आप अपने पहने कपड़े पर खास ‘सूक्ष्मजीव फिंगरप्रिंट’ छोड़ते हैं, यह अपराधों को सुलझाने में मदद कर सकता

आप अपने पहने कपड़े पर खास 'सूक्ष्मजीव फिंगरप्रिंट' छोड़ते हैं, यह अपराधों को सुलझाने में मदद कर सकता

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  • Publish Date - May 24, 2024 / 05:06 PM IST,
    Updated On - May 24, 2024 / 05:06 PM IST

(पाओला ए मैग्नी, मर्डोक यूनिवर्सिटी; नोएमी प्रोकोपियो, यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल लंकाशायर और सारा गिनो, यूनिवर्सिटा डेल पिएमोंटे ओरिएंटेल)

पर्थ/लंकाशायर, 24 मई (द कन्वरसेशन)जब आप किसी आपराधिक जांच के बारे में विचार करते हैं, तो आप जासूसों द्वारा घटनास्थल पर पाए गए सबूतों को सावधानीपूर्वक इकट्ठा करने और उनका विश्लेषण करने की कल्पना कर सकते हैं: जिनमें हथियार, जैविक तरल पदार्थ, पैरों के निशान और अंगुलियों के निशान शामिल हैं। हालांकि, यह अपराध में शामिल घटनाओं और व्यक्तियों की कड़ी जोड़ने के प्रयास की शुरुआत मात्र है।

इस प्रक्रिया के मूल में 1900 के दशक के आरम्भ में फ्रांसीसी अपराध विज्ञानी एडमंड लोकार्ड द्वारा प्रतिपादित ‘‘आदान-प्रदान का सिद्धांत’’ निहित है, जिसके अनुसार ‘‘प्रत्येक संपर्क एक निशान छोड़ता है’’। अपराध में शामिल पक्षों (पीड़ित, अपराधी, वस्तुएं, वातावरण) के बीच सामग्री का अदान-प्रदान घटनाओं की कड़ी को जोड़ने का आधार बनता है।

लोकार्ड के समय में, ये निशान आम तौर पर ऐसी चीजें होती थीं जिन्हें आप आवर्धक लैंस या सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) से देख सकते थे, जैसे पराग कण, मिट्टी और रेशे। हालांकि, इन सबूतों की सीमाएं थी क्योंकि आप इसे किसी खास व्यक्ति से नहीं जोड़ सकते।

हमारे नवीनतम शोध में, हमने प्रस्तुत किया है कि कैसे किसी व्यक्ति की त्वचा पर मौजूद बैक्टीरिया उसके द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों पर अपना निशान छोड़ते हैं – और कैसे ये निशान महीनों तक बने रहते हैं और इनका उपयोग पहनने वाले की विशिष्ट पहचान के लिए किया जा सकता है।

सूक्ष्मजीवों के निशान

एक अपराध स्थल की कल्पना करें जहां एक जांचकर्ता को एक पीड़ित और कपड़े का एक टुकड़ा मिलता है जो उसका नहीं है। पराग या रेत के कण जांचकर्ता को यह पता लगाने में मदद कर सकते हैं कि यह कहां से आया है, लेकिन कपड़ा किसका है यह कैसे पता लगाया जाए?त्वचा की कोशिकाएं, बाल और जैविक तरल पदार्थ यह पता लगाने में सहायक हैं। लेकिन, एक और चीज जो किसी व्यक्ति की पहचान के लिए बहुत खास होती है, वह है उसके शरीर पर और उसके भीतर मौजूद सूक्ष्मजीवों की अनोखी कॉलोनी।

ये सूक्ष्मजीव शरीर के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग प्रकार के होते हैं, लंबे समय तक बने रह सकते हैं और दूसरे लोगों और पर्यावरण में स्थानांतरित हो सकते हैं। यह उन्हें फोरेंसिक विज्ञान में विभिन्न प्रकार के सवालों का जवाब हासिल करने में उपयोगी बनाता है।

‘फोरेंसिक माइक्रोबायोलॉजी’ की शुरुआत 2000 के दशक की शुरुआत में हुई, तब वैज्ञानिकों ने जैव आतंकवाद से बचाव के तरीके खोजने शुरू किए। आज ‘फोरेंसिक माइक्रोबायोलॉजी’ का इस्तेमाल मृत्यु के बाद मृतक की पहचान करने, यह समझने के लिए किया जाता है कि मृत्यु से पहले उसका स्वास्थ्य कैसा था, यह निर्धारित करने के लिए कि व्यक्ति की मौत कैसे और क्यों हुई और उसकी मृत्यु को कितना समय हो गया है, और वे कहां से आए थे में किया जा रहा है।

संक्षेप में कहा जाए तो लोकार्ड का सिद्धांत आज अद्यतन होकर ‘‘प्रत्येक संपर्क एक सूक्ष्मजीवी निशान छोड़ता है’’ हो गया है।

‘टच माइक्रोबायोम’ (त्वचा पर मौजूद सूक्ष्मजीव को स्थानांतरित हो सकते)

