कमजोर रुपये से कुछ क्षेत्रों को फायदा, मुद्रास्फीति बढ़ने का अंदेशाः विशेषज्ञ
कमजोर रुपये से कुछ क्षेत्रों को फायदा, मुद्रास्फीति बढ़ने का अंदेशाः विशेषज्ञ
नयी दिल्ली, चार दिसंबर (भाषा) विशेषज्ञों का कहना है कि डॉलर के मुकाबले रुपये में आई तीव्र गिरावट से निर्यातकों और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग को कुछ फायदा होगा लेकिन आयात महंगा होने से मुद्रास्फीति बढ़ने का खतरा भी बढ़ जाएगा।
रुपया बुधवार को पहली बार 90 के स्तर के नीचे फिसलकर 90.15 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। यह रुपये का अब तक का सबसे निचला बंद स्तर है। हालांकि बृहस्पतिवार को रुपये में कुछ सुधार आया और यह 19 पैसे चढ़कर 89.96 प्रति डॉलर (अस्थायी) पर बंद हुआ।
रुपये की कीमत में आई गिरावट का घरेलू अर्थव्यवस्था पर मिला-जुला असर पड़ने का अनुमान है। इसे लेकर सरकार पर इसका राजनीतिक दबाव भी बढ़ गया है और मामला संसद में भी उठाया गया।
ब्रिकवर्क रेटिंग्स के मॉडल विकास एवं शोध प्रमुख राजीव शरण ने कहा, ‘रुपये का कमजोर होना निर्यातकों- खासकर आईटी एवं वस्त्र क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाता है। लेकिन कच्चे तेल, रसायनों और अन्य कच्चे माल का आयात महंगा होने से कंपनियों की लागत बढ़ेगी जिसका असर लाभ पर पड़ेगा और व्यापार घाटा भी बढ़ सकता है।’
उन्होंने यह भी कहा कि मुद्रास्फीति बढ़ने से घरेलू मांग कमजोर पड़ सकती है और जिन कंपनियों के वित्तीय सुरक्षा-उपायों से रहित विदेशी कर्ज हैं उन पर वित्तीय दबाव बढ़ सकता है।
रुपये की गिरावट को लेकर विपक्ष ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा, ‘गुजरात के मुख्यमंत्री रहते समय मोदी रुपये की गिरती कीमत पर केंद्र से जवाब मांगते थे। अब वही सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए।’
खरगे ने संसद परिसर में संवाददाताओं से कहा कि रुपये का कमजोर होना देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ने का संकेत है।
राज्यसभा सदस्य विवेक के. तन्खा ने भी इस पर चिंता जताते हुए कहा कि 90 रुपये प्रति डॉलर से नीचे फिसला रुपया सामान्य लोगों के लिए आर्थिक परेशानी बढ़ा रहा है। उन्होंने कहा, ‘आम आदमी के लिए गिरता रुपया नियोक्ता की तरफ से सूचना दिए बगैर वेतन घटा देने जैसा है। इसकी वजह यह है कि आपका पैसा हर दिन कम चीजें खरीद पाता है।’
अंतरराष्ट्रीय शिक्षा ऋणदाता प्रॉडिजी फाइनेंस ने कहा कि 2026 में विदेश पढ़ाई के लिए जाने वाले भारतीय छात्रों को गिरते रुपये, विदेश में जीवन-यापन की बढ़ती लागत और बजट के गलत अनुमान के कारण ज्यादा दबाव झेलना पड़ेगा। रुपये में उतार-चढ़ाव से विदेशी मुद्रा में होने वाले खर्च और कर्ज की किस्तें काफी बढ़ जाती हैं।
इस बीच, डीबीएस बैंक ने एक रिपोर्ट में कहा कि पिछले दो सप्ताह में रिजर्व बैंक ने हस्तक्षेप कर रुपये को 89 प्रति डॉलर के आसपास बनाए रखा था, लेकिन इस सप्ताह 90 के स्तर के टूटने को भारतीय मुद्रा के नए संतुलन की ओर बढ़ने के संकेत के रूप में देखा जा सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की घोषणा में देरी, कमजोर पोर्टफोलियो निवेश और विनिर्माण/ निर्यात को बढ़ावा देने की कोशिशें भी रुपये पर दबाव डाल रही हैं।
विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि विदेशी संस्थागत निवेशों की निकासी जारी रहने और व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता के कारण निवेशकों का रुख सतर्क बना हुआ है।
भाषा प्रेम
प्रेम रमण
रमण

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