महामारी के बाद जनजीवन कब सामान्य होगा? |

महामारी के बाद जनजीवन कब सामान्य होगा?

महामारी के बाद जनजीवन कब सामान्य होगा?

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:09 PM IST, Published Date : December 3, 2021/12:25 pm IST

डैनी डोरलिंग, हॉफर्ड मैकिंडर प्रोफेसर ऑफ जियोग्राफी, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड

लंदन, 3 दिसंबर (द कन्वरसेशन) कोई भी निश्चित रूप से यह नहीं जान सकता कि किसी विशेष घटना के बाद जीवन कब सामान्य हो जाएगा, कम से कम इसलिए नहीं कि जो सामान्य है वह बदलता रहता है, यहां तक ​​कि सामान्य समय में भी। फिर भी, यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके बारे में कोई कुछ नहीं बता सकता – खासकर कोविड से जुड़े नये घटनाक्रम के बाद, जैसे कि ओमिक्रोन संस्करण का उभरना, महामारी के बारे में धारणाओं और भविष्यवाणियों का बदलना जारी है।

यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर ब्रिटेन का राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (ओएनएस) भी विचार कर रहा है। 27 मार्च, 2020 को, ओएनएस ने ब्रिटिश आबादी के एक बड़े हिस्से से यह पूछना शुरू किया कि उनके विचार में जीवन कब सामान्य हो जाएगा। यह वह समय था जब महामारी की पहली लहर शुरू हुई थी, कोविड के मामले और इससे होने वाली मौतें तेजी से बढ़ रही थीं। ब्रिटेन में पहला लॉकडाउन लगे बस कुछ ही दिन हुए थे।

ओएनएस ने उस दिन और अगले दस दिनों तक लोगों का सर्वेक्षण किया। उस समय केवल 15% ने कहा कि वे अनिश्चित हैं, कि जीवन कब सामान्य होगा, और केवल 11% आबादी ने सोचा कि इसमें एक वर्ष या उससे अधिक समय लग सकता है। बाकी 75% ने सोचा कि मार्च 2020 के एक साल के भीतर जनजीवन सामान्य हो जाएगा।

तब किसी ने नहीं सोचा था कि जीवन कभी सामान्य नहीं हो सकता। बहुमत ने सोचा कि छह महीने के भीतर सामान्य स्थिति वापस आ जाएगी। हम इंसान (आमतौर पर) आशाओं के साथ जीते हैं।

बाद के 20 महीनों में, ओएनएस ने 76 और सर्वेक्षण किए, आमतौर पर हर हफ्ते एक। उन्होंने प्रत्येक सर्वेक्षण में एक ही सवाल पूछा कि ग्रेट ब्रिटेन में लोगों को कब तक जीवन के सामान्य होने की उम्मीद है।

14 नवंबर, 2021 को समाप्त हुए 77वें सर्वेक्षण के समय तक, जिन लोगों ने कहा था कि वे जीवन के सामान्य होने के समय को लेकर अनिश्चित हैं, उनका अनुपात दोगुना होकर 31% हो गया था। जिस अनुपात ने सोचा था कि सामान्य हालात पर लौटने में कम से कम एक साल लगेगा, उनका अनुपात पहले से तीन गुना बढ़कर 35% हो गया।

इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए 14% का सोचना था कि जीवन फिर कभी सामान्य नहीं होगा। और जिस अनुपात ने सोचा था कि जीवन एक साल के भीतर सामान्य हो जाएगा, उनका हिस्सा तीन चौथाई से घटकर पांचवां यानी 20 प्रतिशत रह गया। हमारा इस बात से विश्वास हट चुका है कि हालात कभी सामान्य होंगे।

अब तक अनिश्चितता में भारी उछाल दो लहरों में आया है। पहली अनिश्चितता की लहर अगस्त 2020 में चरम पर थी, जब कोविड के मामले और मौतें लगभग शून्य थीं। उसके बाद हमारी अनिश्चितता का स्तर, रैखिक रूप से, जनवरी 2021 के मध्य तक गिर गया।

