शह मात The Big Debate: ‘हिडमा’ के कितने हिमायती? क्या नक्सली कमांडर हिडमा के एनकाउंटर से दुखी हैं नेता? देखिए पूरी रिपोर्ट
CG Politics: 'हिडमा' के कितने हिमायती? क्या नक्सली कमांडर हिडमा के एनकाउंटर से दुखी हैं नेता? देखिए पूरी रिपोर्ट
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- छत्तीसगढ़-आंध्रप्रदेश बॉर्डर पर एनकाउंटर में ढेर हुआ 1 करोड़ का इनामी नक्सली हिडमा
- कांग्रेस नेताओं के बयानों और श्रद्धांजलि पोस्ट से सियासी विवाद गहराया
- सरकार का दावा – मार्च 2026 तक सशस्त्र नक्सलवाद खत्म होगा
रायपुर: CG Politics बीते दिनों छत्तीसगढ़-आंध्रप्रदेश बॉर्डर पर जवानों ने 1 करोड़ के इनामी, कुख्यात नक्सली कमांडर माडवी हिडमा को एनकाउंटर में ढेर कर दिया। इस पर नक्सल समर्थकों का रोना, खीजना बयान देना समझ आता है लेकिन उनके समर्थन में देश के सबसे बड़े दल के, सबसे दमदार नेता अगर नक्सल लीडर के लिए शोक मनाते दिखें तो, जिस नक्सल लीडर ने पुलिस जवान से लेकर आमजन तक सामूहिक नरसंहार किया हो उसके हक-हित के लिए फिक्रमंद हो तो वो भी तब जबकि प्रदेश के गृहमंत्री बार-बार और साफ-साफ कह चुके हैं कि सरेंडर करने वाले नक्सलियों के लिए सरकार रेड कार्पेट बिछाकर स्वागत कर रही है लेकिन उनके पास अब इसके लिए वक्त कम है। बावजूद इसके जो सरेंडर ना करे उसका सफाया तय है। इतनी साफ चेतावनी के बाद, उनके लिए इतनी पीड़ा क्यों ? सियासी मजबूरी है या फिर असलियत? तय आप कीजिएगा।
CG Politics तो मध्यप्रदेश के पूर्व CM और कांग्रेस के थिंक टैंक कहलाने वाले सबसे अनुभवी नेता दिग्विजय सिंह से लेकर यूथ कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रीति मांझी तक पोस्ट कर मोस्ट वॉन्टेड नक्सली लीडर माड़वी हिडमा के समर्थन में उतर आए हैं। दिग्गविजय सिंह लिखते हैं नक्सलियों से समझौता कर सरेंडर कराना चाहिए, तो युुवा कांग्रेसी प्रीति मांझी लाल सलाम कामरेड लिखकर हिडमा को श्रद्धांजली देती, शोक जताती दिखीं। इस प्रतिक्रिया के बाद बीजेपी ने दिग्विजय सिंह समेत पूरी कांग्रेस को तो जमकर घेरा ही सीधे-सीधे राहुल गांधी से पूछ लिया कि वो साफ करें हिडमा शहीद है या फिर जीरम में कांग्रेस नेता शहीद थे।
हालांकि, कांग्रेसी नेताओं ने इस पर गोल-मोल शब्दों में सफाई देने की कोशिश भी की, तो वहीं बस्तर की एक्टिविस्ट सोनी सोरी ने एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए, कोर्ट जाने की धमकी दी और तो और 26 सबसे बड़े नक्सल हमले के मास्टरमाइंड, सैंकड़ों लोगों-जवानों के हत्यारे हिडमा को बस्तर का दूसरा गुंडाधुर तक बता दिया।
साफ दिख रहा है कि अब नक्सलवाद अंतिम मोड़ पर है। ऐसे वक्त पर अपने सियासी फायदे के लिए मारे गए दुर्दांत नक्सली लीडर पर शोक मनाकर नेता खुद ही एक्सपोज हो रहे हैं। उनका दोहरे चरित्र को खुलकर सामने आ गया है। ये भी साफ है कि सशस्त्र नक्सलवाद भले मार्च 2026 तक खत्म हो जाए, लेकिन नक्सलियों के पीछे काम कर रही वैचारिक लड़ाई अभी लंबी चलेगी।

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