अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा, कर्जदाताओं की समिति के पास परिसमापक नियुक्त करने का अधिकार

अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा, कर्जदाताओं की समिति के पास परिसमापक नियुक्त करने का अधिकार

अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा, कर्जदाताओं की समिति के पास परिसमापक नियुक्त करने का अधिकार
Modified Date: December 3, 2025 / 09:30 pm IST
Published Date: December 3, 2025 9:30 pm IST

नयी दिल्ली, तीन दिसंबर (भाषा) राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा है कि जिन मामलों में समाधान पेशेवर ने लिखित सहमति प्रस्तुत नहीं की है, उनमें कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) के पास ही दिवाला प्रक्रिया से गुजर रही कर्ज में फंसी कंपनी के लिए परिसमापक नियुक्त करने का अधिकार है, एनसीएलटी के पास नहीं।

दो समान मामलों में आदेश पारित हुए अपीलीय न्यायाधिकरण ने यह कहा।

दोनों मामलों में राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने स्वयं दो दिवाला प्रक्रिया से गुजर रही कंपनियों के लिए परिसमापक नियुक्त किए थे। अपीलीय न्यायाधिकरण ने उन नियुक्तियों को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि ‘केवल कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) के पास ही समाधान पेशेवर के स्थान पर उम्मीदवार का चयन करने का अधिकार है।’’

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राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने कहा कि आईबीसी कार्यवाही के तहत नामित प्राधिकारी के रूप में काम करने वाला एनसीएलटी केवल ‘समाधान पेशेवर को बदलने के लिए अधिकृत है, परिसमापक नियुक्त करने के लिए नहीं।’

आईबीसी के अनुसार, निर्धारित समयसीमा के भीतर कर्ज में फंसी कंपनियों की बिक्री जरूरी है, ऐसा न करने पर एनसीएलटी परिसमापन का आदेश पारित करता है। ऐसे मामलों में समाधान पेशेवर के रूप में कार्यरत अधिकारी कंपनी के परिसमापक के रूप में कार्य करना शुरू कर देता है।

हालांकि, दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) की धारा 34(1) के अनुसार, इसके लिए, समाधान पेशेवर को लिखित सहमति प्रस्तुत करनी होगी और यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो धारा 34(4)(सी) एनसीएलटी को उसकी जगह किसी अन्य व्यक्ति को कंपनी का परिसमापक नियुक्त करने का अधिकार प्रदान करती है।

यह विवाद उस समय उत्पन्न हुआ जब एनसीएलटी की इंदौर पीठ ने एक ऐसे परिसमापक की नियुक्ति की, जो न तो सीआईआरपी के दौरान नियुक्त समाधान पेशेवर था और न ही कर्जदाताओं की समिति की पसंद का उम्मीदवार था।

कर्जदाताओं ने एनसीएलएटी के समक्ष इसे चुनौती दी। उसने दलील दी कि आईबीसी की धारा 34(1) का दूसरा भाग एनसीएलटी को केवल समाधान पेशेवर को बदलने के लिए अधिकृत करता है, लेकिन सीओसी की पसंद को रद्द करने का कोई अधिकार नहीं देता है।

इसका विरोध दो परिसमापकों के वकीलों ने किया। उन्होंने कहा कि धारा 27 के तहत, सीओसी को समाधान पेशेवर नियुक्त करने का अधिकार है। जहां तक परिसमापक की नियुक्ति का संबंध है, पूरा अधिकार न्याय निर्णय करने वाले प्राधिकारी के पास है।

हालांकि, अपीलीय न्यायाधिकरण इसे अस्वीकार करते हुए कहा, ‘‘यदि धारा 34(1) और धारा 34(4)(सी) के दूसरे भाग को ध्यान से पढ़ा जाए, तो यह न्यायनिर्णायक प्राधिकारी को केवल समाधान पेशेवर को बदलने का अधिकार देता है, न कि परिसमापक नियुक्त करने का।’’

लेकिन, समाधान पेशेवर को बदलने का अधिकार धारा 27 के तहत सीओसी के पास छोड़ दिया गया है।

भाषा रमण अजय

अजय


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