यह सिद्धांत स्थापित हो चुका है, फिर भी हम यह जानना चाहते हैं कि किसी व्यक्ति के ‘माइक्रोबायोम’ का कितना हिस्सा उसके आस-पास के वातावरण में स्थानांतरित होता है। हमें यह भी जानना होगा कि यह कितने समय तक बना रहता है, तथा क्या कुछ सूक्ष्मजीव पहचान के लिए अन्य की तुलना में अधिक उपयोगी हो सकते हैं।

हम यह भी समझना चाहते हैं कि सूक्ष्मजीवी अवशेष अन्य वस्तुओं या पर्यावरण द्वारा किस प्रकार संदूषित हो सकते हैं, तथा विभिन्न प्रकार की सतह सूक्ष्मजीवी आबादी को किस प्रकार प्रभावित करती हैं।

दो अनुसंधानकर्ताओं (प्रोकोपियो और जीनो) ने ब्रिटेन स्थित सेंट्रल लंकाशायर यूनवर्सिटी और इटली स्थित ईस्टर्न पीडमोंट यूनिवर्सिटी के सहयोगियों के साथ मिलकर पहली बार ‘‘टच माइक्रोबायोम’’ की व्याख्या एक खास बैक्टीरिया आबादी के तौर पर की जो व्यक्ति के त्वचा पर रहते हैं। इस दौरान यह भी अध्ययन किया गया कि ये जीवाणु किस प्रकार अनियंत्रित इनडोर परिवेश में कांच की स्लाइड जैसी गैर-छिद्रित सतहों पर स्थानांतरित हो सकते हैं तथा एक महीने तक बने रह सकते हैं।

इस टीम ने पुराने मामलों के शवों के नमूनों के डीएनए का भी विश्लेषण किया, जो 16 साल तक जमा कर संरक्षित किए गए थे। वे मृत्यु के तरीके और शवों के सड़ने से जुड़े जीवाणुओं की विशिष्ट आबादी की पहचान करने में सक्षम थे।इससे पता चला कि विशिष्ट प्रकार के जीवाणुओं का उपयोग ऐसे अनसुलझे मामलों में हमारी समझ को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है जिनमें डीएनए नमूने अब भी उपलब्ध हों।

टी-शर्ट से पहचान

हमारे सबसे हालिया अध्ययन में, तीसरे अनुसंधानकर्ता (मैग्नी) ने कपड़ों से व्यक्ति की पहचान की क्षमता में सुधार के प्रयास किए क्योंकि अक्सर अपराध स्थल पर सबूत के रूप में एकत्र की जाने वाली वस्तुओं में यह शामिल होता है।

हमारे अध्ययन में, ऑस्ट्रेलिया में दो व्यक्तियों द्वारा 24 घंटे तक सूती टी-शर्ट पहनी गई। टी-शर्ट को मानक के तौर पर बिना पहनी गई वस्तुओं के साथ छह महीने तक नियंत्रित वातावरण में रखा गया। पहनी हुई और बिना पहनी हुई टी-शर्ट दोनों के नमूने अलग-अलग समय पर लिए गए और उन्हें ‘फ़्रीज़’ (सरंक्षित) किया गया।

फिर नमूनों को उसपर मौजूद जीवाणु की आनुवांशिकी सामग्री एकत्र करने के लिए सरंक्षित अवस्था में ही इटली भेज दिया गया। इसके बाद, नमूनों में मौजूद जीवाणुओं की प्रजातियों की पहचान करने के लिए ब्रिटेन में अनुवांशिकी अनुक्रमण किया गया।

परिणामों से पता चला कि अध्ययन में शामिल दोनों व्यक्तियों ने कपड़ों पर अलग-अलग और पहचानने योग्य जीवाणुओं को स्थानांतरित किया जो दोनों व्यक्तियों की में अलग-अलग थे।इसके अलावा हम लंबे समय के बाद भी पहनी गई टी-शर्ट और बिना पहनी टी-शर्ट के बीच अंतर कर सकते हैं। जीवाणु पहने हुए कपड़ों पर 180 दिनों तक रहते हैं।

कपड़ों से सबूत

किसी भी अपराध स्थल पर मिले कपड़े जांच प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण सबूत दे सकते हैं।

वे लिंग, व्यवसाय, आय, सामाजिक स्थिति, राजनीतिक, धार्मिक या सांस्कृतिक संबद्धता और यहां तक कि वैवाहिक स्थिति के संकेतकों का खुलासा करके व्यक्तियों की पहचान करने में सहायता कर सकते हैं।

इसके अलावा ये मृत्यु के तरीके, अपराध के स्थान के बारे में सुराग दे सकते हैं और कुछ मामलों में, मृत्यु के बाद के समय कर अनुमान लगाने में भी सहायक हो सकते हैं।

कपड़े अपराध से जुड़ी घटनाओं की कड़ियों को जोड़ने और इसमें शामिल व्यक्तियों की पहचान स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

हमारे अनुसंधान से पता चलता है कि कपड़े और भी अधिक सबूत प्रदान कर सकते हैं। कपड़ों से व्यक्तियों की पहचान करने में सक्षम विशिष्ट जीवाणुओं की खोज एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक है।

(द कन्वरसेशन) धीरज माधव

माधव