अगर पाक और भारत के बीच शांतिपूर्ण संबंध स्थापित हुए तो इसका श्रेय लांबा को भी जाएगा : पूर्व राजनयिक |

अगर पाक और भारत के बीच शांतिपूर्ण संबंध स्थापित हुए तो इसका श्रेय लांबा को भी जाएगा : पूर्व राजनयिक

अगर पाक और भारत के बीच शांतिपूर्ण संबंध स्थापित हुए तो इसका श्रेय लांबा को भी जाएगा : पूर्व राजनयिक

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:05 PM IST, Published Date : July 2, 2022/9:41 pm IST

(सज्जाद हुसैन)

इस्लामाबाद, दो जुलाई (भाषा) पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री और प्रख्यात राजनयिकों ने शनिवार को कहा कि सतिंदर लांबा ‘‘ कूटनीति के प्रतीक’’ थे और अगर पाकिस्तान और भारत के बीच कभी शांतिपूर्ण संबंध स्थापित होते हैं तो इसका श्रेय इस वयोवृद्ध भारतीय राजनयिक और उनकी अथक कोशिश बर्बाद नहीं जाएगी।

पेशावर में जन्मे लांबा का बृहस्पतिवार को 81 साल की उम्र में नयी दिल्ली में निधन हो गया था। उन्होंने वर्ष 2005 से 2014 के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच पर्दे के पीछे से की चली अहम कूटनीतिक संवाद का नेतृत्व किया था। वह वर्ष 1992 से 1995 तक पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त थे।

पर्दे के पीछे से चले संवाद के दौरान लांबा के पाकिस्तानी समकक्ष रहे रियाज मोहम्मद खान ने भारतीय राजनयिक को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच कभी शांति स्थापित होगी तो ‘‘इसका श्रेय लांबा को भी जाएगा।’’

खान पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव हैं और वर्ष 2010 से 2013 के बीच पड़ोसी देश ने उन्हें लांबा से वार्ता के लिए तैनात किया था। इस दौरान दोनों पक्षों ने कश्मीर मुद्दे सहित दोनों देशों के जटिल रिश्तों को सुलझाने का असफल प्रयास किया था।

पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने कहा कि लांबा ने पर्दे के पीछे की कूटनीति की जो आधारशिला रखी है, वह अंतत: एकदिन फलदायी साबित होगी।

कसूरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैं लांबा के परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना प्रकट करता हूं। उनकी पाकिस्तान और भारत के बीच शांति की कोशिश को लंबे समय तक याद किया जाएगा।’’

लांबा की प्रशंसा करते हुए कसूरी ने कहा, ‘‘मैंने उनके साथ काम किया है और दोनों देशों के बीच शांति के लिए की गई उनकी कोशिश बेकार नहीं जाएगी…मैं आपको कह सकता हूं।’’

उन्होंने कहा कि नागरिक और सैन्य नेता सहित छह लोग दोनों ओर से वर्ष 1990 में ‘ट्रैक-टू’ कूटनीति में शामिल थे और लांबा भारत की ओर से जबकि पाकिस्तान की ओर से तारिक अजीज शांति की कोशिशों को देख रहे थे।

कसूरी ने कहा कि जब वह विदेश मंत्री बने तो लांबा सहित भारत के कई लोगों से मिले जो उनसे सहमत थे कि भारत और पाकिस्तान के संबंधों में अचानक आने वाले उतार-चढ़ाव की स्थिति में भी दोनों पक्षों के बीच संवाद जारी रखने की जरूरत है।

पर्दे के पीछे से चल रही बातचीत के दौरान लांबा के पाकिस्तानी समकक्ष रहे रियाज मोहम्मद खान ने भारतीय राजनयिक को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि अगर भारत और पाकिस्तान के बीच कभी शांति स्थापित होगी तो ‘‘इसका श्रेय लांबा को भी जाएगा।’’

खान पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव हैं और वर्ष 2010 से 2013 के बीच पड़ोसी देश ने उन्हें लांबा से वार्ता के लिए तैनात किया था। इस दौरान दोनों पक्षों ने कश्मीर मुद्दे सहित दोनों देशों के जटिल रिश्तों को सुलझाने का असफल प्रयास किया था।

खान ने ‘पीटीआई-भाषा’ को फोन पर दिए साक्षात्कार में जनवरी 2010 में लांबा से हुई पहली मुलाकात को याद किया, जिसमें दोनों राजनयिकों ने पर्दे के पीछे से चल रही बातचीत की प्रक्रिया के दायरे में अपने विचारों का आदान-प्रदान किया।