इस बिंदु पर, हममें से ज्यादातर लोगों ने सोचा कि 77 सर्वेक्षणों में किसी भी अन्य बिंदु की तुलना में अब हम जानते हैं कि आगे क्या हो सकता है। हालाँकि, उसके बाद हम धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से और अधिक अनिश्चित होते गए कि भविष्य में क्या हो सकता है। अनिश्चित होने की दूसरी लहर अभी तक अपने चरम पर नहीं आई है।

हम सामान्य स्थिति के बारे में अपनी परिषाभा खुद बनाते हैं

ऐसा हमेशा होता है कि किसी बिंदु पर जीने का वह तरीका जिसे हम में से अधिकांश सामान्य के रूप में वर्णित करते हैं, लौट आता है, और लौट आएगा, लेकिन अब यह एक नया सामान्य होगा। हमारे दिमाग में महामारी ने अलग-अलग मोड़ लिए हैं, जिन्हें इसके मामलों, अस्पताल में भर्ती होने और मौतों से मापा जाता है।

77 सर्वेक्षणों में से सबसे हाल के सर्वेक्षणों में, पांच में से तीन वयस्कों ने कहा कि उन्होंने ‘‘पिछले सात दिनों में अपने घर के बाहर दूसरों के साथ मेलजोल से परहेज किया है’’। पांच में से दो ने बताया कि ‘‘पिछले सात दिनों में केवल उनके परिवार के लोग उनके घर में थे’’। इनमें से कोई भी उपाय पिछले सर्वेक्षण से नहीं बदला था। उदाहरण के लिए, यदि, व्यवहार का यह पैटर्न समान रूप से अपरिवर्तित रहता है, तो संभव है कि समय के साथ, यह लगने लगे कि यही सामान्य है।

दूसरी ओर, ओएनएस ने अब लोगों के 77 अलग-अलग समूहों (सभी को औचक रूप से चुना) से जो सवाल पूछा है, वह विशेष रूप से महामारी के बारे में नहीं है – यह सामान्य ‘‘जीवन’’ के बारे में है। यह बहुत संभव है कि पहले पहल ज्यादातर लोगों ने महामारी को ध्यान में रखकर इस सवाल का जवाब दिया हो। हालाँकि, समय बीतने के साथ, जीवन के अन्य पहलुओं के प्रति हमारा नजरिया भी बदला होगा।

चीजें हमेशा बदलती रहती हैं। हो सकता है कि लोगों के जवाब इसे प्रतिबिंबित करने के लिए आए हों, और महामारी की परवाह किए बिना, सामान्य परिस्थितियों को एक ऐसे अतीत के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसे दोबारा हासिल नहीं किया जा सकता है।

अब हम उस बिंदु के बहुत करीब हैं जहां अधिकांश वयस्कों का मानना ​​है कि सामान्य होने में कम से कम एक वर्ष (2023 में) लगेगा – या यह कभी वापस नहीं आएगा। और जो लोग ऐसा नहीं सोचते हैं, उनमें से अधिकांश इस बारे में अनिश्चित होते जा रहे हैं कि क्या होगा।

किसी बिंदु पर, हममें से अधिकांश लोग इस बात के अभ्यस्त हो जाएंगे कि चीजें कैसे बदल गई हैं, और हम अपनी बदली हुई दुनिया को सामान्य रूप में देखना शुरू कर देंगे। हममें से जो लोग महामारी से गुजरे हैं, उनके लिए यह हमेशा हमारे दिमाग में रहेगा। लेकिन हम कैसे पीछे मुड़कर देखते हैं और महामारी तथा मार्च 2020 से पहले के समय को याद करते हैं, यह हमेशा बदलता रहेगा।

द कन्वरसेशन एकता

एकता

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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