Paramhans_Shrirambabajee Talks: प्रसिद्धि परिणाम नहीं योग है, प्राप्त-अप्राप्त से परे रहिए, प्रसिद्धि का न स्वागत कीजिए न विलाप

Paramhans_Shrirambabajee Talks: प्रसिद्धि परिणाम नहीं योग है, प्राप्त-अप्राप्त से परे रहिए, प्रसिद्धि का न स्वागत कीजिए न विलाप

Shriram babajee

Modified Date: November 12, 2025 / 06:55 pm IST
Published Date: November 12, 2025 6:55 pm IST

बरुण सखाजी श्रीवास्तव, 9009986179
हानि, लाभ, जीवन, मरण, जस, अपजस विधि हाथ…
प्रसिद्धि का ख्याल ही अपने आपमें नशा है। सुखद अनुभूति है। भीतर से महकती हुई गंध है। मृगमरीचिका है। परिणामोत्सव की भावना है। इसे पा लेने की उत्कट अभिलाषा है। प्राप्ति का महासंधान है। प्रसिद्धि कमसिन ख्याली है। काम वेग के समान अविरल गति है। प्रसिद्धि परमोत्कर्ष है। प्रसिद्धि चरमोत्कर्ष है। प्रसिद्धि का प्रयास सर्वोच्च कर्म प्रेरणा है। प्रसिद्धि एक तरह से हमारी दुखती, कमजोर, बिलखती नब्ज भी है।
प्रसिद्धि के लिए करना, करके प्रसिद्ध होना सिद्ध और सिद्धि को पीछे छोड़ना है। नवयुग में प्रसिद्धि के लिए अलग से कंपनियां, सलाहकार पेशेवर होते हैं। तरीके बताने वाले बड़े-बड़े परामर्श सेवक होते हैं। प्रसिद्धि एक बड़ा व्यापार भी है। परंतु वास्तव में प्रसिद्धि है क्या और इसकी बेसिक संरचना, प्रकार, प्रकाश, सक्रियता का फॉर्मूला बहुत ही कम लोग जान पाते हैं। दरअसल प्रसिद्धि की चकाचौंध इतनी ज्यादा होती है कि हमे इसके पीछे और इसके प्राप्य उपाय दिखाई ही नहीं देते। हम प्रसिद्धि-अंध हो जाते हैं। यहीं से यह मृगमरीचिका बनकर हमारी दौड़ के आगे सदा खड़ी हो जाती है। हम दौड़ते रहते हैं, मगर इसे पा नहीं सकते। प्रसिद्धि माया का ऐसा तत्व है जिसके लिए बड़े-बड़े साधक, साधु अपना तप तिरोहित कर बैठते हैं। यहां से पतन शुरू होता है। जतन खत्म हो जाता है। मनन मौन हो जाता है। चिंतन लुप्त हो जाता है। चमक प्रसिद्धि की टिमटिमाए या विकराल ज्वाला बनकर दूर तक नजर आए, बस आए की महा-इच्छा सब मिटा डालती है।
प्रसिद्धि का पर्याय सिर्फ नाम नहीं काम होना चाहिए। प्रसिद्धि से पहले बहुत कुछ होता है और बाद में भी बहुत कुछ होता है और साथ में भी बहुत कुछ होता है। हम सिर्फ पहले का ही समझ बैठते हैं तो भी गलत और बाद का समझ बैठें तो भी गलत और साथ का सिर्फ समझते हैं तो भी और गलत है। दरअसल यह एक ऐसा कर्मों का क्रम है जो हमे सटीकता से इससे बचाता भी है और इसका आनंद छुआता हुआ भी चलता है। प्रसिद्धि का उपभोग आसान नहीं है। यह मादक तत्व है। यह आपके समग्र आधार को नेस्तनाबूत करने वाला तत्व है। इसकी प्राप्ति, अप्राप्ति दोनो ही विराट विध्वंशक होती हैं। प्राप्त हो तो प्राप्ति के मोह और अप्राप्ति के भय से नष्ट होना होता है और अप्राप्ति हो तो प्राप्ति की उत्कंठा, कुंठा, निराशा से तिल-तिल जलना होता है।
प्रसिद्धि पावन है, किंतु हमारी समझ अपावन है। हम इसे लोकमध्य नाम अथवा काम से जोड़कर देखते हैं। हम इसे मनाने का तत्व मानते हैं यानि सेलेब्रेशन। प्रसिद्धि का यह अर्थ पश्चिम से आया सतही अर्थ है। इसी अर्थ से प्रसिद्धि को सेलिब्रिटी शब्द से भी ताका, देखा, समझा जाता है। यह गलत है। भारत का प्रसिद्धि तत्व सिद्ध होने से जुड़ा है। सिद्ध का अर्थ कोई बात सिर्फ प्रामाणित नहीं बल्कि व्यवहारिक प्रामाणित है।
यह गहन कर्म, शोध, प्रयास, चुनौतियों, अवसाद, आत्मबल, सतत क्रियात्मकता, तप, त्याग, करते रहना, करते चलना आदि से एक किस्म का योग बनता है। प्रसिद्धि को परिणाम न मानकर योग मानना चाहिए। ऐसे हजारों-लाखों लोग होते हैं जो निरंतर साधना करते रहते हैं, लेकिन उन्हें प्रसिद्धि नहीं मिल पाती और ऐसे भी कई लोग होते हैं जो बहुत कुछ नहीं करते तब भी प्रसिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। इस उदाहरण से यह माना जाना चाहिए कि प्रसिद्धि एक योग है। यह योग बनता उन्हीं सब चीजों से है जो ऊपर बताई गई हैं, लेकिन यह कभी-कभी प्रयासों को बायपास करके भी बन जाता है।
प्रसिद्धि योग है, जैसे एक तारीख, एक दिन, एक लम्हा, एक समय, जैसे अचानक घुमड़े-उमड़े बादल, जैसे अचानक बरसा पानी। यह हमे भिगाकर निकल जाता है। कई बार तरबतर करके चला जाता है कई बार सिर्फ भिगाकर और कई बार न भिगाकर न सुखाकर, बीच में ही छोड़कर बौछारें लौट जाती हैं। प्रसिद्धि को स्थायी मानकर चलना हमारी मूर्खता और गुलामी की निशानी है।
परमहंस श्रीराम बाबाजी इस प्रसिद्धि से सदा परे रहते थे। वे इसे एक क्षणिक समय मानते थे। आएगा और निकल जाएगा। हमे प्रभावित नहीं कर पाएगा। अगर हम इसका स्वागत करने या इसका विलाप करने बैठेेंगे तो यह हमे नष्ट कर देगा। इसलिए करते चलो, करते रहो, करने की प्रेरणा करो, कुछ होते रहो, कुछ होने का प्रयास करते रहो, कुछ के लिए कुछ नहीं करो, बल्कि कुछ ऐसा करो जो कुछ खुद ही कुछ बनकर आ जाए। इसलिए महाराजजी श्रीराम बाबाजी कहा करते थे, हानि, लाभ, जीवन, मरण, जस, अपजस, विधि हाथ। बस इसे पकड़िए और सदा निर्लिप्त, निरपेक्ष, निरामय, निर्सिद्ध, निष्प्रभावी, निष्प्राप्य, निरंतर, निश्चिंत रहिए।


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Associate Executive Editor, IBC24 Digital