(इकबाल अख्तर, एसोसिएट प्रोफेसर ऑफ रिलिजियस स्टडीज, फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी)
फ्लोरिडा (अमेरिका), 14 सितंबर (द कन्वरसेशन) अफगानिस्तान अपने पहाड़ी दर्रों के माध्यम से निरंतर प्रवास का स्थान रहा है। यहां की भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता रेशम मार्ग के जरिए हजारों वर्षों से चले आ रहे व्यापार का परिणाम है। देश के संविधान में एक दर्जन से अधिक जातीय समूहों का उल्लेख है।
अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने का मतलब है कि कुछ अल्पसंख्यक समुदायों के उत्पीड़न का खतरा फिर बढ़ गया है।
धर्म और राजनीति के विद्वान होने के नाते खोजा (शिया मुस्लिम समुदाय जो मूल रूप से भारत से है, लेकिन अब दुनिया भर में फैला हुआ है) पर ध्यान केंद्रित किया और इस क्षेत्र में एक धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यक होने संबंधी अनिश्चितता और अस्थिरता का अध्ययन किया है।
अफगानिस्तान के वे लोग जिनके लिए बहुत कुछ खोने का खतरा सबसे अधिक है, वे इस्लाम की एक अलग व्याख्या वाले समूह हैं, विशेष रूप से शिया हजारा समुदाय, जो देश का तीसरा सबसे बड़ा जातीय समूह है जिसने एक सदी से अधिक समय से भेदभाव का सामना किया है।
जुलाई 2021 में, एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण-पूर्वी अफगानिस्तान में तालिबान के लड़ाकों ने नौ हजारा पुरुषों की हत्या कर दी थी। यह घटना तालिबान के पहले के शासनों की याद दिलाती है, जब पहले भी उसने हजारा समुदाय को निशाना बनाया था।
दक्षिण एशिया में हजारा समुदाय की जड़ें सदियों पुरानी हैं। ऐसा माना जाता था कि उनके पूर्वज मंगोल सैनिक थे और हाल में जेनेटिक विश्लेषण में इस बात की पुष्टि हुई कि मंगोल वंश उनका आंशिक तौर पर पूर्वज था। आज अफगानिस्तान की आबादी में दस से बीस फीसदी संख्या हजारा समुदाय की है और उनका परंपरागत स्थान केंद्रीय क्षेत्र हजाराजात कहलाता है। 3.8 करोड़ की आबादी वाले देश में यह अल्पसंख्यक समुदाय महत्व रखता है। इस समुदाय के लोग पाकिस्तान, अमेरिका और ब्रिटेन में भी हैं।
हजारा समुदाय के ज्यादातर लोग मुस्लिम होते हैं और उनमें से भी अधिकतर अल्पसंख्यक शिया परंपरा को मानने वाले हैं। दुनियाभर में ज्यादातर मुस्लिम सुन्नी परंपरा का पालन करते हैं। अफगानिस्तान में भी बहुसंख्यक सुन्नी मुस्लिमों और शिया लोगों के बीच निरंतर संघर्ष होता रहता है और अफगानिस्तान में हजारा समुदाय को तालिबान और पाकिस्तान में उससे संबंधित समूह लगातार अपने बर्बर हमलों का निशाना बनाते रहे हैं।
तालिबान को केवल मुस्लिम कट्टरपंथी समूह समझने से हो सकता है कि हम अफगानिस्तान में वह क्यों और कैसे काम करता है, इसकी राजनीतिक और आर्थिक वास्तविकता देखने से चूक जाएं।
दरअसल दुनिया में सबसे अधिक अफीम का उत्पादन अफगानिस्तान में होता है। इससे हेरोइन बनती है और इस लाभ पर लगभग पूरा नियंत्रण तालिबान का ही है। धर्म के नाम पर हिंसा करने से इस समूह को अपने क्षेत्र का विस्तार करने और उस पर नियंत्रण पाने में मदद मिली है। और इस लिहाज से देखा जाए तो हजारा जैसे अल्पसंख्यक समुदाय उसके लिए खतरा बनते हैं जिनकी अलग परंपराएं उसके लिए चुनौती खड़ी करती हैं।
(द कन्वरसेशन)
मानसी शाहिद
शाहिद
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
ब्रिटेन ने यूक्रेन को 62 करोड़ डॉलर की नयी सैन्य…
10 hours agoखबर ब्रिटेन रक्षा बजट
10 hours agoनासा मंगल ग्रह से नमूने लाने वाले मिशन में बदलाव…
12 hours agoईरान के राष्ट्रपति रईसी और पाक सेना प्रमुख मुनीर ने…
14 hours ago