झाबुआ । आधुनिक हो रहे युग में जल की क्या उपयोगिता है, इसे शहरी समझे या न समझे पर ग्रामीण आदिवासी इस हकीकत को जानते हैं।
आदिवासी अपनी परंपराएं निस्वार्थ भाव से निभाते हैं। झाबुआ में आदिवासी जिस कार्य में संलिप्त हैं उसे हलमा कहा जाता है। आदिवासियों ने हलमा के माध्यम से झाबुआ की हाथी पावा पहाड़ी पर 40 हजार कंटूर ट्रेंच बनाएं।
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इस हलमा के माध्यम से 360 करोड़ लीटर पानी जो बारिश में व्यर्थ बह जाता है, उस जल को इन जल सरचनाओं के माध्यम से यहीं जमीन में एकत्रित करना इससे बारिश का पानी जल संरचनाओं से जमीन पर उतरेगा, जिससे जमीन का जल स्त्रोत बढ़ेगा। शिवगंगा के इस आयोजन को 13 वर्षो से चल रहा है । यहां से सीख लेकर लोग अपने अपने गांव निकल जाते हैं वहां भी जल संरचनाएं बनाते हैं ।
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कार्यक्रम का मैनेजमेंट ऐसा है कि किसी को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ती है। आदिवासी तय समय पर अपने आप निर्धारित स्थान पर पहुंच जाते हैं । आदिवासी जल संरचनाएं बनाते हैं और अपने अपने गांव की ओर निकल जाते हैं।
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झाबुआ अंचल के आदिवासी लोग अपने हाथों में गेती, सिर पर तगाड़ी और लोकगीत गुनगुनाते हुए इस हाथी पावा पहाड़ी की ओर निकल पड़े हैं। लोकगीतों को गुनगुनाते हुए 40 हजार के आसपास जल संरचनाएं बनाई जा रही है। जिसे देखने के लिए झाबुआ विधायक कांतिलाल भूरिया सहित अन्य जिले के अधिकारीगण हाथी पावा पहाड़ी पर पहुंचे । सभी आदिवासी अपने अपने स्तर से इन जल संरचनाओं को बनाने में जुटे हुए हैं। सुबह सबेरे उठकर रात गहराने तक आदिवासी जल संरचनाओं के निर्माण में जुटे रहते हैं।