Mahendra Singh Dhoni: अब कोई और नहीं बन सकेगा ‘कैप्टन कूल’!
अब सवाल ये है कि क्या खेल प्रेमियों द्वारा दिए जाने वाले इन उपनामों का इस्तेमाल खिलाड़ियों द्वारा निजी फायदे के लिए करना उचित है?.. इसके पीछे एक तर्क ये भी हो सकता है कि ये नाम खिलाड़ियों ने अपनी मेहनत के दम पर अर्जित किया है तो वो जैसा चाहें वैसा इसका इस्तेमाल करें।

Now no one else can become 'Captain Cool'! || Image- Baltana - HD Wallpapers file
रायपुर: भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने अपने मशहूर उपनाम ‘कैप्टन कूल’ को ट्रेडमार्क कराने के लिए आवेदन किया है। ट्रेडमार्क रजिस्ट्री पोर्टल से मिली जानकारी के मुताबिक ये आवेदन स्वीकार कर लिया गया है, इसका मतलब ये कि अब कोई भी ‘कैप्टन कूल’ के उपनाम का इस्तेमाल किसी दूसरे खिलाड़ी के लिए नहीं कर पाएगा, मतलब ये कि अब टीम इंडिया में कोई और ‘कैप्टन कूल’ नहीं होगा। सवाल ये कि धोनी को उनके फैंस की ओर से दिए इस उपनाम का ट्रेडमार्क करवाने की जरूरत क्यों पड़ी। क्या इसके पीछे इमोशनल से ज्यादा कमर्शियल कारण है? (Now no one else can become ‘Captain Cool’!) दरअसल धोनी की कोराबारी कंपनी स्पोर्ट्स ट्रेनिंग, कोचिंग सेंटर्स, ट्रेनिंग सेंटर्स भी चलाती है, इसके लिए कानूनी रूप से ‘कैप्टन कूल’ नाम को सुरक्षित करा लिया गया है। जानकारी इसे धोनी की ब्रांड वैल्यू और उनकी सार्वजनिक पहचान को कानूनी सुरक्षा देने की दिशा में उठाया गया कदम बता रहे हैं।
खेल की दुनिया में खिलाड़ियों को अलग-अलग उपनाम देने की परंपरा रही है, सिर्फ क्रिकेट ही नहीं बल्कि फुटबॉल, हॉकी, एथलेटिक्स, स्विमिंग, शतरंज के साथ कई खेलों में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को उनके चाहने वाले या खेल विशेषज्ञ या कमेंटेटर या पत्रकारों द्वारा कई उपनाम दिए जाते रहे हैं। खिलाड़ियों को उपनाम देने की परंपरा खेल संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो प्रशंसकों को एथलीटों को पहचानने और उनसे जुड़ने में मदद करती है। उपनाम अक्सर किसी खिलाड़ी के कौशल, व्यक्तित्व या यादगार क्षणों को दर्शाते हैं। उपनाम प्रशंसकों को अपने पसंदीदा खिलाड़ियों से भावनात्मक रूप से जुड़ने में मदद करते हैं। उपनाम अक्सर किसी खिलाड़ी के विशेष कौशल या विशेषता को दर्शाते हैं, किसी खिलाड़ी के व्यक्तित्व या व्यवहार को भी दर्शा सकते हैं, इसी कड़ी में ‘कैप्टन कूल’ महेंद्र सिंह धोनी के शांत और संतुलित नेतृत्व का प्रतीक रहा है। ऐसे ही महान फुटबॉलर पेले को ‘ब्लैक पर्ल’ के नाम से जाना गया, महान भारतीय हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाता है, ऐसे ही द फ्लाइंग सिख: मिल्खा सिंह, मास्टर ब्लास्टर: सचिन तेंदुलकर, द वॉल: राहुल द्रविड़, द फ्लाइंग सिख: मिल्खा सिंह, उड़नपरीः पीटी उषा, लाइटनिंग बोल्टः उसेन बोल्ट, रावलपिंडी एक्सप्रेसः शोएब अख्तर… ऐसी ही लंबी फेहरिश्त है खेल और खिलाड़ियों की जिनके असाधारण खेल प्रतिभा के चलते उनके चाहने वालों ने उन्हें उपनामों से नवाजा है। इसी तरह क्रिकेट में “सर” की उपाधि, जिसे नाइटहुड भी कहा जाता है, इंग्लैंड में दी जाने वाली एक सम्मानजनक उपाधि है। यह उपाधि उन क्रिकेटरों को दी जाती है जिन्होंने खेल में उत्कृष्ट योगदान दिया हो। भारत में किसी भी खिलाड़ी को “सर” की उपाधि नहीं मिली है। लेकिन डॉन ब्रेडमेन, गैरी सॉबर्स, रिचर्ड हेडली जैसे खिलाड़ियों को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के चलते सर की उपाधि दी गई है।
कुल मिलाकर खेलों में खिलाड़ियों को उपनाम दिया जाना कोई नई बात नहीं है, और इन उपनामों का ट्रेडमार्क करवाया जाना भी नया नहीं है। दिग्गज फुटबॉल खिलाड़ी रोनाल्डो ने “CR7” का ट्रेडमार्क कराया है जो उनकी जर्सी नंबर से जुड़ा है, जमैका के मशहूर धावक उसैन बोल्ट ने अपने “लाइटनिंग बोल्ट” पोज़ का ट्रेडमार्क कराया है, बोल्ट का यह पोज एक ट्रेडमार्क बन गया था, भारत के दिग्गज विराट कोहली ने अपने नाम और ‘VK’ लोगो को ट्रेडमार्क के रूप में रजिस्टर्ड कराया हुआ है, पूर्व भारतीय क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने ‘मास्टर ब्लास्टर’ उपनाम को ट्रेडमार्क के रूप में पंजीकृत कराया है, ऐसे ही रोहित शर्मा ने अपने निकनेम ‘हिटमैन’ को ट्रेडमार्क के रूप में पंजीकृत कराया है। जाहिर ट्रेडमार्क कराने का मकसद है फैंस की ओर से दी गई इस पहचान का कमर्शियल इस्तेमाल करना।
अब सवाल ये है कि क्या खेल प्रेमियों द्वारा दिए जाने वाले इन उपनामों का इस्तेमाल खिलाड़ियों द्वारा निजी फायदे के लिए करना उचित है?.. इसके पीछे एक तर्क ये भी हो सकता है कि ये नाम खिलाड़ियों ने अपनी मेहनत के दम पर अर्जित किया है तो वो जैसा चाहें वैसा इसका इस्तेमाल करें। (Now no one else can become ‘Captain Cool’!) लेकिन ऐसे कई सर्वकालिक महान खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपने उपनामों का ट्रेडमार्क रजिस्टर नहीं करवाया, हो सकता है उन्हें जरूरत ना लगी हो, या ये भी हो सकता है कि वो ये सोचते हों कि जो दिया ही दूसरों ने है उसे अपना बताकर ट्रेडमार्क कराना शायद ठीक नहीं।
आप क्या सोचते हैं, अपनी राय जरूर दीजिए।