Nindak Niyre: MP कांग्रेस ने पहली बार नब्ज पकड़ी, संगठन में जैसे बदलाव चाहिए थे वैसे किए, संभावना वाले राज्य में इसी ताकत से सृजन की जरूरत थी
Barun Sakhajee New Column for insights, analysis and political commentary
बरुण सखाजी श्रीवास्तव, सह-कार्यकारी संपादक, IBC24
एमपी कांग्रेस की नई बनावट कांग्रेस के भीतर रिवाइवल की छटपटाहट को बता रही है। पूर्व मुख्यमंत्रियों के बोझ तले दबी कांग्रेस पहली बार नए रूप में आई है। जिले के कद्दावर नेता, चुने हुए प्रमाणित नेताओं को संगठन का जिम्मा दिया गया है। कांग्रेस के अंदर एक कांग्रेस और पनपने की संभावनाओं को कम किया गया है। एमपी के पीसीसी जीतू पटवारी बड़े, वरिष्ठ, दिग्गज जैसे सदा चिपके रहने वाले शब्दों से फिलहाल दूर हैं। जिला अध्यक्षों की टीम देखकर लगता है पार्टी सत्ता में आने से ज्यादा मैदान पर दिखने पर जोर दे रही है। जब मैदान में मजबूत होगी तो सत्ता मैं आना कठिन नहीं होगा। फिलहाल यह एक फैसला है जो अच्छे के लिए लिया गया है, किंतु आगामी कल पर क्या असर डालेगा, इसे समझने के लिए आइए हम दो कालखंडों से गुजरते हैं
पहला कालखंड
कांग्रेस के जिला अध्यक्ष जिले के साधारण नेता रहते आए हैं। ये नेता ज्यादातर समय जिले के चुने हुए विधायकों अथवा सांसदों के चक्कर लगाते नजर आते रहे हैं। इनके अपने मौलिक फैसले कम ही देखने को मिलते हैं। जिले के चुने हुए विधायक, सांसद यहां तक कि जिला पंचायत सदस्यों तक के यहां कांग्रेस के जिला अध्यक्षों के दर से ज्यादा भीड़ होती आई है। ऐसे में संगठन का जिला मुखिया कभी शक्ति का केंद्र नहीं बन पाता। नतीजा यह कमांडिंग अथोरिटी नहीं होता। इससे चुनाव के समय भी पार्टी की निर्भरता प्रत्याशी पर बढ़ जाती है। आमतौर पर कांग्रेस का संगठन चुनाव में फौरी तौर पर ही इन्वॉल्व रहता है, प्रत्याशी पर ही असल में दारोमदार रहता है। इस कालखंड में कांग्रेस में टिकट देने वाला, टिकट पाने वाला, चुनाव में लड़ने वाले, जीतने वाला ही शक्तिशाली होता है, शेष उसके पीछे खड़े होते हैं। यह हाल जिला कांग्रेस इकाइयों का होता है। इसके ठीक उलट भाजपा में एक जिले में अगर 4 विधायक हैं तो भी जिला अध्यक्ष इनसे बराबरी से बात कर पाता है। प्रोटोकॉल तो कांग्रेस में भी है, किंतु कमतर शक्तिशाली और क्षमतावान को जिला टीम सौंपने से यह कमांडिंग नहीं हो पाने की शिकायतें रहती हैं। जिला अध्यक्ष सदैव टिकट की रेस में रहते हैं। भाजपा में भी रहते हैं, किंतु भाजपा उन्हें समय-समय पर रेस आउट भी करती रहती है। कांग्रेस में संगठनवाद की बजाए नेतावाद ज्यादा है, तो यहां ऐसा होकर भी नहीं हो पाता। कांग्रेस को असल में यहीं पर इलाज करने की जरूरत थी। अब बढ़ते हैं दूसरे कालखंड की ओर।
दूसरा कालखंड
एमपी कांग्रेस में जारी सूची में ग्रामीण और शहरी मिलाकर कई नेताओं को जिला टीम डील की जिम्मेदारी मिली है। इनमें विधायक, पूर्व विधायक, पूर्व सांसद, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष अथवा किसी अन्य निर्वाचन प्रक्रिया से खरे होकर आए लोग शामिल हैं। इसका फायदा कांग्रेस को सीधे तौर पर मिलेगा, क्योंकि चुने हुए व्यक्ति का अपना एक सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष होता है। ऐसे में उसके साथ पद पाते ही वे भी खड़े हो जाएंगे जो नकारात्मक रहे हैं। इसके अलावा जिस आर्थिक तंगी से कांग्रेस की निचली इकाइयां जूझ रही हैं वह निर्वाचित लोगों के होने से बाधक नहीं बनेगी। निर्वाचित होने के कारण बड़े स्तंभ भी इन्हें पालों से परे देख पाएंगे। इनकी अपनी गति हो सकेगी। इनका कहना, सुनना, समझाना प्रशासन पर भी असर डालेगा। कांग्रेस के पास अपनी समस्या लेकर आए उसके कार्यकर्ता या उसके समर्थक या उसके वोटर को ये लोग अपने पद के साथ उसे मैक्सीमम राहत भी दे पाएंगे। खुद भी अपनी क्षमता में कुछ देने की स्थिति में हैं। इससे कांग्रेस के प्रति लोगों को भरोसा बढ़ेगा। कुछ खतरे भी हैं, लेकिन खतरे किस फैसले में नहीं होते। उन पर चर्चा बाद में।
अब ये दो कालखंड हमे बता रहे हैं कांग्रेस में दूसरा कालखंड 2025 से शुरू हो रहा है। इसका रिजल्ट 2028 में पता चलेगा। खेल के नतीजे सदैव अंत में ही आते हैं, लेकिन खेल के दौरान दर्शक समझ जाते हैं कि नतीजे क्या आ सकते हैं। इस फैसले को राजनीतिक नजरिये से देखेंगे तो समझ पाएंगे कि सच में कांग्रेस का यह फैसला अच्छे परिणाम वाले खेल की ओर बढ़ रहा है।

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