चुनाव और यात्रा एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। चुनाव चाहे राज्यों के हों या देश के, बिना यात्रा के राजनीतिक दलों का चुनाव कैंपेन अधूरा लगता है। इस वक्त चुनावी राज्य मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी यात्राओं की बहार आई हुई है। (Vyaswani) जन आशीर्वाद, जन आक्रोश, परिवर्तन, विजय संकल्प यात्राओं के जरिए वोटर्स तक पहुंचने की कोशिशें जारी है। इस बात का फैसला भी जनता को ही करना है कि किस यात्रा का कितना असर हुआ, किसके दावों पर जनता ने भरोसा किया, लेकिन ‘व्यासवाणी’ में आज बात होगी यात्राओं की सियासत और मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ की राजनीति में उसके संभावित असर की।
भारत में यात्राओं का इतिहास बहुत पुराना है। इतिहास गवाह कि यात्राएं पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का काम करती रही हैं। आजादी से पहले देश को अंग्रेजी हुकुमत से मुक्त कराने के लिए स्वंत्रतता संग्राम सेनानियों ने कई पदयात्राएं निकाली, जिसका व्यापक असर देश के जनमानस को बदलने के रूप में देखने को मिला। महात्मा गांधी से लेकर विनोबा भावे तक देश कई पदयात्राओं के जरिए सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों का गवाह बना। आजादी के बाद यात्राएं निकलती रहीं लेकिन पदयात्राओं का स्वरूप बदलने का श्रेय भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी को जाता है जिन्होंने राम मंदिर के मुद्दे पर देशभर में रथयात्रा निकाली थी और यात्राओं का ये रथयात्रा वाला स्वरूप वर्तमान परिदृश्य में भी भाजपा का सबसे ज्यादा पसंद करती है।
रथयात्रा भाजपा की राजनीति को सूट करता है, या यूं कहें कि रथयात्रा भाजपा का सबसे पसंदीदा चुनावी अस्त्र है तो गलत नहीं होगा। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर अपने इसी अस्त्र को चलाते हुए एक साथ पांच-पांच जन आशीर्वाद यात्रा निकालने का फैसला लिया। ये भाजपा की मध्यप्रदेश में चौथी जन आशीर्वाद यात्रा है, लेकिन ये यात्रा कई मायनों में पिछली यात्राओं से अलग है, इससे पहले 2013 और 2018 में हुई जन आशीर्वाद यात्रा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में निकाली गई, लेकिन इस बार चूंकि यात्रा का स्वरूप ही बदला है तो पांच अलग-अलग जगह से निकली यात्रा को पार्टी के पांच दिग्गज नेता लीड कर रहे हैं। भाजपा की कोशिश है कि किसी एक चेहरे के बजाए अलग-अलग संभागों में बड़े चेहरों को जनता के बीच पहुंचाया जाए जिससे जनता का आशीर्वाद मिल सके।
सत्ता नहीं संगठन की यात्रा!
मध्यप्रदेश में जन आशीर्वाद यात्रा भाजपा के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है, पार्टी पिछले चुनाव के नतीजों को ध्यान में रखकर रणनीतियां तैयार कर रही है। तब भी भाजपा की जनआशीर्वाद यात्रा में खूब भीड़ उमड़ी थी लेकिन ये भीड़ वोटों में नहीं बदल सकी और 2018 के विधानसभा चुनाव में ज्यादा वोट पाने के बाद भी भाजपा को कम सीटें मिली और 15 साल की सत्ता चली गई। ऐसे में 2018 में हुई चूक से भाजपा संगठन इस बार कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है। इसलिए इस बार यात्रा सत्ता नहीं संगठन द्वारा निकाली जा रही है। अमूमन भाजपा जहां सत्ता में होती है तो यात्राएं सरकार निकालती है, सारे तामजाम किए जाते हैं, लोगों को लाने ले जाने से लेकर, रथ, गाड़ी, टेंट, कुर्सी, साउंड सबकी व्यवस्था सरकार के स्तर पर होता है। चाहे वो छत्तीसगढ़ की विकास यात्रा हो, या मध्यप्रदेश की जन आशीर्वाद यात्रा, सत्ता के खर्च से निकाली गई यात्राओं से भाजपा संगठन के हितों का लाभ होता है। लेकिन दोनों ही राज्यों में मिली पिछली हार के बाद भाजपा संगठन ने अपनी रणनीति बदली है। एमपी में सत्ता में होने के बाद भी संगठन ने जन आशीवाद यात्रा की जिम्मेदारी खुद ले रखी है। जन आशीर्वाद यात्रा में भाजपा शासित राज्यों के सीएम भी आ रहे हैं, केंद्रीय मंत्री भी आ रहे हैं, संगठन से जुड़े नेता भी शामिल हो रहे हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ में भाजपा की परिवर्तन यात्रा में भी दिग्गज भाजपा नेताओं को जिम्मेदारी दी जा रही है जो बताती है पार्टी इन दोनों राज्यों के चुनावी कैंपेन को बहुत गंभीरता से ले रही है। भाजपा की ये जताने की भी कोशिश है कि मध्यप्रदेश में पार्टी का संगठने बहुत मजबूत है।
