Paramhans_Shrirambabajee: साधक, सिद्ध, सुजान, कौन सबसे निचला पायदान

Paramhans_Shrirambabajee: साधक, सिद्ध, सुजान, कौन सबसे निचला पायदान

Shriram babajee as oasho

Modified Date: November 13, 2025 / 10:44 pm IST
Published Date: November 13, 2025 10:42 pm IST

बरुण सखाजी श्रीवास्तव

परमहंस श्रीराम बाबाजी मौन बैेठे थे। उसी बीच मेरे वरिष्ठ मित्र दर्शन के लिए आए। महाराज जी ने आंखें खोलकर बोला तीन बैठे हैं, साधक, सिद्ध, सुजान। शक्कर, नमक, चाउंर। बुद्धि में ही विचरण करने वाला मैं अंहकारी यह कैसे समझ पाता, कहा क्या जा रहा है। मित्र कुछ समझे और महाराजजी के सामने करबद्ध शरणागत स्वरूप में हो गए। यह उनकी पहली भेंट थी महाराजजी से। भेंट इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि वे साधनाओं में अटूट विश्वास रखते हैं, किंतु कीर्तन, भजन, भक्ति में उनकी आस्था कम है। इसका अर्थ यह नहीं है कि वे कीर्तन, भक्ति, भजन को मान्यता नहीं देते, अनादर करते हैं। वे इनका सम्मान करते हैं, परंतु स्वयं को इनके लिए उपयुक्त नहीं मानते।

इस घटनाक्रम को मैं बुद्धि से नहीं समझ सकता था। मित्र शरणागत स्वरूप में महाराजजी से इंद्रियातीत विमर्श कर रहे थे। मैं भौतिक पुतला इंद्रियों में विमर्श खोज रहा था। मैं कानों से सुनना चाहता था, आंखों से देखना चाहता था, जुबान से बोलना चाहता था, नाक से सूंघना चाहता था, त्वचा से स्पर्श चाहता था। दृष्टि संवाद को डिकोड कर नहीं सकता था। न क्षमता थी न क्षमता है।

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महाराजजी चैतन्य हनुमानजी श्रीराम बाबाजी इंद्रियातीत विमर्श, संवाद किया करते थे। हम भौतिकी में इंटरप्रिटेशन करते रहें। समझते रहें अपनी-अपनी सुविधाओं के अनुसार। जब हम इस तरह के संवाद, आदेश, अनुभव को डिकोड करके अपनी भौतिकी समझ के दायरे में लाने की कोशिश करते हैं तो यह दूषित हो जाती है। क्योंकि इसे हम अपनी सुविधानुसार समझना चाहते हैं। सुविधानुसार समझने की वृत्ति ही हमारी अनुकूलताओं को पोषित करती है। जो हमारे अनुकूल है वही सत्य है और वही होना चाहिए। जो हमारे प्रतिकूल है वह नहीं है और वह नहीं होना चाहिए। अर्थ हुआ, इस्लाम के समान कट्टरता का शीर्ष हमारे भीतर स्थापित हो जाए।

महाराजजी मेरी तरफ देखकर हंस रहे थे। कह रहे थे हम हैं सिद्ध, तुमरे जे मित्र हैं साधक और तुम हो सुजान। नमक, शक्कर, चाउंर। और ठहाका लगाकर महाराज जी जैसी निश्छल हंसी में हसंते थे वह हंस पड़े। मेरी ओर हाथ करके बोल रहे थे चांउर हैं अभे पके नहीं हैं। मनो पक जै हैं। हम नमक हैं। तन्नक से ही भौत हैं, तुम शक्कर हो तनक और हो तो भौत हो और जे चाउंर है, कजन कित्ते। फिर महाराजजी ठहाका लगाकर हंसते हैं। ताली पीटकर हंसते हैं। मैं भी अब समझने की ओर था। उन्होंने ठहरकर, ठहाका लगाकर जो कहा उसका आशय और अर्थ, किंतु मैं समझा था, अभी उन्होंने नहीं समझाया था। मेरा समझना दोषपूर्ण हो सकता है, क्योंकि मैं अनुकूलता देखकर ही समझूंगा। जो समझूंगा वही समझूंगा जो मेरे अनुरूप और अनुकूल हो। वह नहीं समझूंगा जिस अर्थ में वह कहा गया है। इसका अर्थ यह नहीं कि मैंने जो समझा वही सच है, बल्कि इसका अर्थ यह भी है कि मैंने जो नहीं समझा वह भी सच हो सकता है। मेरे समझने का बौद्धिक दायरा सत्य को सीमित नहीं कर सकता है।

सुजान का काम है समझना, समझाना, कोडिंग करना, डिकोडिंग करना। साधक का काम है साधनाएं करना। अपने साध्य को अर्पित करके साधु बनना। साध्य तक पहुंचना। मधुर तत्व तक पहुंचना। सिद्ध तो सिद्ध हैं। स्वयं ईश्वर है। प्रकट सशरीर हनुमान है, ब्रह्म है, शंकर है, गणेश है, राम है, नर्मदा है, सरस्वती है, ब्राह्मणी है, पार्वती है, समग्र देव, महादेव, शिव, ब्रह्म, क्षीराधिपति है। इनकी व्याख्या क्या करना और कैसे करना कैसे साहस करना और कैसे कर पाना करने का भी सोचना कैसे, विराट हैं। विराट में तो सब समाया है। साधक भी सुजान भी।

साधक, सिद्ध और सुजान इनकी तीन स्थितियां हैं। साधक परमतत्व के लिए अथक साधनाओं में तल्लीन रहता है। सिद्ध साधनाओं के बाद की ईश्वरीय स्थिति है। सुजान इस श्रेणी में सबसे निचला पायदान है। निचले पायदान पर कोई भी पैर रख सकता है।

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Associate Executive Editor, IBC24 Digital