विवादित वृत्तचित्र को लेकर ब्रिटेन में भारतीय समुदाय ने बीबीसी के खिलाफ प्रदर्शन किए |

विवादित वृत्तचित्र को लेकर ब्रिटेन में भारतीय समुदाय ने बीबीसी के खिलाफ प्रदर्शन किए

विवादित वृत्तचित्र को लेकर ब्रिटेन में भारतीय समुदाय ने बीबीसी के खिलाफ प्रदर्शन किए

:   Modified Date:  January 29, 2023 / 10:28 PM IST, Published Date : January 29, 2023/10:28 pm IST

(अदिति खन्ना)

लंदन, 29 जनवरी (भाषा) ब्रिटेन में विभिन्न प्रवासी भारतीय संगठनों के सैकड़ों सदस्यों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से संबंधित विवादास्पद वृत्तचित्र के विरोध में रविवार को मध्य लंदन में बीबीसी मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन किया।

लंदन, मैनचेस्टर, बर्मिंघम, ग्लासगो और न्यूकैसल में बीबीसी स्टूडियो में ‘चलो बीबीसी’ विरोध प्रदर्शन किया गया और ‘इंडियन डायस्पोरा यूके’ (आईडीयूके), ‘फ्रेंड्स ऑफ इंडिया सोसाइटी इंटरनेशनल’ (एफआईएसआई) यूके, ‘इनसाइट यूके’ और ‘हिंदू फोरम ऑफ ब्रिटेन (एचएफबी) जैसे संगठनों ने मिलकर यह प्रदर्शन किया।

प्रदर्शनकारियों ने ‘बायकॉट (बहिष्कार) बीबीसी’, ‘ब्रिटिश बायस कॉर्पोरेशन’ और ‘स्टॉप द हिंदूफोबिक नैरेटिव’ (हिंदुओं के खिलाफ नफरत पैदा करने वाले आख्यान को रोको), ‘बीबीसी शर्म करो’ और ‘भारत माता की जय’ जैसे नारे लिखी तख्तियां लहराईं।

एफआईएसआई यूके के जयु शाह ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आधारित वृत्तचित्र अत्यंत पक्षपातपूर्ण है। भारतीय न्यायपालिका ने मोदी को पूरी तरह बेकसूर बताया है। इसके बावजूद बीबीसी ने न्यायाधीश और न्यायपालिका बनने का फैसला किया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘बीबीसी की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जांच होनी चाहिए और सार्वजनिक प्रसारक के रूप में अपने कर्तव्य में विफल रहने पर बीबीसी के निदेशक मंडल की जांच की जानी चाहिए।’’

एक अन्य प्रदर्शनकारी ने कहा कि उनकी मां शारीरिक अक्षमता के कारण व्हीलचेयर की मदद लेती हैं और इसके बावजूद वह यहां आई हैं, क्योंकि उन्हें लगा कि बीबीसी द्वारा फैलाए जा रहे ‘‘झूठे और भारत विरोधी दुष्प्रचार’’ के खिलाफ आवाज उठाने की आवश्यकता है।

ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (बीबीसी) का वृत्तचित्र ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ दो भाग में है, जिसमें दावा किया गया है कि यह 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित कुछ पहलुओं की पड़ताल पर आधारित है। साल 2002 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे।

विदेश मंत्रालय ने वृत्तचित्र को ‘‘दुष्प्रचार का हिस्सा’’ बताते हुए खारिज कर दिया था और कहा था कि इसमें निष्पक्षता का अभाव है तथा यह एक औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है।

भाषा सिम्मी दिलीप

दिलीप

 

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