ऑस्ट्रेलियाई मेटलर्जिकल कोयला आपूर्ति में तनाव से भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा जोखिम बढ़ा: रिपोर्ट
ऑस्ट्रेलियाई मेटलर्जिकल कोयला आपूर्ति में तनाव से भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा जोखिम बढ़ा: रिपोर्ट
नयी दिल्ली, चार दिसंबर (भाषा) ऑस्ट्रेलिया के ‘मेटलर्जिकल’ (मेट) कोयले की आपूर्ति में तनाव ने भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा जोखिम बढ़ा दिया है। भारत अपनी 90 प्रतिशत जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर करता है।
‘इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस’ (आईईईएफए) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार एवं इस्पात विनिर्माताओं ने ऑस्ट्रेलियाई मेट कोयले पर निर्भरता कम करना शुरू कर दिया है लेकिन भारत को अपने इस्पात क्षेत्र को दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा चुनौतियों से बचाने के लिए और आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
भारत का लक्ष्य 2030 तक कच्चे इस्पात की उत्पादन क्षमता 30 करोड़ टन प्रति वर्ष तक पहुंचाना है। इस वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा ब्लास्ट फर्नेस (बीएफ) प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित है जो धातु-कोयले का उपयोग करती है। परिणामस्वरूप भारतीय इस्पात क्षेत्र आयातित धातु-कोयले पर बहुत अधिक निर्भर है क्योंकि घरेलू धातु-कोयला अपनी उच्च राख एवं सल्फर सामग्री के कारण गुणवत्ता संबंधी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता है।
भारत वर्तमान में अपने करीब 90 प्रतिशत धातु-कोयले का आयात मुख्यतः ऑस्ट्रेलिया से करता है। हालांकि दुनिया के सबसे बड़े धातु-कोयले निर्यातक ऑस्ट्रेलिया से भविष्य में होने वाली आपूर्ति की विश्वसनीयता को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं।
आईईईएफए में ‘ग्लोबल स्टील’ के प्रमुख विश्लेषक एवं रिपोर्ट के सह-लेखक साइमन निकोलस ने कहा, ‘‘ मुख्य जोखिमों में ऑस्ट्रेलियाई कोयला खनन से जुड़े मीथेन उत्सर्जन को लेकर बढ़ती चिंता और कानूनी चुनौतियां शामिल हैं। कोयला खदान क्षमता विस्तार को अब जलवायु एवं उत्सर्जन के आधार पर ऑस्ट्रेलियाई अदालतों में सफलतापूर्वक चुनौती दी जा रही है।’’
निकोलस ने कहा, ‘‘ भारत ने 2070 तक शुद्ध रूप से शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है लेकिन वह ऐसे देश से कोयले के आयात पर निर्भर है जिसका लक्ष्य 2050 है। उसे उत्सर्जन में कमी लाने के लिए जल्द ही कदम उठाने होंगे। नवंबर 2025 में सीओपी30 के दौरान ऑस्ट्रेलिया उन दर्जनों देशों में शामिल था जिन्होंने बेलेम घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए थे जिसमें तेल, गैस एवं कोयले से त्वरित एवं न्यायसंगत बदलाव का आह्वान किया गया है।’’
रिपोर्ट में भविष्य में कोकिंग कोल आपूर्ति पर दीर्घकालिक चिंताओं की जांच की गई जिसमें बढ़ती खनन लागत, नई खदानें खोलने के बजाय मौजूदा परिचालनों का अधिग्रहण करने का विकल्प चुनने वाली कंपनियां, मीथेन उत्सर्जन की बढ़ती चुनौती और ऑस्ट्रेलियाई बैंकों द्वारा नई मेट कोल परियोजनाओं के लिए वित्त की वापसी शामिल है।
आईईईएफए में स्टील की ऊर्जा वित्त विश्लेषक एवं रिपोर्ट की सह-लेखिका सौम्या नौटियाल ने कहा, ‘‘ ‘स्क्रैप’ से बने इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (ईएएफ) विस्तार, हरित हाइड्रोजन-आधारित इस्पात निर्माण और निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों के लिए नीतिगत प्रोत्साहनों के संयोजन से आयातित धातु कोयले पर भारत की निर्भरता धीरे-धीरे कम हो सकती है।’’
रिपोर्ट में कहा गया कि इस क्षेत्र को कई जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है जिससे भारतीय इस्पात विनिर्माताओं को आपूर्ति में कमी का सामना करना पड़ सकता है। इनमें ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा मेट कोल निर्यात के बारे में अति-आशावादी पूर्वानुमान, खदान विकास में नरमी, बढ़ती वित्तीय..कानूनी एवं नियामक बाधाएं, बढ़ती खनन लागत और जलवायु प्रभावों से जुड़ी कीमतों में अस्थिरता शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत यदि अधिक मेट कोल की आवश्यकता वाली ब्लास्ट फर्नेस का विकास जारी रखता है तो नई आपूर्ति विकसित करने से जुड़े जोखिमों को देखते हुए आपूर्ति में कमी कीमतों में उल्लेखनीय एवं संरचनात्मक वृद्धि ला सकती है। देश को अब वैकल्पिक इस्पात विनिर्माण तकनीकों की ओर तेजी से कदम बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है।
भाषा निहारिका रमण
रमण

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