मांग होने के बावजूद आयात शुल्क कम होने की चर्चाओं से तेल तिलहनों के भाव पूर्ववत | Oil oilseeds prices restored due to discussions of reduction in import duty despite demand

मांग होने के बावजूद आयात शुल्क कम होने की चर्चाओं से तेल तिलहनों के भाव पूर्ववत

मांग होने के बावजूद आयात शुल्क कम होने की चर्चाओं से तेल तिलहनों के भाव पूर्ववत

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:22 PM IST, Published Date : May 22, 2021/12:44 pm IST

नयी दिल्ली, 22 मई (भाषा) मांग होने के बावजूद स्थानीय तेल तिलहन बाजार में शनिवार को आयात शुल्क में कमी किये जाने की चर्चाओं के बीच से सरसों, सोयाबीन, सीपीओ एवं पामोलीन सहित विभिन्न खाद्य तेल तिलहनों के भाव पूर्ववत बने रहे।

बाजार सूत्रों का कहना है कि अमेरिका के शिकागो एक्सचेंज में कल रात सामान्य कारोबार हुआ तथा घरेलू बाजार में मांग होने के बावजूद आयात शुल्क में कमी किये जाने की अटकलों से तेल कीमतों में कोई घट बढ़ नहीं हुई और इनके भाव पूर्वस्तर पर ही बने रहे।

सूत्रों ने कहा कि सरकार की ओर से आयात शुल्क कम करने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि विदेशों में खाद्य तेलों के दाम उसी अनुपात में बढ़ा दिये जाते हैं और स्थिति जस की तस बनी रहती है। इसका दूसरा गंभीर असर देश के तेल तिलहन उद्योग और तिलहन किसानों पर होता है जो भाव की अनिश्चिताताओं के कारण असमंजस की स्थिति का सामना करते हैं और साथ ही सरकार को राजस्व की हानि होती है। इससे तिलहन किसानों का हौसला टूटता है जिनके फसल की खरीद प्रभावित होती है। उन्होंने कहा कि संभवत: यही वजह है कि देश अभी तक तिलहन के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल नहीं कर पाया है और इसे हासिल करने के लिए जरूरी है कि उत्त्पादन बढ़ाने पर जोर दिये जाने के ही साथ बाजार में निजी स्वार्थो के लिए अफवाहें फैलाने वालों पर लगाम कसी जाये।

उन्होंने कहा कि तेल तिलहनों के भाव में तेजी और संभावित जमाखोरी की स्थिति पर उपभोक्ता मामलों के मंत्री ने 24 मई को एक आभासी बैठक आयोजित की है। सूत्रों ने कहा कि आपूर्ति बढ़ाने के लिए आयात शुल्क कम करने का विकल्प पहले भी प्रतिगामी कदम साबित हुआ है क्योंकि विदेशों में तेलों के भाव बढ़ा दिये जाते हैं जिससे उपभोक्ताओं को कोई लाभ नहीं मिल पाता। उन्होंने कहा कि आयात शुल्क घटाने का कोई औचित्य ही नहीं है क्योंकि इन आयातित तेलों के भाव सरसों जैसे देशी तेल के मुकाबले पहले से ही नीचे चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन आयातित तेलों के दाम का कम होना इस बात को साबित करता है कि आयातित तेलों की पर्याप्त आपूर्ति हो रही है तो ऐसे में आयात शुल्क को और कम करने से कोई अपेक्षित नतीजा नहीं निकल सकता।

अपने तर्क के समर्थन में उन्होंने कहा कि कांडला बंदरगाह पर सोयाबीन डीगम के आने पर भाव 1,425 डॉलर प्रति टन बैठता है। मौजूदा आयात शुल्क और बाकी खर्चो के उपरांत इंदौर जाने पर इसका भाव 152 रुपये किलो बैठता है। लेकिन इंदौर के वायदा कारोबार में इस तेल के जुलाई अनुबंध का भाव 136 रुपये किलो और अगस्त अनुबंध का भाव 133 रुपये किलो बोला जा रहा है। जब आयातकों को खरीद मूल्य से 16-19 रुपये नीचे बेचना पड़ेगा तो फिर आयात शुल्क कम किये जाने का क्या फायदा है? उन्होंने कहा कि मलेशिया और अर्जेन्टीना में जिन लोगों के तेल प्रसंस्करण संयंत्र हैं, सिर्फ उन्हें ही ऐसी अफवाहों का फायदा मिलता है। संभवत: इन्हीं वजहों से किसान धान और गेहूं की बुवाई पर जोर देते हैं और तिलहन उत्पादन पर कम ध्यान देते हैं।

उन्होंने कहा कि खासकर तिलहन बुवाई के मौसम के दौरान अफवाहें फैलाने वालों पर नियंत्राण किया जाना चाहिये और आयात शुल्क के साथ अनावश्यक छेड़छाड़ करने से बचा जाना चाहिये।

बाजार में थोक भाव इस प्रकार रहे- (भाव- रुपये प्रति क्विंटल)

सरसों तिलहन – 7,350 – 7,400 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये।

मूंगफली दाना – 6,170 – 6,215 रुपये।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात)- 15,200 रुपये।

मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल 2,435 – 2,485 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 14,500 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 2,315 -2,365 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 2,415 – 2,515 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी – 16,000 – 18,500 रुपये।

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 15,600 रुपये।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 15,300 रुपये।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 14,050 रुपये।

सीपीओ एक्स-कांडला- 12,300 रुपये।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 14,550 रुपये।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 14,100 रुपये।

पामोलिन एक्स- कांडला- 13,100 (बिना जीएसटी के)

सोयाबीन दाना 7,700 – 7,800, सोयाबीन लूज 7,600 – 7,650 रुपये

मक्का खल 3,800 रुपये

भाषा राजेश राजेश मनोहर

मनोहर

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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