कुछ देशों में सफल रहा है जीरो कोविड, लेकिन अब विस्तृत टीकाकरण ही बचाव का तरीका |

कुछ देशों में सफल रहा है जीरो कोविड, लेकिन अब विस्तृत टीकाकरण ही बचाव का तरीका

कुछ देशों में सफल रहा है जीरो कोविड, लेकिन अब विस्तृत टीकाकरण ही बचाव का तरीका

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:50 PM IST, Published Date : October 13, 2021/5:06 pm IST

रूआरी ब्रुगा, आरसीएसआई यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन एंड हेल्थ साइंस में जन स्वास्थ्य और महामारी विषय की एमिरेट्स प्रोफसर द्वारा

डबलिन, 13 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) महामारी की शुरुआत से ही कई देशों ने जीरो-कोविड रणनीति अपनायी जिसका लक्ष्य अपनी सीमा के भीतर से कोरोना वायरस संक्रमण को समाप्त करना था। लेकिन अब अत्यधिक संक्रामक डेल्टा वेरिएंट आने के बाद कई देश इस रणनीति को छोड़ रहे हैं।

वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया के बाद अब न्यूजीलैंड ने भी जीरो-कोविड रणनीति छोड़ दी है।

कभी जीरो-कोविड सफलता के लिए तारीफ पाने वाले वियतनाम में हाल के दिनों में कोरोना वायरस संक्रमण से होने वाली मौतों में तेजी से वृद्धि हुई है। 9.7 करोड़ की आबादी होने के बावजूद मई 2021 तक वियतनाम अपने यहां संक्रमण के मामलों को 3,000 के भीतर रखने में सफल रहा था। लेकिन अक्टूबर 2021 में यहां कोरोना वायरस संक्रमण के 8,00,000 मामले हैं और संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या 35 से बढ़कर 20,000 हो गयी है।

चीन, हांगकांग और ताइवान अभी भी जीरो-कोविड रणनीति का पालन कर रहे हैं। हालांकि किसी को अनुमान नहीं है कि ये इस रणनीति पर कब तक कायम रहेंगे।

अलग-अलग रास्ते —

जनवरी 2020 में चीन में नयी महामारी आने की शुरुआती सूचना के साथ ही जिन देशों ने तत्काल अपनी सीमाएं बंद कर दीं, वे जीरो-कोविड रणनीति अपनाने और मृत्यु दर को कम रखने में सफल रहे। सीमा पर प्रभावी पृथक-वास द्वीपीय देशों के लिए सबसे आसान था। लेकिन चीन जैसे देश, जहां केन्द्रीय सरकार बहुत मजबूत थी वह भी इस रणनीति को लागू करने में सफल रहे।

इसपर बहुत कम संदेह है कि जिन देशों ने जीरो-कोविड रणनीति अपनायी उन्होंने लाखों नहीं तो कम से कम हजारों लोगों की जान तो जरूर बचायी। लेकिन सबसे जरूरी सबक एक रणनीति खोज कर उसपर टिके रहना नहीं, बल्कि विज्ञान के साथ धीरे-धीरे मजबूती से आगे बढ़ना है।

संक्रामक बीमारी और उनके लिए हमारी प्रतिक्रिया दोनों ही में बदलाव आया है। डेल्टा वेरिएंट के संक्रमण की दर से जुड़े सामान्य तथ्य दिखाते हैं कि सार्स-सीओपी-2 की म्यूटेट करने की संक्रमण के दौरान कैसे महत्वपूर्ण बन गयी।

पुराने कोरोना वायरस के मुकाबले उसके डेल्टा वेरिएंट का वायरल लोड 1,000 गुना ज्यादा है। वायरल लोड गले और नाक में जमा वायरस की सांद्रता से जुड़ा है। पुराने वायरस से संक्रमित एक व्यक्ति जहां 2.8 लोगों को संक्रमित कर सकता था, वहीं डेल्टा वेरिएंट से संक्रमित व्यक्ति 5.1 व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। शुरुआती संक्रमण के दौरान वायरस से संक्रमित एक व्यक्ति से तीन सप्ताह में जहां 15 लोग संक्रमित हो सकते थे, वहीं इसी अवधि में म्यूटेटेड वायरस से संक्रमित व्यक्ति 200 और लोगों को संक्रमित कर सकता है।

ऐसे देश जिन्होंने अपनी सीमाएं तत्काल बंद कर दी थीं और जहां भौगोलिक, राजनीतिक और आर्थिक कारक उनके पक्ष में थे, वे जीरो-कोविड रणनीति अपनाकर कोरोना वायरस संक्रमण से होने वाली मौतों को रोक सके और अपनी सीमा के भीतर हालात काफी हद तक सामान्य रख सके। यूरोप और अमेरिका में किसी देश ने यह रणनीति नहीं अपनायी। लेकिन संक्रमण की दर में तेजी से हो रही वृद्धि और बेहद प्रभावी टीके के विकास से उनकी प्रतिक्रिया/रणनीति में बदलाव आया है।

भारी कीमत चुकानी पड़ी

सिंगापुर जैसे भी कुछ देश हैं जिन्होंने अपने यहां संक्रमण के मामलों और संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या को कम रखा और बेहद तेजी से अपने यहां टीकाकरण किया। वहीं न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में अभी 40-50 प्रतिशत टीकाकरण हुआ है और वहां संक्रमण का खतरा बना हुआ है। वहीं चीन में 75 प्रतिशत टीकाकरण हो चुका है लेकिन ताइवान और वियतनाम काफी पीछे हैं।

कोविड बीमारी और संक्रमण बच्चों में असमान्य है। इसलिए महत्वपूर्ण लक्ष्य वयस्कों में टीकाकरण को 90 प्रतिशत से ऊपर ले जाना है, जिसे डेनमार्क, आयरलैंड और पुर्तगाल ने प्राप्त कर लिया है। लेकिन आजकल टीकाकरण के बावजूद बेहद हल्का संक्रमण होना अब सामान्य बात हो गयी है। देशों ने बूस्टर टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया है ताकि बुजुर्गों और संवेदनशील वर्ग की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ायी जा सके।

द कन्वरसेशन अर्पणा उमा

उमा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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