श्रीलंका ने चीन के अनुसंधान जहाज को 16 अगस्त को हंबनटोटा बंदरगाह पर आने की अनुमति दी |

श्रीलंका ने चीन के अनुसंधान जहाज को 16 अगस्त को हंबनटोटा बंदरगाह पर आने की अनुमति दी

श्रीलंका ने चीन के अनुसंधान जहाज को 16 अगस्त को हंबनटोटा बंदरगाह पर आने की अनुमति दी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:22 PM IST, Published Date : August 13, 2022/10:39 pm IST

कोलंबो, 13 अगस्त (भाषा) श्रीलंका सरकार ने शनिवार को कहा कि उसने चीन के उच्च प्रौद्योगिकी वाले अनुसंधान जहाज को ‘‘पुन: पूर्ति’’ के लिए 16 अगस्त से 22अगस्त तक दक्षिण बंदरगाह हंबनटोटा पर रूकने की अनुमति दे दी है।

पहले श्रीलंका ने भारत की चिंता के बीच चीन से इस जहाज का आगमन टालने को कहा था।

बैलेस्टिक मिसाइल एवं उपग्रह का पता लगाने में सक्षम ‘युआन वांग 5’ नामक यह जहाज पहले बृहस्पतिवार को पहुंचने वाला था और 17 अगस्त तक बंदरगाह पर रूकने वाला था।

लेकिन, भारत द्वारा सुरक्षा चिंता व्यक्त किये जाने के बाद श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने पिछले सप्ताह चीनी दूतावास से इस जहाज का आगमन टाल देने का अनुरोध किया था। फिर, यह जहाज निर्धारित कार्यक्रम के तहत बृहस्पतिवार को नहीं पहुंचा।

एक बयान में श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसने यहां चीनी दूतावास को जहाज को (यहां हंबनटोटा बंदरगाह पर) 16 अगस्त से 22 अगस्त तक ठहरने की सरकार की मंजूरी से अवगत कराया है।

बयान में कहा गया है, ‘‘ अंतरराष्ट्रीय बाध्यताओं को पूरा करते हुए सभी देशों के वैध हितों की सुरक्षा करना श्रीलंका की मंशा है।’’

मंत्रालय ने कहा कि 28 जून को चीन ने श्रीलंका सरकार को बताया कि ‘युआन वांग 5’ पुन:पूर्ति के लिए हंबनटोटा पर 11 अगस्त से 17 अगस्त के लिए आएगा।

उसने कहा कि रक्षा मंत्रालय की कुछ आपत्तियों के आलोक में सरकार ने पांच अगस्त को चीनी दूतावास से ‘इस विषय पर और विचार-विमर्श कर लिये जाने तक ’ हंबनटोटा पर जहाज का आगमन टालने का अनुरोध किया।

बयान के अनुसार राजनयिक चैनलों के माध्यम से उच्च स्तर पर संबंधित पक्षों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया तथा समाधान हेतु मित्रता, परस्पर विश्वास, सभी पक्षों के हितों एवं राज्यों की संप्रभुता को भी ध्यान दिया गया।

उसके अनुसार 12 अगस्त को चीनी दूतावास ने जहाज के लिए नयी तारीख 16 अगस्त से 22 अगस्त के लिए आवेदन दिया। बयान के मुताबिक ‘सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद’ चीनी दूतावास को 16-22 अगस्त के दौरान जहाज के ठहरने के लिए मंजूरी की सूचना दी गयी।

यह जहाज फिलहाल हंबनटोटा के पूरब में 600 समुद्री मील की दूरी पर आगे की यात्रा के लिए मंजूरी का बाट जोह रहा है।

इस बीच, इस मामले से श्रीलंका में बड़ा विवाद उत्पन्न हो गया। विपक्ष ने सरकार पर इस मुद्दे को ढंग से नहीं संभाल पाने का आरोप लगाया है।

दक्षिण में गहरे सागर में स्थित हंबनटोटा बंदरगाह को उसकी अवस्थिति को लेकर रणनीतिक दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस बंदरगाह को काफी हद तक चीनी ऋण से विकसित किया गया था।

भारत ने कहा है कि उसके सुरक्षा एवं आर्थिक हितों पर असर डालने वाले किसी भी घटनाक्रम पर उसकी नजर है।

भारत श्रीलंका के बंदरगाह पर जाने के दौरान इस जहाज की ट्रैकिंग प्रणाली द्वारा भारतीय प्रतिष्ठानों की जासूसी की कोशिश करने की आशंका से चिंतिंत है।

भारत ने हिंद महासागर में चीनी सैन्य जहाजों के प्रति पारंपरिक रूप से कड़ा दृष्टिकोण अपनाया था और श्रीलंका में उनकी किसी भी यात्रा का विरोध किया था।

वर्ष 2014 में जब श्रीलंका ने परमाणु क्षमता वाली एक चीनी पनडुब्बी को अपने एक बंदरगाह पर आने की अनुमति दी थी तब उसके और भारत के बीच रिश्ते में तनाव पैदा हो गया था।

इस सोमवार को चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि तथाकथित ‘सुरक्षा चिंताओं’ का हवाला देकर कुछ देशों द्वारा श्रीलंका पर दबाव बनाना ‘‘पूरी तरह अनुचित’’ है ।

भारत ने शुक्रवार को चीन के ‘आक्षेप’ को खारिज किया कि उसने चीनी जासूसी जहाज की निर्धारित यात्रा के विरूद्ध श्रीलंका पर दबाव डाला लेकिन यह जरूर कहा कि वह अपनी सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखकर निर्णय लेगा।

नयी दिल्ली में पिछले महीने विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने चीनी जहाज की प्रस्तावित यात्रा के बारे में पूछे जाने पर कहा था, ‘‘ अगस्त में हंबनटोटा बंदरगाह पर इस जहाज की प्रस्तावित यात्रा की खबरों की हमें जानकारी है। सरकार ऐसे किसी भी घटनाक्रम पर बहुत सावधानीपूर्वक नजर रखती है जिसका भारत के सुरक्षा एवं आर्थिक हितों पर असर हो सकता है । सरकार उन हितों की सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाती है।’’

भाषा राजकुमार पवनेश

पवनेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)