उन्होंने कहा, ‘‘सबसे पहले, मैं उनके निधन से बहुत दुखी हूं। मेरे मन में उनके लिए और उनकी कोशिशों के लिए अगाध सम्मान है।’’ खान ने कहा कि लांबा महान राजनयिक थे ‘‘ वह शांतिपुरुष थे, जो हमारे क्षेत्र का बहुत ख्याल रखते थे। वह बहुत सकारात्मक व्यक्ति थे।’’

खान ने तारिक अजीज के बाद पाकिस्तान की ओर से प्रक्रिया का नेतृत्व किया था। वह तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के विश्वासपात्र थे और लांबा के साथ पर्दे के पीछे से वार्ता में उनकी अहम भूमिका थी।

खान ने याद किया कि पाकिस्तान और भारत कैसे पर्दे के पीछे से वार्ता के जरिये कठिन मुद्दों का कैसे समाधान करें, इसके वास्ते समझ विकसित करने के लिये लंबा रास्ता तय किया था।

कश्मीर के मुद्दे पर खान ने कहा कि दोनों पक्ष कश्मीर के उपक्षेत्रों के स्वशासन के फार्मूले पर सहमत हो गए थे।

उन्होंने बताया कि पर्दे के पीछे से बातचीत को पहला झटका वर्ष 2007 में पाकिस्तान के न्यायिक आंदोलन से लगा और बाद में 2008 में मुंबई हमले की वजह से प्रक्रिया रुक गई।

खान ने कहा कि लेकिन गुप्त कोशिश और संवाद दोनों पक्षों के बीच वर्ष 2014 तक चलती रही, जिसके बाद प्रक्रिया रुक गई।

भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने ‘‘ पीटीआई-भाषा’’से लांबा से संवाद और शांति के लिए उनकी कोशिशों के बारे में चर्चा की।

उन्होंने कहा, ‘‘भारत में रहने के दौरान मैंने उनसे कई बार मुलाकात की और उन्हें एक परिपक्व राजनयिक पाया। उनके पाकिस्तान में अच्छे संपर्क थे क्योंकि उन्होंने वहां उप उच्चायुक्त और उच्चायुक्त के तौर पर काम किया था व पर्दे के पीछे से कूटनीति में शामिल थे।’’

एक सवाल के जवाब में बासित ने कहा कि पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी ने अपनी किताब में लिखा है कि दोनों देश कश्मीर पर समझ बनने के करीब पहुंच गए थे, लेकिन लांबा ने ‘‘कभी सार्वजनिक रूप से इसे स्वीकार नहीं किया।’’

पूर्व विदेश सचिव शमशाद अहमद खान ने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में लांबा के निधन को भारत और पाकिस्तान की शांति कूटनीति के लिए अपूरणीय क्षति करार दिया। उन्होंने लांबा के परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की।

उन्होंने कहा कि लांबा भारतीय विदेश सेवा के ऐसे राजनयिक थे जिन्हें ‘‘ कूटनीति का प्रतीक’’कहा जा सकता है।

वरिष्ठ पाकिस्तानी रक्षा विश्लेषक हसन अस्करी ने कहा कि लांबा की पाकिस्तान में व्यक्तिगत मित्रता थी, जो आज राजनयिक बिरादरी में किसी के पास नहीं है।

वयोवृद्ध बांग्लादेशी राजनयिक मोहम्मद जमीर ने कहा कि वह उस समय लांबा के संपर्क में थे। जमीर को वर्ष 1971 में देश की आजादी के बाद विदेश मंत्रालय में ‘इंडिया डेस्क’ बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं उनके निधन की खबर सुनकर दुखी हूं। उनकी आत्मा को शांति मिले। हम उन्हें प्रेम से सती लांबा कहते थे। वह ऐसे व्यक्ति थे जो मित्रता को महत्व देते थे और सक्रिय रूप से बांग्लादेश से जुड़े हुए थे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वह बांग्लादेश से अलग-अलग तरीके और प्रक्रिया से जुड़े रहे जबकि मैं वर्ष 1971 में आजादी के बाद विदेश मंत्रालय में इंडिया डेस्क का निदेशक था। वह उस समय नयी दिल्ली में थे और अक्सर बांग्लादेश आते थे और ढाका में भी रुकते थे।’’

भाषा धीरज दिलीप

दिलीप

 

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