टाइफाइड बैक्टीरिया जरूरी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति तेजी से प्रतिरोधी हो गए हैं : अध्ययन |

टाइफाइड बैक्टीरिया जरूरी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति तेजी से प्रतिरोधी हो गए हैं : अध्ययन

टाइफाइड बैक्टीरिया जरूरी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति तेजी से प्रतिरोधी हो गए हैं : अध्ययन

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:54 PM IST, Published Date : June 22, 2022/5:35 pm IST

बोस्टन, 22 जून (भाषा) टाइफाइड बुखार पैदा करने वाले बैक्टीरिया कुछ सबसे महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर तेजी से प्रतिरोधी बनते जा रहे हैं। ‘द लैंसेट माइक्रोब’ पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में यह जानकारी दी गई।

साल्मोनेला एंटरिका सेरोवर टाइफी (एस. टाइफी) का सबसे बड़ा जीनोम विश्लेषण यह भी दर्शाता है कि प्रतिरोधी उपभेद (स्ट्रेन्स) – जो लगभग सभी, दक्षिण एशिया में उत्पन्न हुए – 1990 के बाद से अन्य देशों में लगभग 200 गुना फैल गए हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि टाइफाइड बुखार एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है, जिससे प्रति वर्ष 1.1 करोड़ लोग संक्रमित होते हैं और 100,000 से अधिक लोगों की जान जाती है।

उन्होंने कहा कि इसका प्रभाव दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है – जो वैश्विक बीमारी के बोझ का 70 प्रतिशत है- इसका उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और ओशिनिया में भी महत्वपूर्ण प्रभाव है, जो वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

टाइफाइड बुखार के संक्रमण का सफलतापूर्वक इलाज करने के लिए एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन प्रतिरोधी एस. टाइफी उपभेदों के उभरने से उनकी प्रभावशीलता पर असर पड़ता है।

प्रतिरोधी एस. टाइफी के उदय और प्रसार का विश्लेषण अब तक सीमित रहा है, जिसमें अधिकांश अध्ययन छोटे नमूनों पर आधारित हैं।

अमेरिका के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय से अध्ययन के मुख्य लेखक जेसन एंड्र्यूज कहते हैं, “हाल के वर्षों में एस.टाइफी के बेहद प्रतिरोधी उपभेद जिस तेजी से उभरे और फैले वह वास्तविक चिंता का कारण है और निषेध कार्यक्रमों के विस्तार की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं, विशेषकर ज्यादा जोखिम वाले देशों में।”

एंड्र्यूज ने कहा, “इसके साथ ही, एस. टाइफी का प्रतिरोधी उपभेद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैल गया है, इसलिए यह कई बार टाइफाइड नियंत्रण और एंटीबायोटिक प्रतिरोध को स्थानीय समस्या के बजाय वैश्विक रूप से देखने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।”

नए अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने 2014 और 2019 के बीच बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान में टाइफाइड बुखार के पुष्ट मामलों वाले लोगों से एकत्र किए गए रक्त के नमूनों से प्राप्त 3,489 एस. टाइफी आइसोलेट्स पर पूरे-जीनोम अनुक्रमण का प्रदर्शन किया।

इसके अलावा 1905 और 2018 के बीच 70 से अधिक देशों से पृथक किए गए 4,169 एस. टाइफी नमूनों के संग्रह को भी अनुक्रमित कर विश्लेषण में शामिल किया गया।

आनुवांशिक डेटाबेस का उपयोग करके 7,658 अनुक्रमित जीनोम में प्रतिरोध प्रदान करने वाले जीन की पहचान की गई थी।

उपभेदों में अग्रिम तौर पर इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक्स एम्पीसिलीन, क्लोरैम्फेनिकॉल और ट्राइमेथोप्रिम/सल्फामेथोक्साज़ोल के प्रतिरोध देने वाले जीन शामिल थे तो उनको मल्टीड्रग-प्रतिरोधी (एमडीआर) के रूप में वर्गीकृत किया गया था।

लेखकों ने मैक्रोलाइड्स और क्विनोलोन को प्रतिरोध प्रदान करने वाले जीन की उपस्थिति का भी पता लगाया, जो मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक दवाओं में से हैं।

विश्लेषण से पता चलता है कि प्रतिरोधी एस. टाइफी उपभेद 1990 के बाद से देशों के बीच कम से कम 197 गुना फैल चुके हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि ये उपभेद सबसे अधिक बार दक्षिण एशिया और दक्षिण एशिया से दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में पाए गए। ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा में भी इनकी सूचना मिली है।

वर्ष 2000 के बाद से, बांग्लादेश और भारत में एमडीआर एस. टाइफी में गिरावट आई है और नेपाल में भी यह कम बना हुआ है लेकिन पाकिस्तान में इसमें थोड़ी वृद्धि देखी गई है।

भाषा

प्रशांत नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)