भारतीय वैज्ञानिक ने समुद्री सीप की कोशिका से ‘सेल कल्चर’ के जरिये बनाया मोती

भारतीय वैज्ञानिक ने समुद्री सीप की कोशिका से ‘सेल कल्चर’ के जरिये बनाया मोती

भारतीय वैज्ञानिक ने समुद्री सीप की कोशिका से ‘सेल कल्चर’ के जरिये बनाया मोती
Modified Date: November 29, 2022 / 08:51 pm IST
Published Date: October 17, 2021 1:29 pm IST

(राजेश अभय)

नयी दिल्ली, 17 अक्टूबर (भाषा) स्वतंत्र भारतीय वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने मोती उत्पादन में अपने नये शोध से दुनिया को हैरत में डाल दिया है। अंडमान और निकोबार के वैज्ञानिक ने ‘सेल कल्चर’ के माध्यम से शीशे के फ्लास्क में मोती उत्पादन की तकनीक को सफलतापूर्वक विकसित करके ‘टिश्यू कल्चर’ के शोध में संभावनाओं के नये द्वार खोल दिये हैं। इससे पहले सोनकर ने दुनिया का सबसे बड़ा काला हीरा बनाने और भगवान गणेश के आकार का हीरा विकसित कर बड़ी उपलब्धियां हासिल की थीं।

सोनकर का कहना है कि उनका यह नया शोध वैश्विक मोती कल्चर उद्योग में बदलाव ला सकता है।

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उनके इस शोध की प्रक्रिया और नतीजे अंतरराष्ट्रीय विज्ञान शोध पत्रिका- ‘‘एक्वाकल्चर यूरोप’ के ताजा अंक में प्रकाशित हुए है।

डॉ. सोनकर ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘इस शोध के परिणाम ने साबित किया है कि किसी भी जीव के इपीजेनेटिक (रहन-सहन) में बदलाव लाकर न सिर्फ दुर्लभ नतीजों को हासिल किया जा सकता है बल्कि आनुवांशिक विकृतियों का शिकार होने से भी बचा जा सकता है।’’

आनुवांशिक विकृतियों का आशय यह है कि यदि किसी को आनुवांशिक कारणों से कोई रोग होने की संभावना है तो रहन- सहन में सुधार करके उस संभावित रोग से बचा जा सकता है।

वर्ष-2020 की शुरुआत में उन्होंने अंडमान स्थित अपनी प्रयोगशाला से काले मोती बनाने वाले ‘पिंकटाडा मार्गेरेटिफेरा’ सीप में सर्जरी करके मोती बनाने के लिए जिम्मेदार अंग ‘मेंटल’ को उसके शरीर से अलग कर दिया। इसके बाद वह उस ‘मेंटल टिश्यू’ को फ्लास्क में विशेष जैविक वातावरण उत्पन्न करके अंडमान के समुद्र से लगभग 2,000 किलोमीटर दूर प्रयागराज स्थित अपने ‘सेल बायोलॉजी’ प्रयोगशाला में ले आये। इसमें विशेष बात यह थी कि इस पूरी प्रक्रिया में करीब 72 घंटे का समय लगा जिस दौरान शरीर से अलग होने के बावजूद ‘मेंटल टिश्यू’ जीवित एवं स्वस्थ रहे। यह अपने-आप में तकनीक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

उसके बाद उस ‘मेंटल’ को प्रयोगशाला के विशेष जैविक संवर्धन वाले वातावरण में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने बताया कि पहली सफलता तब मिली जब कल्चर फ्लास्क में कोशिकाओं का संवर्धन होने लगा। तत्पश्चात ऐसे विशेष पोषक तत्वों की खोज की गई जिसके द्वारा कोशिकाओं की मोती बनाने के प्राकृतिक गुण को जागृत कराया गया। इस प्रकार समुद्र में रहने वाले सीप के कोख में पलने वाले मोती ने समुद्र से हजारों किमी दूर एक कल्चर फ्लास्क में जन्म ले लिया।

यह तकनीक विश्व में मोती उत्पादन के तौर-तरीके को न सिर्फ पूरी तरह बदलने की क्षमता रखती है बल्कि टिश्यू कल्चर जैसे अति आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में संभावनाओं के नये रास्ते खोल रही है।

सोनकर ने न सिर्फ दुनिया का सबसे कीमती मोती बनाया बल्कि मोती उत्पादन के दौरान सीपों की मृत्युदर को पूर्ण रूप से नियंत्रित करने की तकनीक भी विकसित की।

वह कहते हैं कि सीप का जीवन व चरित्र उन्हें प्रेरणा और शक्ति देता है। उन्होंने कहा, ‘‘जब एक सीप समुद्र के जल से अपना भोजन लेता है, तो इस प्रक्रिया में समुद्र के जल को शुद्ध करके समुद्र के तमाम जीवों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर देता है और जब कोई बाह्य कण उसके शरीर में पीड़ा पहुंचाता है तब वह उसको रत्न (मोती) बना देता है।’’

भाषा राजेश अजय

अजय


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