नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने कर्ज में डूबी सिंटेक्स प्लास्टिक्स टेक्नोलॉजी के परिसमापन का निर्देश देने वाले एनसीएलटी के आदेश को बरकरार रखा है।
एनसीएलएटी की दो सदस्यीय पीठ ने एक असफल बोलीदाता की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने परिसमापन का आदेश पारित कर दिया, भले ही उसका एकमात्र सीओसी सदस्य मतदान से दूर रहा था।
आरबीएल बैंक सिंटेक्स के ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) का एकमात्र सदस्य था, जिसके पास 100 प्रतिशत वोट थे।
समाधान आवेदकों में से एक, शुभलक्ष्मी इन्वेस्टमेंट एडवाइजरी ने एनसीएलएटी के समक्ष तर्क दिया था कि सीओसी के एकमात्र सदस्य ने मतदान से परहेज किया। इसलिए, तकनीकी रूप से उसके द्वारा पेश समाधान योजना को अस्वीकार नहीं किया गया था।
हालांकि, एनसीएलएटी ने इसे खारिज करते हुए कहा, “यह तथ्य कि सीओसी के एकमात्र सदस्य ने अपीलकर्ता (सुभलक्ष्मी इन्वेस्टमेंट) द्वारा पेश समाधान योजना के पक्ष में मतदान नहीं किया, इसलिए इसने अपने वाणिज्यिक विवेक का प्रयोग किया और मतदान से दूर रहने का विकल्प चुना।”
एनसीएलएटी ने कहा कि के शशिधर के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि सीओसी का वाणिज्यिक विवेक सर्वोपरि है, इसलिए अपीलकर्ता द्वारा इसके कारण पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।
एनसीएलएटी ने 14 अप्रैल, 2025 को जारी अपने आदेश में कहा, “…जहां तक परिसमापन के लिए आवेदन, सीओसी की सहमति के बिना दायर किए जाने का सवाल है, अपीलकर्ता का तर्क मान्य नहीं है क्योंकि छठी सीओसी बैठक में परिसमापन की संभावना के बारे में चर्चा हुई थी और उक्त चर्चा के दौरान सीओसी ने परिसमापक के नामांकन के लिए सिफारिश मांगी थी।”
इस संबंध में, पूर्ववर्ती समाधान पेशेवर (आरपी) ने सीओसी को एक ई-मेल भेजकर परिसमापन आवेदन दायर करने और एक परिसमापक के नामांकन के लिए सहमति मांगी थी, जिस पर सीओसी के एकमात्र सदस्य ने ई-मेल वापस करके सहमति दे दी थी।
इसके अलावा, तीन बार समय बढ़ने के बाद, सीआईआरपी (कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया) 30 मार्च, 2024 को समाप्त हो गई थी। इसलिए, आरपी को दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता की धारा 33 (1) के तहत परिसमापन के लिए आवेदन दायर करना पड़ा।
भाषा अनुराग अजय
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