम एशिया में स्थिरता की दिशा में ‘ऐतिहासिक कदम’: भारत
Modified Date: October 24, 2025 / 01:23 pm IST
Published Date: October 24, 2025 1:23 pm IST

संयुक्त राष्ट्र, 24 अक्टूबर (भाषा) भारत ने हाल ही में हस्ताक्षरित गाजा शांति समझौते को पश्चिम एशिया में स्थिरता की दिशा में एक “ऐतिहासिक” कदम बताया और पुनः दोहराया कि दो-राष्ट्र समाधान ही इजराइल और फलस्तीन के बीच स्थायी शांति स्थापित करने का एकमात्र व्यावहारिक मार्ग है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बृहस्पतिवार को पश्चिम एशिया की स्थिति पर आयोजित त्रैमासिक खुली बहस में, विश्व निकाय में भारत के स्थायी प्रतिनिधि एवं राजदूत पार्वतनेनी हरीश ने कहा, “भारत की हार्दिक इच्छा है कि एक स्थिर और शांतिपूर्ण पश्चिम एशिया का सपना साकार हो… वंचना और अपमान किसी के दैनिक जीवन का हिस्सा नहीं होना चाहिए; संघर्ष के कारण निर्दोष नागरिकों की जान नहीं जानी चाहिए।”

उन्होंने कहा कि भारत इस दिशा में अपने योगदान के लिए पूरी तरह तैयार है।

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हरीश ने आशा व्यक्त की कि इस महीने की शुरुआत में शर्म अल-शेख में आयोजित शांति सम्मेलन से उत्पन्न सकारात्मक कूटनीतिक गति क्षेत्र में स्थायी शांति की ओर अग्रसर होगी।

उन्होंने इस “ऐतिहासिक” शांति समझौते का स्वागत करते हुए अमेरिका, विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका की सराहना की और मिस्र तथा कतर के योगदान की भी प्रशंसा की।

भारत की पुरानी नीति दोहराते हुए उन्होंने कहा, “दो-राष्ट्र समाधान ही एकमात्र व्यावहारिक मार्ग है। अब समय है कि सभी पक्ष चल रही शांति प्रक्रिया का समर्थन करें, न कि उसे बाधित करें।”

भारत लंबे समय से एक स्वतंत्र, संप्रभु और सक्षम फलस्तीनी राष्ट्र का समर्थन करता आया है, जो सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर इजराइल के साथ शांति के साथ रहे और सुरक्षित रहे।

हरीश ने कहा, “संवाद और कूटनीति ही शांति का रास्ता हैं। अमेरिका की यह ऐतिहासिक पहल शांति की दिशा में कूटनीतिक गति लेकर आई है और सभी पक्षों को अपने दायित्वों का पालन करना चाहिए। भारत किसी भी एकतरफा कदम का दृढ़ता से विरोध करता है।”

राजदूत ने याद दिलाया कि 7 अक्टूबर, 2023 के संघर्ष के बाद से भारत लगातार आतंकवाद की निंदा करता रहा है, नागरिकों की पीड़ा समाप्त करने, बंधकों की रिहाई और गाजा में अबाध मानवीय सहायता पहुंचाने की मांग करता आया है।

उन्होंने कहा कि भारत नए शांति समझौते को इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक “सक्षम और उत्प्रेरक” मानता है।

उन्होंने कहा ‘‘हाल के कूटनीतिक परिणामों से मिले अल्पकालिक लाभों को दीर्घकालिक राजनीतिक प्रतिबद्धताओं और जमीनी कार्यवाही का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए, ताकि दो-राष्ट्र समाधान की दिशा में वास्तविक प्रगति हो सके।”

फलस्तीनी जनता के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करते हुए हरीश ने पिछले महीने दो-राष्ट्र समाधान के क्रियान्वयन पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र उच्चस्तरीय सम्मेलन का हवाला दिया, जिसमें आगे की राह पर बल दिया गया था।

मानवीय मोर्चे पर उन्होंने कहा कि भारत ने अब तक 17 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता फलस्तीन को दी है, जिसमें चार करोड़ डॉलर के चल रहे प्रोजेक्ट और पिछले दो वर्षों में 135 मीट्रिक टन दवाएं एवं राहत सामग्री शामिल हैं।

हरीश ने कहा, “अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सहयोग के बिना फलस्तीनी लोग अपना जीवन नए सिरे से शुरु नहीं कर सकते हैं।”

उन्होंने निवेश और रोजगार के अनुकूल आर्थिक ढांचे के निर्माण का आह्वान किया।

उन्होंने कहा, “फलस्तीनी मोर्चे पर शांति और स्थिरता का प्रभाव व्यापक क्षेत्र पर पड़ता है… वार्ता जारी रहनी चाहिए और संवाद एवं कूटनीति की प्रभावशीलता पर अटूट विश्वास बनाए रखना आवश्यक है।”

हरीश ने सीरिया, लेबनान और यमन सहित क्षेत्र के अन्य मुद्दों का भी उल्लेख किया और भारत के सतत मानवीय तथा शांति अभियानों में योगदान को रेखांकित किया।

सीरिया के संदर्भ में उन्होंने “सीरियाई नेतृत्व वाले और सीरियाई स्वामित्व वाले राजनीतिक समाधान” के लिए भारत के समर्थन की पुनः पुष्टि की और दिसंबर 2024 में संयुक्त राष्ट्र विसैन्यीकरण पर्यवेक्षण बल (यूएनडीओएफ) में कार्यरत ब्रिगेडियर जनरल अमिताभ झा को श्रद्धांजलि दी, जो ड्यूटी के दौरान शहीद हुए थे।

भारत यूएनडीओएफ में तीसरा सबसे बड़ा सैनिक योगदानकर्ता देश है।

भाषा मनीषा रंजन

रंजन


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