2018 में सत्ता के सूखे को खत्म कर एमपी में सरकार बनाने वाली कांग्रेस 2020 में फिर सत्ता से बेदखल हो गई। अब एक बार फिर कांग्रेस मध्यप्रदेश मे जीत की जुगत में लगी है, रणनीतियां बनाई जा रही है, जमीनी सर्वे करवाए जा रहे हैं, टिकटों पर मंथन चल रहा है, खूब टेबल एक्सरसाइज की जा रही है। इन सबके साथ अब कांग्रेस ने चुनाव से दो महीने पहले जमीन पर उतरने का फैसला किया है। भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा की काट के रूप में कांग्रेस ने भी जन आक्रोश यात्रा निकालने का फैसला किया है और गणेश चतुर्थी से यात्राओं का श्रीगणेश कर दिया। कांग्रेस ने 7 अलग-अलग दिशाओं से पार्टी के 7 बड़े नेताओं के नेतृत्व में ये यात्रा निकालने की रणनीति बनाई है जो 11 हजार किमी का सफर तय कर प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों को नापेगी। पार्टी को उम्मीद है कि राज्य की भाजपा सरकार के प्रति लोगों में आक्रोश है जिससे वो कांग्रेस की यात्रा को अपना समर्थन देंगे।
मध्यप्रदेश की 7 दिशाओं से निकलने वाली कांग्रेस की 7 जन आक्रोश यात्रा को पार्टी के 7 बड़े नेता लीड करेंगे। इनमें अजय सिंह ‘राहुल’, अरुण यादव, सुरेश पचौरी, सज्जन सिंह वर्मा, जीतू पटवारी, कमलेश्वर पटेल, गोविंद सिंह और कांतिलाल भूरिया शामिल हैं। नेताओं की लिस्ट को देखें तो शुरू के पांच नाम ऐेसे हैं जो या तो नाराज हैं या हाल के दिनों में पार्टी में हाशिए पर नजर आते हैं, ये वो नेता हैं जो खुलकर अपने आप को हाशिए पर बताने में भी कोई गुरेज नहीं करते। इस लिहाज से भी इसे पार्टी की महत्वपूर्ण रणनीति के तौर पर देखा जाना चाहिए कि पार्टी के सेकंड लाइन के प्रमुख नेताओं के नेतृत्व में यात्रा निकालने का फैसले लिया गया है और इस फैसले का श्रेय जाता है पार्टी के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला को। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का बड़ा श्रेय भी रणदीप की रणनीति को जाता है। दरअसल दिग्विजय सिंह और कमलनाथ कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति के प्रमुख चेहरा रहे हैं, और जाहिर है जब इन दोनों ने राष्ट्रीय स्तर के बजाए प्रदेश पर फोकस करना शुरू किया है तो पार्टी के स्थानीय नेताओं की चमक इनके आगे फीकी नजर आने लगी है। ऐसे में इनका दर्द भी कई मंचों पर बाहर आता रहा है, इसी दर्द का रणदीप सुरजेवाला ने समझा और इन्हें बड़ी जिम्मेदारी से नवाजा।
क्या इन यात्राओं से पार्टियों की बात बन पाएगी? यात्राओं के रथ पर सवार पार्टियों को जनता का कितना साथ मिलेगा? ये तो चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे, लेकिन भाजपा जितने सुव्यवस्थित तरीके से अब तक ये यात्रा निकाल रही है, भाजपा शासित राज्यों के सीएम, केंद्रीय मंत्री, दिग्गज नेता यात्रा में शामिल हो रहे है तो क्या क्या कांग्रेस भी इतना व्यवस्थित होकर यात्रा निकाल पाएगी। बड़े नेताओं की मौजूदगी में भाजपा के आयोजन में मोटे तौर पर भीड़ अच्छी जुट रही है, तो क्या कांग्रेस की यात्राओं में भी इतनी भीड़ जुटेगी ये सब तय होगा अगले कुछ दिनों में।
व्यासवाणी कहती है कि विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने यात्रा निकालने में थोड़ी देरी कर दी। कांग्रेस ने अब से करीब 3 महीने पहले ये कार्यक्रम किया होता और रथ के बजाए पदयात्रा के जरिए यात्रा निकाली होती तो ज्यादा प्रभावी हो सकती थी। हालांकि देर आए दुरुस्त आए की तर्ज पर अभी भी विलंब नहीं हुआ है। लेकिन ये तय है कि अब तक बंद कमरों में टेबल एक्सरसाइज में व्यस्त कांग्रेस नेताओं को जमीन पर उतारकर रणदीप सुरजेवाला ने बड़ा काम तो कर दिया है, लेकिन जनता में कितना आक्रोश है ये उनकी सातों यात्राओं में उमड़ने वाली भीड़ से समझ आने लगेगा। (Vyaswani) और सबसे महत्वपूण बात दोनों ही पार्टियों की यात्रा में जुटने वाली भीड़ वोटों में कितना तब्दील हो पाती है इसकी तस्वीर नतीजों से साफ हो जाएगी।