एमपेडा-आरसीजीए केकड़ा पालन प्रौद्योगिकी को मिला पेटेंट

एमपेडा-आरसीजीए केकड़ा पालन प्रौद्योगिकी को मिला पेटेंट

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  • Publish Date - May 14, 2021 / 12:23 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:04 PM IST

कोच्चि, 14 मई (भाषा) देश के समुद्री उत्पाद क्षेत्र में एक अहम् उपलब्धि के रूप में एमपेडा- आरजीसीए ने मड क्रैब हैचरी प्रौद्योगिकी (केकड़े के जरवे तैयार करने की तकनीक) को भारत सरकार के पेटेंट , डिजाइन एण्ड ट्रेड मार्क महानियंत्रक से 20 वर्ष का पेटेंट प्राप्त हुआ है।

इन संस्थानों का इस प्रौद्योगिकी का पेटेंट 2011-30 तक रहेगा। पेटेंट का आवेदन दस साल से लंबित था।

मड क्रैब प्रजाति के केकड़े की (वैज्ञानिक नाम सिल्ला सेरेटा) की दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में अच्छी मांग है। इसके पालन के लिए जरवे तैयार करने की प्रौद्योगिकी का विकास समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एमपेडा) की शोध एवं विकास इकाई राजीव गांधी सेंटर फार एक्वाकल्चर (आरजीसीए) ने किया है।

एमपेडा के चेयरमैन के एस श्रीनिवास ने कहा कि भारतीय मत्स्यपालन क्षेत्र के इतिहास में यह उल्लेखनीय सफलता हासिल की गई है। केन्द्र सरकार ने पहली बार इस प्रौद्योगिकी के लिये पेटेंट दिया है। ‘‘इससे मछलीपालकों किसानों की बीज ( केकड़े के जरवों) की मांग पूरा करने में काफी मदद मिलेगी। विशेषतौर से उन किसानों के लिये यह उपयोगी साबित होगी जो कि झींगा मछली के अलावा अन्य मछलियों/केकड़ों का पालन करना चाहते हैं।’’

श्रीनिवास ने कहा कि एमपेडा इस सफलता को देश के मत्स्यपालन किसानों और आरजीसीए के युवा वैज्ञानिकों को समर्पित करता है जिन्होंने इस खोज के लिये कड़ी मेहनत की है और किसानों का उत्साह बढ़ाया है।

श्रीनिवास आरजीसीए के अध्यक्ष भी हैं। आरजीसीए ने इस मड क्रैब केकड़ा हैचरी (जरवे तैयार करने) की तकनीक का पेटेंट कराने का आवेदन 2011 में किया था। इस प्रौद्योगिकी को विकसित करने में फिलीपींस स्थित दक्षिण एशियायी मत्स्यपालन विकास केंद्र ( एसईएएफडीईसी) की वैज्ञानिक डा एमीलिया टी क्यूनीशियो से 2013 तक परामर्श मिला था।

इस प्रौद्योगिकी से केकड़े के जरवों के विकास क्रम में अड्डे तैयार जरवों के बचने का अनुपात तीन प्रतिशत से बढ कर सात प्रतिशत तक पहुंच गया है। अब तक इससे 72.8 लाख जरवे तैयार कर किसानों का दिए गए हैं। इससे 659 मछलीपालकों को लाभ हुआ है।

भाषा

महाबीर मनोहर

मनोहर