वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के निरंतर प्रसार के नतीजों की व्याख्या की | Scientists explain results of continued spread of Covid-19

वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के निरंतर प्रसार के नतीजों की व्याख्या की

वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के निरंतर प्रसार के नतीजों की व्याख्या की

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:22 PM IST, Published Date : December 9, 2020/11:27 am IST

बोस्टन, नौ दिसंबर (भाषा) वैज्ञानिकों ने ब्राजील के मानौस में लोगों में कोविड-19 के प्रसार का विश्लेषण किया जहां नोवेल कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आने के सात महीनों के अंदर 70 प्रतिशत से ज्यादा आबादी संक्रमित हो गई। अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि बीमारी का प्रसार निरंतर होता है तो क्या हो सकता है।

अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक, दुनिया में जिन जगहों पर कोविड-19 महामारी का प्रसार सबसे तेजी से हुआ, उनमें ब्राजील एक है जबकि अमेजन इस महामारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्र है। अनुसंधानकर्ताओं में अमेरिका के हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के सदस्य भी थे।

उन्होंने कहा कि अमेजन के सबसे बड़े नगर मानौस में सार्स-सीओवी-2 का पहला मामला मार्च के मध्य में आया था जिसके बाद दवाइयों के उपयोग के बगैर (एनपीआई) सामाजिक दूरी जैसे उपायों को अमल में लाने की पहल शुरू की गई।

जर्नल ‘साइंस’ में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, इसके बाद महामारी की “विस्फोटक” स्थिति बनी जिसमें मृत्युदर अपेक्षाकृत उच्च थी। इसके बाद सामाजिक दूरी जैसे ऐहतियाती उपायों में ढील के बावजूद नए मामलों में सतत गिरावट हुई।

वैज्ञानिकों ने यह जानने के लिये मानौस में रक्त दाताओं के आंकड़े एकत्र किये कि क्या महामारी का प्रसार इसलिये धीमा हुआ क्योंकि संक्रमण सामूहिक प्रतिरोध क्षमता के चरम तक पहुंच गया था या फिर इसकी वजह व्यवहारगत बदलाव और एनपीआई जैसे कारक हैं।

उन्होंने एकत्रित रक्त के नमूनों से वायरस संक्रमण दर का परिणाम निकाला और इस आंकड़े की तुलना साओ पाउलो के आंकड़ों से की जो कम प्रभावित था।

शोधकर्ताओं ने मानौस में अक्टूबर तक 76 प्रतिशत संक्रमण दर का अनुमान व्यक्त किया जिसमें एंटीबॉडी प्रतिरक्षा को घटाते हुए आकलन किया गया था।

उन्होंने कहा कि तुलनात्मक रूप में साओ पाउलो में अक्टूबर तक संक्रमण दर 29 प्रतिशत थी, जिसे आंशिक रूप से बड़ी आबादी के आकार से समझाया गया।

इन दोनों शहरों में वायरस की वजह से बड़ी संख्या में हुई मौत के बावजूद वैज्ञानिकों ने कहा कि मिश्रित आबादी में बिना किसी सतत रणनीति के संक्रमण दर अनुमान से कहीं कम रही।

उन्होंने कहा, “यह संभव है कि एनपीआई (नॉन-फर्मास्यूटिकल इंटरवेन्शन) ने महामारी को रोकने के लिये आबादी में बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता के साथ मिलकर काम किया।” उन्होंने लोगों के व्यवहार में स्वेच्छा से आने वाले बदलावों को भी इसमें मददगार बताया।

वैज्ञानिकों ने हालांकि इस बात का पता लगाने के लिये क्षेत्र में शोध को “अत्यावश्यक” बताया कि आबादी में यह प्रतिरोधक क्षमता कब तक रहेगी।

भाषा

प्रशांत मनीषा

मनीषा

 

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