(लावन्या विजयसिंघम, वैश्विक स्वास्थ्य संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय संस्थान)
(संपादक: एंबार्गो: भारतीय समयानुसार 07:00 बजे 03/12/2021)
कुआलालंपुर, 29 नवंबर (360इन्फो) कोविड-19 से पहले इन्फ्लुएंजा, जीका और इबोला जैसी संक्रामक बीमारियों से गर्भवती महिलाओं की जान जाने की अधिक आशंका थी। इन बीमारियों के लिए टीकों के क्लिनिकल ट्रायल से गर्भवती महिलाओं को बाहर रखा गया, जिसकी वजह से कई महिलाओं की बेवजह मौत हो गई। इनसे सीख लेते हुए कोविड-19 के टीके के परीक्षण के दौरान ऐसा करने का मौका था लेकिन यह मौका भी गंवा दिया गया।
वैज्ञानिक अब टीकों के संबंध में सामानता के अंतर को पाटने के लिए साथ आ रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इसकी पहचान तेजी से की कि किस तरह कोविड-19 महिलाओं को अलग तरह से प्रभावित करता है। कोरोना वायरस से संक्रमित गर्भवती महिलाओं में रक्तचाप संबंधी दिक्कतों ‘प्रीक्लेम्पसिया’ और ‘इक्लेम्पसिया’ का ज्यादा खतरा होता है और उनके आईसीयू में भर्ती होने की ज्यादा आशंका होती है तथा उन्हें वेंटिलेटर तक पर रखने की जरूरत पड़ सकती है और समय से पहले प्रसव भी कराना पड़ सकता है।
इसके बाद भी इन्हें व्यवस्थित तरीके से तीसरे चरण के परीक्षण से बाहर रखा गया, जिसकी वजह से इनको लेकर परीक्षण संबंधी आंकड़े सीमित हो गए जिसकी वजह से टीके की खुराक देने के शुरुआती चरण से ये बाहर हो गईं।
चिकित्सा अनुसंधान से पूर्वाग्रहों को अलग करना मुश्किल है। युवावस्था, गर्भावस्था, प्रसव और रजोनिवृत्ति चक्र तथा हॉर्मोन संबंधी बदलाव की जानकारियां जुटाने में कथित जटिलता का इतिहास रहा है। महिलाएं इन परीक्षणों में हिस्सा लेने से हिचकिचाती हैं और चिकित्सा अनुसंधान में भ्रूण सुरक्षा संबंधी नैतिकता के कारण महिलाओं-खास तौर पर ‘गर्भवती होने वाली महिलाओं’ में जोखिम में वृद्धि होती है। महामारी के शुरुआती दिनों में लैंगिक आंकड़े और उसके परिणाम पर विचार करने की अपेक्षा जल्द से जल्द टीका विकसित करना ज्यादा हावी बना रहा। टीके के लिए परीक्षण में लोगों को शामिल करने से लेकर उसके परिणाम जांचने तक में लैंगिक आंकड़ों को प्राथमिकता नहीं दी गई। पुरुषों और महिलाओं के आंकड़े को इस तरह से साथ कर लिया गया कि इसे अलग करना मुश्किल हो गया।
हाल की समीक्षा में शामिल कोविड-19 टीकों पर किए गए 75 परीक्षणों में से केवल 24 प्रतिशत ने अपने मुख्य परिणाम में लैंगिक आंकड़े अलग-अलग दिए हैं। वहीं, सिर्फ 13 फीसदी ने अपने अध्ययन में महिलाओं और पुरुषों पर पड़ने वाले प्रभाव पर किसी तरह की चर्चा की है। 2020 में पत्रिकाओं में प्रकाशित पांच परीक्षण रिपोर्ट में से सिर्फ एक में महिलाओं और पुरुषों को लेकर अलग-अलग परिणाम बताए गए हैं।
(360इन्फो)
स्नेहा मनीषा नेत्रपाल
नेत्रपाल
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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